21 मार्च 2017

बस्तर का बाहूबली झरना - हांदावाड़ा जलप्रपात

बस्तर का बाहूबली झरना - हांदावाड़ा जलप्रपात......!


प्रकृति ने बस्तर में जी भर कर अपना सौंदर्य लुटाया हैं। अद्वितीय प्राकृतिक खुबसूरती ने बस्तर को सर्वोत्तम पर्यटन स्थल बनाया है। यहां की हरी भरी वादियां , गगनचुम्बी चोटियाँ  ,  खुबसुरत झरने किसी भी व्यक्ति का मनमोह लेते हैं। बस्तर में दंतेवाड़ा जिला भी पर्यटन स्थलों के मामले में अग्रणी  है।


दंतेवाड़ा में जहां घने जंगलो में ऊँची पर्वत चोटी पर गणेश जी विराजित हैं वहां प्रकृति एवँ इतिहास का अनूठा संगम दिखाई देता हैं , इसके साथ ही विशाल, भव्यतम झरना हांदावाड़ा जाने का मार्ग भी दंतेवाड़ा से ही जाता है। बस्तर के युवाओं में और बस्तर को करीब से जानने वालों लोगों में ढोलकल के बाद हांदावाड़ा जाने की इच्छा देखने को मिलती है। 

कुछ दिनो पूर्व यहां पर बाहूबली 2 की शूटींग की बात चली थी जिसके फलस्वरूप पर्यटकों में  हांदावाड़ा जलप्रपात को देखने की इच्छा अधिक हो गई।  अपनी इसी इच्छा के कारण स्थानीय लोगो ने इस जलप्रपात के सौंदर्य को करीब से निहारा हैं। हर सप्ताह यहां स्थानीय पर्यटको का मेला सा लगने लग गया था।
यह जलप्रपात बाहुबली फिल्म के जलप्रपात की विशालता के तुलना में  किसी भी तरह से कम नहीं हैं। पास के गांव हांदावाड़ा के कारण यह जलप्रपात हांदावाड़ा जलप्रपात के नाम से जाना जाता हैं, परंतु बाहुबली फिल्म की शूटींग एवँ बस्तर का विशाल झरना होने के कारण स्थानीय युवाओं में यह बाहुबली जलपर्वत के रूप में चर्चित है। 

हांदावाड़ा जलप्रपात नारायणपुर जिले के ओरछा विकासखण्ड में आता हैं। जिला मुख्यालय दंतेवाड़ा से २० किलोमीटर की दुरी पर ऐतिहासिक नगरी बारसूर स्थित है। बारसूर से ०४ किलोमीटर की दुरी पर मूचनार नामक ग्राम में बस्तर की जीवनदायिनी इन्द्रावती बहती हैं।


इंद्रावती नदी के पार लगभग २५ से ३० किलोमीटर की दुरी पर अबूझमाड़ में हांदावाड़ा नाम का  छोटा सा ग्राम है। इस ग्राम से ०4 किलोमीटर की दुरी पर धारा डोंगरी की पहाड़ी में गोयदेर नदी लगभग 350 फीट की ऊंचाई से गिरकर बहुत ही खूबसूरत एवं चरण बद्ध विशाल जलप्रपात का निर्माण करती है।

बांस के झुरमुटों से निकलते ही पर्यटकों को हांदावाड़ा झरने की विशालता एकदम से अचंभित कर देती है। इसकी विशालता के सामने मुख से धीमी आवाज में बस एक शब्द निकलता है अदभूत ! झरने खूबसूरती में पर्यटक इतना रम जाता है कि उसे वहाँ से हटने का मन ही नहीं करता है।

बस एकटक इस झरने की विशालता को देखते रहो। बहुत ही रोमांचक एवं मन को आनंदित करने वाला यह दृश्य कई दिनों तक आँखों के सामने घुमता रहता है।जलप्रपात तक पहूँचने के लिये चार किलो मीटर के घने जंगल में  पैदल चलना पड़ता है। जंगल बेहद घना एवँ डरावना हैं। गांव वालो की मदद के बिना यहां जाना असंभव एवँ खतरनाक हैं।

जलप्रपात की विशालता , अप्रतिम सुन्दरता चार किलोमीटर की पैदल थकान दूर कर देती हैं। झरने की फुहारे तन मन को पुनः ताजा कर देती है।   इस जलप्रपात के  ऊपर एक छोटा सा झरना भी है। झरना छोटा है आसपास की कुश की झाडियां के कारण वह काफी सुन्दर लगता है। झरने के ऊपर से घाटी में चारो तरफ फैली हरियाली एवं नीचे गिरते पानी की कल कल आवाज मन को बहुत ही रोमांचित कर देती है।

इस झरने की आवाज 4 किलोमीटर की दुरी पर स्थित बस्ती में  साफ साफ सुनाई देती है। बरसात के दिनों में यह जलप्रपात अपने विशाल रूप को पा लेता है। गर्मी के दिनों में नदी में पानी कम होने के कारन इसकी विशालता थोड़ी काम हो जाती है। वर्षाकाल में इन्द्रावती नदी अपने उफान पर होती है। इसलिए उस समय यहाँ पहुचना बहुत ही कष्ट दायक होता है। नवम्बर से मार्च तक के समय  में इस झरने का पर्यटन का किया जा सकता है। यहाँ पहुचने के लिये पैदल ही जाना  पड़ता है ।

माओवाद से प्रभावित क्षेत्र होने के कारण नदी के उस पार सड़क नहीं है।  पतली पगडण्डी में चलते हुए यहाँ पंहुचा जा सकता है। दोपहिया वाहन से अगर जाना हो तो मूचनार में इन्द्रावती नदी पार कर जाना पड़ता है। डोंगी से बाईक समेत नदी पारकर हांदावाड़ा जा सकते है।  यहाँ जाने के लिए किसी जानकार व्यक्ति को साथ ले जाना ही उचित है अन्यथा कई दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। 

आलेख ओम सोनी दंतेवाड़ा 
मो- 8878655151

चन्द्रादित्य सरोवर बारसुर

सरोवर के किनारे, नागवंशी राजा जगदेकभूषण धारावर्ष और सामंत चन्द्रादित्य का वार्तालाप !!


नागवंशियो का ऐतिहासिक ताल , जलक्रीड़ा करते उसमें बाल!!
खिला किनारे उसके पलाश , बारसुर ने किया हैं मोहपाश !!

छिन्दक नागवंशी शासको ने बस्तर में कई सदियो तक शासन किया हैं. आज के बारसुर को तत्कालीन छिन्दक नागवंशी शासको की राजधानी होने का गौरव प्राप्त हैं. नागवंशी शासनकाल में बारसुर बस्तर का सर्वाधिक बड़ा एवँ महत्वपूर्ण नगर था. विभिन्न शासको ने बारसुर में अनेको मन्दिरो एवँ तालाबो का निर्माण करवाया था. बस्तर भूषण के अनुसार मन्दिरो की संख्या 147 थी एवँ इतने ही तालाब भी बनवाये गये थे. सच में , बारसुर में 147 मन्दिर एवँ इतने ही तालाब ज़रूर रहे होंगे , इसमें ज़रा भी संदेह नहीं हैं. 


आज भी कुछ मन्दिर सही अवस्था में विद्यमान हैं , कुछ ध्वस्त अवस्था में हैं , कुछ मन्दिरो के तल के अवशेष ही हैं , और कुछ तो अभी टीलो में दबे हुए हैं जो आज भी  दुनिया के सामने आने के लिये इंतजार में हैं. छिन्दक नागवंशी शासको ने मन्दिरो के साथ साथ जन कल्याण के लिये सैकड़ो तालाब भी खुदवाये थे. उनमे से कुछ तालाब आज भी हैं , कुछ सुख गये , तो कुछ खेतो में तब्दील हो चुके हैं. गूगल अर्थ की सहायता से बारसुर के तालाब देखे ज़ा सकते हैं.



बारसुर में ऐसा ही एक विशाल तालाब हैं जिसे आज बुढ़ा तालाब कहा जाता हैं. यह तालाब लगभग एक हजार वर्ष पुराना हैं. तत्कालीन समय  राजधानी होने के कारण बारसुर बहुत ही बड़ा नगर था. राज परिवार , शासन के बड़े अधिकारी एवँ हजारो लोग बारसुर में ही निवास करते थे. उनकी पेयजल एवँ जल से सम्बंधित सारी आवश्यकताये इन तालाबो से ही पुरी होती थी.
बारसुर के इस बुढा तालाब का अपना एक इतिहास हैं. बारसुर में मिले एक शिलालेख के अनुसार 1060 ईस्वी में छिन्दक नागवंशी राजा जगदेकभूषण धारावर्ष का शासन था. उनके एक सामंत थे चन्द्रादित्य महाराज. वे अम्मा ग्राम के स्वामी थे.ये बडे ही दयालू , भगवान की भक्ति में लीन रहने वाले लोकप्रिय व्यक्ति थे. इन्होने बारसुर में भगवान शिव को समर्पित एक मन्दिर का निर्माण करवाया था जो उनके नाम पर चन्द्रादित्य मन्दिर के नाम से जाना जाता हैं. यह मन्दिर वर्तमान में  सुरक्षित अवस्था में आज भी बारसुर में विद्यमान हैं. धुप में लोगो के विश्राम हेतु विशाल उपवन भी बनवाया था. मन्दिर के पास ही जनकल्याण के लिये एक विशाल तालाब खुदवाया था यह तालाब उनके नाम पर चन्द्र सरोवर के नाम से जाना जाता था. वर्तमान में यह बुढ़ा तालाब के नाम से अध्यतन लोगो की जल सम्बंधी आवश्यकताओ की पूर्ति कर रहा हैं.



महाशिवरात्री के दिन तुलार से वापसी के समय मैं और मेरे मित्र कुलेश्वर दोनो इस प्राचीन तालाब और किनारे लगे टेसू के वृक्ष की खूबसुरती को निहारने हेतु , कुछ समय के लिये इसके पास रुक गये थे. वहां मैं अपनी कल्पना में खो गया था. हम दोनो के बीच कुछ बाते भी हूई थी. आईये अाप भी मेरी कल्पना में खो जाईये.
तत्कालीन  राजधानी बारसुर में महाशिवरात्री के दिन सभी शिवालयो में प्रजा भगवान शिव की पूजा अर्चना में व्यस्त थे, राजधानी की सारी प्रजा शिव की भक्ति में डूबी हूई थी , पुरा बारसुर शिवमय हो गया था. पलाश (टेसू) के लाल , भगवा रंग के फूलो से पुष्पित हजारो वृक्ष राजधानी और चन्द्रसरोवर की खूबसूरती को बढ़ा रहे थे.
राजा धारावर्ष और सामंत चन्द्रादित्य आज राजधानी में शिवालयो में पूजा अर्चना कर रथ में सवार होकर राजधानी से कुछ दुरी पर स्थित तुलार के गुहा में स्थापित शिवलिंग के दर्शन हेतु गये थे. वापस राजधानी में आने में उन्हे सायं हो गयी थी.
राजा धारावर्ष ने राजधानी में प्रवेश करते ही सारथी को चन्द्रसरोवर के पास रोकने का आदेश दिया. रथ के पहिये सरोवर के सामने रुक गये.
सायं 4 बजे का समय था, आसमान में काले बादल छाये हुए थे , सूर्य की रोशनी मद्धम पड गयी थी, सरोवर का जल  ह्ल्का सुनहरा दिखाई पड रहा था , आसमान में छाये काले बादलो के कारण  कालिमा युक्त वातावरण था , चारो तरफ टेसू के लाल फूलो से लदे वृक्ष सरोवर की खूबसूरती को दुगुना कर रहे थे , ह्ल्की हवा चल रही थी .
दोनो रथ से नीचे उतरकर सरोवर के सामने पहूँच गये , दोनो में वार्तालाप होने लगा ...
सामंत चन्द्रादित्य - प्रभु ,  क्षमा चाहता हूँ ,परंतु यहां सरोवर के सामने इस प्रकार विचरण करने का उद्धेश्य जान सकता हूँ.
राजा धारावर्ष - सामंत , मैं आपके निर्देशन में बने इस सरोवर  की खूबसूरती को निहारना चाहता था. वाह ! यहां की खूबसूरती को देख कर बहुत आनन्द हो रहा हैं.
सामंत - प्रभु , भगवान शिव के आशिर्वाद से आज यह आनन्दित दृश्य हमे दिखाई दे रहा हैं.
सामंत चन्द्रादित्य - महाराज , इतने आरामदायी रथ होने के बाद   भी शरीर के अंगो में हल्का दर्द हो रहा हैं, प्रभु , आपके मुख पर भी दर्द परिलक्षित हो रहा हैं.
राजा धारावर्ष - तुलार के मार्ग की  कष्टदायी यात्रा से उत्पन्न मेरा  यह दर्द तो कुछ समय में दूर हो जायेगा. आपने तो इस सरोवर का  निर्माण करवा कर , यहां की प्रजा की जल समस्या का निवारण कर उनका दर्द दूर किया हैं.
सामंत - महाराज, यह सब आपकी कृपा हैं. अाप बहुत महान हैं जो जन कल्याण से जुडे कार्यो के लिये मुक्तहस्तो से धन उपलब्ध कराते हैं.
सामंत  - (सरोवर में जल क्रीडा करते हुये बालको की तरफ इशारा करते हुए कहा) , राजन , वहां  देखिये ,  नन्हे राजकुमार, अपने मित्रो के साथ , निर्वस्त्र  होकर जलक्रीडा कर रहे हैं.


राजा - सामंत , यह आपकी मेरे उपर बहुत बडी कृपा हैं. इस सरोवर के निर्माण के बाद आज नन्हे राजकुमार और उसके मित्रो की जल क्रीडा करने में मिल रहे खुशी को देख कर मेरा मन बेहद प्रफुल्लित हो गया. आज उनके चेहरो की यह हँसी बहुत ही मुल्यवान हैं. उनके मुख पर जल के अपव्यय का अब भय नहीं हैं. बडी नीडरता एवँ उन्मुक्त होकर वे जलक्रीडा कर रहे हैं.
सामंत  जलक्रीडा में व्यस्त राजकुमारो को निर्वस्त्र देखकर अपनी हँसी को ना रोक पाये और जोर जोर से हँसने लगे.
राज़ा - सामंत , अपनी इस तेज हँसी पर लगाम रखो , आज़ हम जलक्रीडा करते बालको की खुशी में किसी भी प्रकार का व्यवधान नहीं चाहते हैं. उन्हे जी भर कर जल क्रीडा करने दो.
सामंत - क्षमा चाहता हूँ राजन , मैं पहली बार राज़कुमारो को इस प्रकार निर्वस्त्र होकर जल क्रीडा करते देखा , इस कारण अपनी हँसी रोक नहीं पाया.
राजा - भविष्य में इस बात का ध्यान रखे ,सामंत. बालको की यह आनन्दबेला बहुत ही मुल्यवान हैं. मैं आपके अन्तरमन की कल्पनाओ को समझ सकता हूँ.
सामंत - (थोडी चापलूसी करते हुए ) राजन, आपके राजत्व काल में प्रजा बेहद सुखी हैं, चारो तरफ सुखमय वातावरण हैं. प्रजा सम्पन्न हैं. आज  प्रजा सभी शिवालयो में यही मन्नत मांग रही हैं कि अगले जन्म में भी हम परम प्रतापी , वीर ,  परम महेशवर , जगदेकभूषण श्रीमंत धारावर्ष ही हमारे राजा के रूप में प्राप्त हो.
राजा - मुख पर ह्ल्की सी मुस्कुराहट.
सामंत - सत्य प्रभु , आपके शासन में प्रजा निर्भीक एवँ नीडर होकर रहती हैं. वही यहां के पशु - पक्षी भी बेहद नीडर होकर जीवन का  सुख् भोग रहे हैं.  (सामंत ने एक टेसू के वृक्ष में फूलो के रसास्वादन करते हुए पक्षी की तरफ इशारा किया) 


वो देखिये राजन ! एक पक्षी भी आपके इस सुखमय शासन में नीडर होकर टेसू के लाल फुलो का रसपान कर रहा हैं जो इस बात का सबूत हैं कि आपके राजत्व काल में प्रजा के साथ पशु पक्षी भी पुरी स्वतंत्रता से जीवन य़ापन करते हैं. उन्हे अकारण परेशान नहीं किया जाता हैं. सभी को अभय प्राप्त है. वे पुरी नीडरता से विचरण कर सकते हैं , अपनी बात कह सकते हैं.
राजा के मुख पर गर्व झलकने लगा , गर्विली मुस्कान छा गयी. वे पक्षी की तरफ एकटक देखने लग गये.
तभी सामंत ने राजा को जोर से हिलाया , राजा का ध्यान पक्षी पर से हट गया.
राजा ने  सामंत से पुछा- क्या हुआ ? 


सामंत (कुलेश्वर)- ओम ,कौवा को क्या देख रहा हैं ? घर नहीं चलना हैं क्या? लेट हो रहा हैं.
राजा धारावर्ष (ओम) - हां , हां , चल-चल निकलते हैं. मैं भी कहां खो गया था यार.
सीना तानकर  , चेहरे पर गर्व से भरी मुस्कान लेकर , रथ (बाईक) पर सवार होकर हम घर की ओर निकल पडे.
यह बुढ़ा तालाब हजार सालो से नगर के लोगो एवँ पशुओ के पीने ,स्नान आदि ज़रूरत को पुरा कर रहा हैं. कई सालो से यह तालाब गंदगी एवँ ज़लीय पौधो से भरा हुआ था , तालाब के आसपास गंदगी का आलम था किन्तु ज़िला प्रशासन एवँ स्थानीय लोगो ने इस तालाब को वैसे ही साफ सुथरा एवं स्वच्छ कर दिया ,जैसा यह हमारे अर्थात राजा धारावर्ष के शासन अवधि में था

17 मार्च 2017

भोंगापाल , बुद्ध और सम्मोहन चूर्ण !! Bhongapal Buddha

भोंगापाल , बुद्ध और  सम्मोहन चूर्ण !!
- ओम सोनी


भोंगापाल में खुदायी में प्राप्त बौद्ध चैत्यगृह तथा मंदिरों के भग्नावशेष  बस्तर में बौद्ध भिक्षुओं के आवागमन तथा निवास के प्रमाणों को पुष्टि प्रदान करते हैं।भोंगापाल जहां खुदाई में बौद्धकालीन चैत्य मंदिर, सप्त मात्रीका मंदिर और शिव मंदिर के भग्नावशेष प्राप्त हुए हैं!!

कोंडागांव जिले के केशकाल और कोंडागांव के मध्य स्थित फरसगांव से 16 किलोमीटर पश्चिम में बड़े डोंगर से आगे ग्राम भोंगापाल स्थित है। भोंगापाल से तीन किलोमीटर दूर तमुर्रा नदी के तट पर एक टीले में विशाल चैत्य मंदिर सप्तमातृका मंदिर और शिव मंदिर के भग्न अवशेष प्रापत हुए हैं। बौद्ध प्रतिमा टीले को यहां के स्थानीय लोग डोकरा बाबा टीला के नाम से भी जानते हैं!!
सप्त मात्रीका  टीला या रानी टीला, बौद्ध प्रतिमा टीला से 200 गज की दूरी पर स्थित है। इसके अतिरिक्त यहां एक बड़ा शिव मंदिर एवं अन्य प्राचीन मंदिरों के भग्नावशेष हैं  किन्तु उनकी कोई प्रतिमा प्राप्त नहीं हुई है!!
यहां से प्राप्त बौद्ध चैत्य तथा प्राचीन मंदिर 5-6वीं शताब्दी के हैं। चैत्य मंदिर का निर्माण एक ऊंचे चतूबरे पर किया गया है। मंदिर पूर्वाभिमुखी है। इस चबूतरे के मंदिर के भग्नावशेषों का पिछला हिस्सा अद्र्ध-वृत्ताकार है जिस पर मंदिर का गर्भगृह, प्रदक्षिणा पथ, मंडप तथ देवपीठिका के भग्नावशेष हैं। यह कहा जा सकता है कि संभवत: यह बौद्ध भिक्षुओं का निवासस्थल रहा होगा!! खुदाई से पहले यहां एक विशाल बौद्ध प्रतिमा प्राप्त हुई थी। यह प्रतिमा प्राचीन होने के साथ-साथ खंडित अवस्था में है। चैत्य मंदिर ईटों से निर्मित है और यह छत्तीसगढ़ का प्रथम व एकमात्र चैत्य मंदिर है जो महत्वपूर्ण पुरातात्विक धरोहर है!!

 यहां के स्थानीय सिरहा लोग इस प्राप्त बौद्ध प्रतिमा को तंत्र विद्या के देवता गांडादेव के नाम से संबोधित करते हैं तथा सप्तमातृका को गांडादेव की पत्नियां मानते हैं!!

भोंगापाल में प्राप्त द्विभुजी बुद्ध की प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में है। दोनों हाथ खंडित है।  विशाल ठोस प्रभामंडल और सिकुड़ा हुआ पेट है। मुखमंडल सौम्य अंडाकार है!!

सप्तमातृका मंदिर के भग्नावशेष चैत्य मंदिर टीले से दो सौ गज की दूरी पर मिलते हैं। ईंटों से निर्मित एक मंदिर पश्चिमाभिमुखी है। इस मंदिर का समय 5वीं शताब्दी ईस्वी माना जाता है। इसके उत्तरी भाग में एक अन्य अत्यंत प्रचीन पूर्वाभिमुखी मंदिर के भग्नावशेष प्राप्त होते हैं यह मंदिर ईटों से निर्मित था, किन्तु यहां कोई प्रतिमा नहीं मिली है!!

प्राचीन टीले के दक्षिणी भाग में ईटों से निर्मित एक अन्य पूर्वाभिमुखी मंदिर है, जिसे यहां के लोग बड़े शिव मंदिर के नाम से पुकारते हैं. इस मंदिर में गर्भगृह है, गर्भगृह में जलहरी युक्त शिवलिंग है। जलहरी धरातल पर स्थित है!!

यहां के लोग बुद्ध की प्रतिमा को भोंगा देवता के नाम से भी पूजते हैं. यहां तांत्रिक शक्तियो की प्राप्त के लिये लोग शिवलिंग ओर बुद्ध की प्रतिमा का प्रयोग करने लगे थे. यहां उड़ी अफवाह के अनुसार लोगो ने सम्मोहन शक्ती की प्राप्त के लिये बुद्ध प्रतिमा की नाक ओर शिवलिंग का उपरी हिस्सा घिस कर प्राप्त दोनो चूर्ण को मिला कर सम्मोहन चूर्ण बनाने लग गये थे. ओर इस चूर्ण का खासकर प्रेमियो ने अपनी प्रेमिका को प्राप्त करने में उपयोग करने लग गये थे. विभिन्न तांत्रिको ने भी इन पुरा प्रतिमा को घिस कर सम्मोहन चूर्ण का नाम देकर बहुतो को मूर्ख बनाया. बुद्ध की प्रतिमा का नाक ओर शिवलिंग का उपरी हिस्सा पुरी तरह से सम्मोहन चूर्ण बनाने में घिस गया  किंतु बाद में गांव वालो ने एक कमरे में इस बुद्ध प्रतिमा को स्थापित कर दिया!!

बौद्ध चैत्यगृह तथा मंदिरों के भग्नावशेष  बस्तर में बौद्ध भिक्षुओं के आवागमन तथा निवास के प्रमाणों को पुष्टि प्रदान करते हैं। निश्चित ही तातकालिन समय में बस्तर में बौद्ध धर्म का बोलबाला रहा होगा. पास के जैपौर , बोरीगुम्मा एवँ आसपास के ओडिसा के गांव में बौद्ध प्रतिमाये एवँ बौद्ध अवशेष प्राप्त होते हैं.  दक्षिन बस्तर में वर्तमान में अभी तक बौद्ध धर्म के कोई ठोस अवसेष प्राप्त नहीं हुए खोज जारी हैं.