23 मार्च 2019

बस्तर का प्रसिद्ध गुडिया खाजा

बस्तर का प्रसिद्ध गुडिया खाजा....!

बस्तर के हाट बाजार आदिम संस्कृति के साथ साथ यहां की खानपान संस्कृति को देखने समझने का महत्वपूर्ण जरिया है। हाट बाजारों में यहां पर स्थानीय मिठाईयों एवं व्यंजनों की दुकाने भी सजती है। कुछ लोग वहीं बनाकर बेचते है तो कुछ घर से बनाकर लाते है।
बाजारों में इन व्यंजनों की काफी डिमांड रहती है जिसके कारण ये हाथों हाथ बिक जाते है। बाजारो में आप अरसा, चापा लाड़ू, गुलगुलियां, चापड़ा चटनी जैसे कई व्यंजनों को बेचती हुई महिलायें दिखाई देती है। इनमें से एक व्यंजन है गुडिया खाजा।

बस्तर में पारंपरिक व्यंजनों में गुडियाखाजा काफी लोकप्रिय है। इस मिठाई को स्थानीय बोली मे गुड़िया खाजा कहा जाता है। हलवाई जदुराम ठाकुर ने बताया कि इसे बनाने के लिए सबसे पहले गुड़ को पानी के साथ उबाला जाता है।
फिर चावल आटा का मिश्रण कर इसे सफेद होते तक हाथ से खीचा जाता है। फिर चकरी बनाकर धूप मे सुखा देते है। सूखने के बाद यह बनकर तैयार हो जाता है। इसे चिवड़ा के साथ खाया जा सकता है। यह मिठाई सेहत के लिए भी लाभदायक माना जाता है।
फोटो सौजन्य - हेमंत बस्तरिया जी।

19 मार्च 2019

विष्णु लक्ष्मी का अद्भुत श्रृंगार

विष्णु लक्ष्मी का अद्भुत श्रृंगार...!
जगदलपुर के पास ही मावलीपदर नाम का छोटा सा गाँव है. इस गाँव मे मावली माता के सम्मान मे हर साल छोटी मढ़ई होती है. मढ़ई मे देव विष्णु लक्ष्मी की प्रतिमा को बेहद दुर्लभ आभूषणो से सुसज्जित किया जाता है. इनका यह अद्भुत श्रृंगार श्रद्धालु मन को बेहद प्रभावित करता है.

आसपास के ग्रामीण भी अपने ग्राम के देवी देवताओ के प्रतीक छत्र लाट डँगईया लाते है. देवी की पूजा अर्चना की जाती है. श्रद्घा अनुसार नारियल वस्त्र आदि का चढावा चढाते है. नाच गाकर देवी की वन्दना की जाती है.
मन्दिर मे स्थापित विष्णु लक्ष्मी की प्रतिमा को डोकरा डोकरी दाई के नाम से पूजा की जाती है. मेले का आयोजन कर भगवान से सुख समृद्धि की कामना की जाती है.

अभी बस्तर के हर ग्राम मे मेले जात्रे हो रहे हैं जिसमे आदिम संस्कृति रीति रिवाज को जानने समझने का अवसर प्राप्त होता है. बहुत ही सुन्दर फोटो के लिये शकील रिजवी भैया को बहुत धन्यवाद!
Bastar Bhushan:
follow us on Instagram

मोचो संगी कुकड़ा

मोचो संगी कुकड़ा....!

इंसान और मुर्गे की दोस्ती सदियों पुरानी है. पुराने समय मे मुर्गा जब बाँग देता था तभी इंसान की नींद टूटती थी. आजकल तो मोबाइल अलार्म का जमाना है. बहुत से बच्चो ने तो कभी मुर्गे की बाँग सुनी ही नहीं होगी.. या सुने हुए जमाना हो गया होगा.


मुर्गे को अधिकतर मांस के लिये ही पाला जाता है किंतु बस्तर मे आदिवासी भाई मुर्गे को अपने संगी हमसफ़र के रूप मे पालते है. मुर्गे को अपने सीने से इस तरह चिपका कर रखते हैं जैसे दुधमुहे बच्चे को माँ.
बस्तर मे मुर्गा सिर्फ़ माँस के लिये नहीं पाला जाता वरन मुर्गो की लड़ाई से मनोरंजन के लिये पाला जाता है. मुर्गा के लिये यहाँ विशेष शब्द कुकडा प्रचलित है और मुर्गो की लड़ाई कुकडा गाली कहलाती है. यह कुकडा गाली आदिवासियो के मन बहलाने का इतना महत्वपूर्ण साधन हैं जितना हमारे लिये मोबाइल है.


कुकडा गाली के लडाकू मुर्गे भी बेहद खास होते हैं. आदिवासी इनका विशेष ध्यान रखते हैं.मुर्गो को अच्छा खिलाते पिलाते है. सब तरह से ख्याल रखते हैं.
कुकडा गाली मे हारने पर मुर्गे के शोक मे खुब लान्दा पीते है और जब जीतते है तो लान्दा के साथ सल्फ़ी चखना सब चलता है. मुर्गे को भी शराब पेश की जाती है. शायद ही हमने कभी किसी जानवर का इतना ख्याल रखा हो...उससे कही ज्यादा बस्तर मे मुर्गे का ख्याल रखा जाता है. कभी बस्तर के मुर्गा बाज़ार देखिये... मुर्गो पर बरसता इंसानी प्रेम तो यही दिखेगा और कही नहीं... 
ओम सोनी.

instagraam पर follow के लिये इस link पर क्लिक करे