बस्तर की चापडा चटनी
आदिवासियो की प्रिय, लाल चिंटियो की चटनी।
ओम सोनी
बस्तर मे सरगी वृक्ष बहुतायत मे पाये जाते है। सरगी वृक्ष बस्तर के आदिवासियो की बहुत से जरूरतो को पुरा करते है जैसे इनके पत्तो से दोना, पत्तल बनता है , सरगी के लकडी से दांतो की सफाई के लिये दातुन बनता है। सरगी पेड के नीचे बरसात के शुरुवाती दिनो मे आने वाले प्रसिद्ध बोडा का उत्पादन होता है जो की बस्तर की बहुत ही प्रिय सब्जी है और सरगी के पेड के पत्तियो मे एक लाल चींटी का निवास भी है. यह लाल चींटी की चटनी बस्तर के आदिवासी का प्रिय भोज्य पदार्थ है।
यह लाल चींटी चापड़ा चींटी के नाम से जानी जाती है. चापडा का अर्थ है - पत्तियो से बनी हूई घोसला. लाल चिंटिया सरगी वृक्ष की पत्तियोे को अपनी लार से चिपका कर घोसला बना कर रहती है।
प्रायः आम अमरूद साल और अन्य ऐसे पेड़ जिनमें मिठास होती है उन पेड़ों पर यह चींटियां अपना घरौंदा बनाती हैं। आदिवासी एक पात्र में चींटियों को एकत्र करते हैं। इसके बाद इनकों पीसा जाता है। नमकए मिर्च मिलाकर रोटी के साथ या ऐसे ही खा लिया जाता है। चींटी में फॉर्मिक एसिड होने के कारण इससे बनी चटनी चटपटी होती है। इसमें प्रोटीन भी होता है।
बस्तर के आदिवासी इन चिंटियो को पिसकर चटनी बना कर खाते है. चापडा चटनी का सेवन आँखो से जुडे हुए बीमारियो के लिये राम बाण औषधी है। गर्मी के दिनो खासकर अप्रेल मई के दिनो मे इस चापडा चटनी का प्रयोग किया जाता है।
चापडा चटनी के बारे एक ओर विश्वास है कि किसी भी रोगी के शरीर पर इन् चिंटियो के घोसले को डालने से इनके डंक से रोगी स्वस्थ हो जाता है। लाल चींटी की चटनी को औषधि के रूप में प्रयोग ला रहे आदिवासियों का कहना है कि चापड़ा को खाने की सीख उन्हें अपनी विरासत से मिली है। यदि किसी को बुखार आ जाए तो उस व्यक्ति को उस स्थान पर बैठाया जाता है जहां लाल चींटियां होती हैं। चींटियां जब पीड़ित व्यक्ति को काटती हैं तो उसका बुखार उतर जाता है।
बस्तर के हाट बाजार में बहुतायत में चापड़ा पांच रुपए दोना में बेचा जाता है। ग्रामीण जंगल जाकर पेड़ के नीचे गमछा कपड़ा बिछाकर शाखाओं को जोर.जोर से हिलाते हैंए जिससे चींटियां झड़ कर नीचे गिरते हैंए उन्हें इकट्ठा कर बेचने के लिए बाजार लाया जाता है।





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