10 जनवरी 2019

लुप्त होते बस्तर के बैल बाजार


बस्तर के हाट बाजार किसी भी सैलानी के लिये आकर्षण के केन्द्र होते है। हाट बाजार बस्तर की आदिम संस्कृति को करीब से देखने का सबसे अच्छा माध्यम है। सब्जियों, रोजमर्रा की चीजों , एवं अन्य आवश्यक वस्तुओं के हाट बाजारों के अलावा बस्तर के कुछ खास स्थानो में पशुओ का बाजार भी सजता है। व्यापारिक नगरी गीदम दक्षिण बस्तर का महत्वपूर्ण केन्द्र बिन्दु है। गीदम में आज भी बुधवार के दिन पशुओं को बाजार भरता है। यहां पशुओं से मतलब बैल, गाय की बाछियां, या पाढ़े से ही है। बाकि जानवरों का इस बाजार कोई लेना देना ही नहीं है। इसलिये यहां पुरे बस्तर में ऐसे पशु बाजारों को बैला बाजार ही कहते है।



बैल बाजार में अप्रैल से लेकर जून माह तक काफी रौनक रहती है अर्थात पशुओं की संख्या इन महिने में ज्यादा रहती है। इन बैल बाजारों में आदिवासी गाय की बाछियां, बैल, और पाढ़े खरीदने और बेचने के लिये आते है। आषाढ़ में नागर जोतने से पूर्व यहां के आदिवासी किसानों को बैल की जरूरत पड़ती है। इन बैल बाजारों से नागर जोतने के लिये आसानी से बैल या पाढ़े मिल जाते है। बस्तर में कई अंदरूनी गांवो में अब भी टै्रक्टर की पहुंच ना के बराबर है। 



इसलिये वे अंदर गांव के किसान नागर जोतने के लिये इन पशुओं पर ही निर्भर है। बस्तर में गाय की बड़ी बाछियों एवं गाय से भी नागर जोते जाते है। यहां गाय बैलों एवं भैसे की नस्ले बेहद निम्न स्तर की है। आदिवासी गाय भैंसो से दुध नहीं निकालते है। यहां की स्थानीय राउत जाति ही दुध निकालने का कार्य करती है। लगभग प्रत्येक आदिवासी के घर में गाय भैंस होते है। 


गरीब से गरीब धर में भी 100-50 मवेशी होते ही है। पैसों की जरूरत या फिर अधिक पशु होने के कारण इन बैल बाजारों में आदिवासी धर के मवेशी बेचने के लिये लाते है। कुछ आदिवासियों ने इसे अपना रोजगार भी बना लिया है। ये लोग उड़िसा के उमरकोट, कालाहांडी से सस्ते दामों में पशु खरीद कर बस्तर के इन बैल बाजारों में बेचने के लिये लाते है। इन्हें कुछ पैसों का फायदा हो जाता है। इतनी दुर से मवेशियों को पैदल ही लाते है। अपने गांवों से भी बाजार तक ये पैदल ही मवेशियों को लेकर आते है। अच्छे किस्म के बैल जोड़ी लगभग 20 से 30 हजार मे बिकती है। वहीं भैंसों की जोड़ी 25 से 35 हजार रू तक में मिल जाती है। गाय बाछी की जोड़ियां लगभग 10 से 15 हजार रू. तक बिक जाती है। 


कभी कभी सौदा नहीं जमता है तो फिर अगले बाजार को या अन्य जगह के बाजार में मवेशियों को ले जाया जाता है। वर्षा शुरू होने से पहले दो चार माह में ही बैल बाजारों में रौनक रहती है, साल के बाकी दिनों में बैल बाजार सिर्फ नाम मात्र रह जाते है। गीदम के अलावा जगदलपुर के डिमरापाल, लोहंडीगुडा जैसे जगहों में बड़े बड़े बैल बाजार लगते है। मुझे बचपन के वे दिन अच्छे से याद है आज गीदम में जहां बस स्टेंड है वहां कभी बैल बाजार भरता था। इस जगह को बैल बाजार ही कहते थे। बैलों की जोड़ियां चारों तरफ खुंटियों में बंधी रहती थी। अब बैल बाजार नगर से बाहर हो गया है। कृषि मे अब में टै्रक्टर के प्रयोग से नागर जोतने के लिये बैलों की आवश्यकता कम रह गई है। जिसके कारण बस्तर के ये बैल बाजार धीरे धीरे लुप्त होते जा रहे है। 
...ओम सोनी, दंतेवाड़ा।