मोचो संगी कुकड़ा....!
इंसान और मुर्गे की दोस्ती सदियों पुरानी है. पुराने समय मे मुर्गा जब बाँग देता था तभी इंसान की नींद टूटती थी. आजकल तो मोबाइल अलार्म का जमाना है. बहुत से बच्चो ने तो कभी मुर्गे की बाँग सुनी ही नहीं होगी.. या सुने हुए जमाना हो गया होगा.
मुर्गे को अधिकतर मांस के लिये ही पाला जाता है किंतु बस्तर मे आदिवासी भाई मुर्गे को अपने संगी हमसफ़र के रूप मे पालते है. मुर्गे को अपने सीने से इस तरह चिपका कर रखते हैं जैसे दुधमुहे बच्चे को माँ.
बस्तर मे मुर्गा सिर्फ़ माँस के लिये नहीं पाला जाता वरन मुर्गो की लड़ाई से मनोरंजन के लिये पाला जाता है. मुर्गा के लिये यहाँ विशेष शब्द कुकडा प्रचलित है और मुर्गो की लड़ाई कुकडा गाली कहलाती है. यह कुकडा गाली आदिवासियो के मन बहलाने का इतना महत्वपूर्ण साधन हैं जितना हमारे लिये मोबाइल है.
कुकडा गाली के लडाकू मुर्गे भी बेहद खास होते हैं. आदिवासी इनका विशेष ध्यान रखते हैं.मुर्गो को अच्छा खिलाते पिलाते है. सब तरह से ख्याल रखते हैं.
कुकडा गाली मे हारने पर मुर्गे के शोक मे खुब लान्दा पीते है और जब जीतते है तो लान्दा के साथ सल्फ़ी चखना सब चलता है. मुर्गे को भी शराब पेश की जाती है. शायद ही हमने कभी किसी जानवर का इतना ख्याल रखा हो...उससे कही ज्यादा बस्तर मे मुर्गे का ख्याल रखा जाता है. कभी बस्तर के मुर्गा बाज़ार देखिये... मुर्गो पर बरसता इंसानी प्रेम तो यही दिखेगा और कही नहीं...
ओम सोनी.
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