14 दिसंबर 2017

हरिहरहिरण्यगर्भपितामह

हरिहरहिरण्यगर्भपितामह की सर्वश्रेष्ठ प्रतिमा

ओम सोनी 

               आज बस्तर में जितनी भी बिखरी हुयी प्रतिमायें मिलती है वे सभी प्रतिमायें नाग शासन काल की देन है। छिंदक नाग राजाओं ने अपने राजत्वकाल में देवी देवताओं की हजारो, उत्तम कोटि की प्रतिमाये बनवायी थी। बस्तर का नागयुग मूर्तिकला के लिये स्वर्णकाल था। इन प्रतिमाओं को देवालयों के गर्भगृह एवं बाहरी आलिंदों में स्थापित करवाया गया था। विभिन्न आक्रमणकारियों एवं तस्करों ने इन प्रतिमाओं को तोड़ा, लूटा और चोरी किया। आज जो भी प्रतिमायें बची है वे या तो खंडित हो गयी या फिर किसी देवगुड़ी में सुरक्षित है। खंडित ही सही, ये प्रतिमायें आज भी नागयुगीन उत्तम मुर्तिकला को प्रदर्शित करती है।
        बस्तर के एक ग्राम में मुझे यह खंडित दुर्लभ प्रतिमा मिली जो वास्तव में नागयुगीन श्रेष्ठ मूर्तिकला का प्रतिनिधित्व करती है। इस प्रतिमा का स्थान संग्रहालय में होना चाहिये, जो दुर्भाग्य से यूं ही नष्ट होने के लिये छोड़ दी गयी है।

       यह प्रतिमा हरिहरहिरण्यगर्भपितामह की है । इस प्रतिमा में भगवान विष्णु, शिव , ब्रहमा और सूर्य चारों देवताओं का सम्मिलित रूप दर्शाया गया है। प्रतिमा में मुख के पीछे सूर्य का प्रभावलय  , सिर पर किरीट मुकुट का धारण एवं कानो में कुंडल पहने हुये है। गले में हार, कौस्तुभमणि और गे्रवेक्य पहने हुये है। कौस्तुभमणि का अंकन विष्णु प्रतिमाओं और ग्रेवेक्य का अंकन शिव प्रतिमाओं में होता है। कमर बंद , धोती एवं लंबे बुट पहने हुये है। पैरों के नीचे सात घोड़े बने हुये है। इन घोड़ों की लगाम सारथी अरूण के हाथों में है जो कि तीन मुख वाला था जिसका एक मुख क्षरित हो गया। पैरों के पास ही दायें तरफ दंड और बायें तरफ पिंगल का अंकन किया गया है। प्रतिमा अष्टभूजी थी जिसमें बायें तरफ के दो हाथ खंडित हो गये है। दायें और बांये तरफ दोनो प्रमुख हाथों में खिले हुये कमल फूल पकड़े हुये है। दाये तरफ के हाथों में उपर से नीचे क्रमश शु्रक, त्रिशुल और शंख पकड़े हुये है। वहां इस प्रतिमा के खंडित अंश बिखरे पड़े है जिसके आधार पर बायें हाथ में उपर से नीचे क्रमशः वेद, खटवांग और चक्र पकड़े हुये है।
            दो प्रमुख हाथों को छोड़कर बाकी हाथों में उपर के दोनो हाथ जिसमें शु्रक एवं वेद है वे भगवान ब्रहमा, मध्य के दो हाथ जिसमें त्रिशुल और खटवांग है वे भगवान शिव और नीचे के दोनो हाथ जिसमें शंख और चक्र है वे भगवान विष्णु के रूप को प्रदर्शित करते है। प्रतिमा के दोनो मुख्य हाथ जिसमें खिला हुआ कमल हैे,  पैरों में बुट , सारथी, दंड पिंगल और अश्व रथ भगवान सूर्य के रूप को दर्शाते है। 
              अपराजितपृच्छा और रूपमंडन ग्रंथो के अनुसार हरिहर हिरण्यगर्भ पितामह की प्रतिमा,  चार मुख एवं अष्ट भुआजों से युक्त होनी चाहिये। परन्तु इस प्रतिमा में एक मुख, अष्टभुजाओं एवं अन्य विशेषताओं को मिलाकर ब्रहमा शिव विष्णु और सूर्य चारों का सम्मिलित रूप प्रदर्शित किया। वास्तव में यह हरिहरहिरण्यगर्भपितामह की सर्वश्रेष्ठ और बेहद ही दुर्लभ प्रतिमा है। 

6 दिसंबर 2017

नाग स्थापत्य कला का अनुपम उदाहरण - मामा भांजा मंदिर बारसूर

नाग स्थापत्य कला का अनुपम उदाहरण - मामा भांजा मंदिर





बारसूर का ऐतिहासिक मामा भांजा मंदिर आज बारसूर का पर्याय बन चुका है।  मामा भांजा नाम की यह ऐतिहासिक धरोहर आज के समय में नागकालीन स्थापत्य कला का जीवंत उदाहरण के रूप में हमारे सामने है। यह मंदिर बारसूर में नाग युग के स्वर्णिमकाल से वर्तमान तक के कई घटनाओं का साक्षी रहा है।इस मंदिर की स्थापत्यकला , इसके समान ही निर्मित समलूर, नारायणपाल, गढ़िया के मंदिरो की स्थापत्यकला में सर्वश्रेश्ठ है। 



यह मंदिर पूर्वाभिमुख है जो कि गर्भगृह एवं अंतराल में विभक्त है। गर्भगृह की दीवारों पर कीर्तीमुख एवं जंजीरो में टंगी हुयी घंटियां बनी हुयी है। द्वार शाखा के मध्य में चतुर्भुजी गणेशजी का अंकन किया गया है।
यह मंदिर मूल रूप से भगवान शिव को समर्पित था। वर्तमान में गर्भगृह में भगवान गणेश एवं भगवान नरसिंह की दो छोटी प्रतिमायें स्थापित है। जो कि बाद में ग्रामीणों के द्वारा रखी गयी है। 


मंदिर के बाहरी तरफ बने हुये मनुष्य के मुख से किंवदंती जुड़ी हुयी है जिससे मंदिर का नाम मामा भांजा पड़ गया। बस्तर भूषण में केदारनाथ ठाकुर ने इस मंदिर के बारे मंे बडे ही रोचक जानकारी दी है। उनके अनुसार उत्कल देश के गंग राजा की छः संताने थी एवं एक संतान दासी से उत्पन्न हुयी थी। राजा की दासी ने राजा को वश मेें कर अपने पुत्र को राजा बनवा दिया। राजा की अन्य संतानों को राज्य से बाहर खदेड़ दिया। वे सभी छः भाईयों ने तत्कालीन चक्रकोट में आकर बालसूर्य नगर की स्थापना की। बालसूर्य नगर की स्थापना के बाद गंग राजाओं ने कई कारीगरों को बुलाकर इस नगरी में कई मंदिर बनवाये। कई तालाब भी खुदवाये। गंग राजा का भांजा बहुत ही बुद्धिमान था। भांजे ने उत्कल देश से कारीगरों को बुलवा कर मंदिर बनवाया। मंदिर की उच्च कोटी की बनावट और सुंदरता को देखकर गंग राजा के मन में जलन की भावना उत्पन्न हो गयी। राजा में मंदिर पर अपना अधिकार स्थापित करने की कोशिश की जिसके फलस्वरूप मामा और भांजे में युद्ध हुआ । युद्ध में भांजे की जीत हुयी , गंग राजा को जान से हाथ धोना पड़ा। बाद में भांजे ने मामा के मुख की मूर्ति बनवा कर मंदिर के सामने लगा दी और स्वयं की मूर्ति मंदिर के अंदर स्थापित करवायी।


        हालांकि यह सिर्फ एक किंवदंती है। इस किंवदंती ने ही मंदिर को मामा भांजा जैसा अदभुत नाम दिया । वर्तमान में यह मंदिर बारसूर के अतीत की गौरव गाथाओं को संजोये हुये शान से खड़ा है। शासन प्रशासन के प्रयासों के कारण सुरक्षित यह मंदिर आज भी हमें बस्तर के  स्वर्णिम युग का स्मरण कराता रहता है।
--- ओम सोनी