मौर्य युगीन आटविक बस्तर ..........!!
बस्तर के प्राचीन इतिहास के अध्ययन से यह मालुम पड़ता है कि बस्तर सदैव स्वाभिमानी अौर स्वतंत्रता प्रिय रहा है. चाणक्य की रणनीति अौर विशाल सेना का स्वामी होकर कश्मीर से कन्याकुमारी तक विजय रथ दौडाने वाला चन्द्रगुप्त मौर्य भी बस्तर की स्वाभिमानी जनता पर अपना शासन स्थापित नही कर सका था.
मौर्य काल मे बस्तर आटविक जनपद के नाम से जाना जाता था. मौर्य काल मे बस्तर तदयुगीन आटविक की जनता कबीलो मे रहती थी .यहां के लड़ाकु जनजातियो से सीधे लड़ने की क्षमता उस समय के किसी भी राजा मे नही थी.
कौटिल्य के अर्थशास्त्र मे आटविक सेना का उल्लेख मिलता है. चन्द्रगुप्त मौर्य ने आटविक बस्तर के योद्धाओ को अपनी सेना मे सम्मिलित किया था. भारत का सबसे महान सम्राट अशोक मौर्य ने भी आटविक बस्तर को अपने अधीन रखने की इच्छा दिखायी थी. अशोक के समय कलिंग और आटविक बस्तर दोनो ही मौर्य साम्राज्य के आँखो मे चुभते हुए कांटो के समान थे.
प्रियदर्शी अशोक दोनो को स्वतंत्र नही देख सकता था . उसने सर्वप्रथम कलिंग पर चढाई की. आटविक बस्तर की जनजातियो ने अशोक के खिलाफ कलिंग का साथ दिया. कलिंग आटविक के लड़ाको ने वह लड़ाई लड़ी कि अशोक का दिल दहल गया. कलिंग युद्ध मे लाखो सैनिक मारे गये. लाखो लोग अकाल , महामारी अौर भुखमरी से मारे गये. 261 ई पूर्व मे कलिंग ने अशोक की अधीनता स्वीकार कर ली किंतु आटविक बस्तर ने अपनी स्वतंत्रता बनाये रखी. आटविक बस्तर को अशोक कभी जीत नही सका.
आटविक बस्तर पर अधिकार ना कर पाने की विफलता अशोक के एक शिलालेख मे इन पंक्तियो मे दिखायी देती है -"अंतानं अविजितानं" अर्थात आटविक जन अविजित पड़ोसी है’। कलिंग के युद्ध मे अपार जनक्षति के कारण अशोक का ह्रदय परिवर्तन हो गया. चंडशोक से अब वह धम्म अशोक बन गया था. अशोक ने आटविक पर अपना अधिकार करने की इच्छा त्याग दी.
आटविक के लडाकु योद्धा समय समय पर अशोक के लिये चुनौती उत्पन्न करते रहे थे , ये उसके साम्राज्य की शांति के लिये चिंता के विषय बने रहे. अपने तेरहवे शिलालेख मे आटविक राज्य के लिये स्पष्ट रुप से चेतावनी जारी करते हुए सम्राट अशोक कहते है -" यदि आटविक राज्य किसी प्रकार की कोई अराजकता उत्पन्न करता है तो वह उन्हे ऊचित जवाब देने के लिये तैयार है. साथ ही साथ यह भी कहते है कि वे वनवासियो पर दयादृष्टी रखते है, उन्हे धम्म मे लाने का प्रयत्न करते है."
सत्य केतु विद्यालंकार के शब्दो मे " जब राज्य कर्मचारियो ने अशोक से पुछा कि - क्या आटविक का दमन करने के लिये युद्ध किया जाए तो उसने यही आदेश दिया कि उन वनवासी जातियो को भी धर्म द्वारा ही वश मे लाया जाये."
तब अशोक ने आटविक लोगो से स्पष्ट रुप से चिंतित ना होने एवँ स्वयं को स्वाधीन समझने का निर्देश दिया -
“एतका वा मे इच्छा अंतेषु पापुनेयु,
लाजा हर्बं इच्छति अनिविगिन हेयू,
ममियाये अखसेयु च में सुखमेव च,
हेयू ममते तो दु:ख”!!
इन सभी विवरणो से एक बात स्पष्ट हो जाती है कि - निश्चित रुप से अशोक ने आटविक जनो को धम्म मे लाने का प्रयत्न किया होगा. विश्व शांति, गौतम बुद्ध के विचारो , और धम्म के संदेशो को कोने कोने तक पहुँचाने के लिये अशोक ने हजारो स्तुप बनवाये थे. अशोक ने आटविक बस्तर के वनवासियो को धम्म के द्वारा वश मे लाने के लिये यहां भी बौद्ध स्तुप बनवाये होंगे परंतु लम्बे समय व्यतीत होने एवं बाद मे अनेक वंशो के शासन के कारण अब मौर्य युगीन अवशेष अब धुंधले हो चुके है.
बस्तर मे मिली बौद्ध प्रतिमाये , भोंगापाल के बौद्ध चैत्य आदि मौर्य युग के बाद के ही माने गये है. बस्तर मे एक गुफा मे मौर्य कालीन लेख से मौर्यो के बस्तर आगमन की बात प्रमाणित हो जाती है. भविष्य में ,खुदायी मे यदि मौर्य कालीन सिक्के मिले तो उसमे किसी प्रकार का कोई आश्चर्य नही होना चाहिये !!
ओम सोनी













