मंदिर की प्रस्तर दीवारों पर मुर्गा लड़ाई का दृश्य......!
बस्तर के मुर्गा लड़ाई से आप सभी परिचित होंगे। यहां जनजातीय समाज में परंपरागत मनोरंजन के तौर पर मुर्गो की लड़ाई सदियों से प्रचलित है। स्थानीय भाषा में मुर्गो की लड़ाई को कुकड़ा गाली कहते है। ये कोई साधारण मुर्गो की लड़ाई नहीं होती है। मुर्गे की प्रजाति असील बेहद लड़ाकू गुस्सैल एवं आक्रमक होती है। ग्रामीण असील मुर्गे को विशेष तौर पर लड़ने के लिये प्रशिक्षित भी करते है। \
जिस प्रकार बाक्सिंग के लिये रिंग होता है उसी तरह मुर्गो के लड़ने के लिये नियत स्थानों पर गोलाकार तारबंदी युक्त रिंग होते है। इस रिंग के बाहर लोगों की भीड़ जमा होती है जो अंदर लड़ते हुये मुर्गो के दृश्यों का आनंद लेते है। मुर्गो की लड़ाई भी बेहद खुनी होती है क्योंकि इन मुर्गो के पैर में चाकू बांधा जाता है जिसे काती कहते है।
काती बांधने की भी कला है।काती बांधने वालों को कातकीर कहा जाता है जो इस कला के माहिर होते हैं। लड़ाई के दौरान एक दुसरे को धारदार काती के वार से मुर्गे एक दुसरे को घायल कर या मारकर विजयी होते है। जब दो मुर्गे लड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं तो दर्शक के रूप में उपस्थित लोग अपने मनपसंद मुर्गे पर दांव लगाते हैं। मुर्गे की लड़ाई आमतौर पर 10 मिनट तक चलती है।
जीतने वाले मुर्गे के मालिक को पैसा और मरा हुआ मुर्गा दोनो मिलता है। मुर्गे की लड़ाई देखने के लिये उपस्थित लोगों की भीड़ में अधिकतर लोग अपने अपने मुर्गो को जोर आजमाईश के लिये लाते है। साथ ही छोटे मोटी दुकाने भी सजती है। कुल मिलाकर मनोरंजन के साथ एक छोटी सी हाट बाजार भी हो जाती है। मुर्गे की लड़ाई के लिये ग्राम एवं दिवस निश्चित होते है। अधिकांशत सायम चार बजे ही मुर्गा लड़ाई प्रारंभ होती है।
मुर्गा लड़ाई एक समय पुरे भारत में हजारों सालों से प्रचलित थी किन्तु अब मात्र जनजातीय बहुल क्षेत्रों जैसे बस्तर में मुर्गा लड़ाई का खेल देखने को मिलता है। आज से हजार साल पहले दक्षिण भारत में भी इसी तरह की मुर्गा लड़ाई का खेल होता था। कर्नाटक के चामराज जिले में गुंडलूपेट एक छोटा सा कस्बा है इस कस्बे के विजय नारायण मंदिर की प्रस्तर दीवारों पर मुर्गा लड़ाई का दृश्य अंकित है।
इसमें दो मुर्गे आपस में लड़ रहे है वहीं उसके मालिक अपने अपने मुर्गो को जीतने के लिये प्रोत्साहित कर रहे है। यह मंदिर 10 वी सदी के लगभग पश्चिमी गंग राजाओं के काल में निर्मित माना गया है। इस मंदिर की दीवारों पर उत्कीर्ण मुर्गा लड़ाई के दृश्य इस बात को प्रमाणित करते है कि एक समय पुरे भारत में खासकर दक्षिण भारत में भी मुर्गा लड़ाई का मनोरंजक खेल प्रचलन में था।
गुंडलूपेट के मंदिर में उत्कीर्ण मुर्गा लड़ाई के दृश्य के चित्र के लिये थामस एलेक्जेंडर सर को धन्यवाद।
आलेख -ओम सोनी दंतेवाड़ा बस्तर।

















