8 जनवरी 2024

दीवाड़ पण्डुम (दियारी तिहार ) माड़का राज देव, कामालूर

दीवाड़ पण्डुम (दियारी तिहार ) माड़का राज देव, कामालूर

दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा क्षेत्र में दीवाड़ पण्डुम या दियारी तिहार के अवसर पर विभिन्न आँगा देव देवस्थानों पर विशेष विधान संपन्न किया जाता है।प्रस्तुत तस्वीर माड़का राज देव, कामालूर ग्राम का है जो बारसा समुदाय के लोगों का ईष्ट देव है। दियारी तिहार में प्रातः देव स्नान, पूजन विधान एवं नई फसल के रुप में धान, कुम्हड़ा, सेमी आदि अर्पित करने के बाद विशेष विधान संपन्न किया जाता है।

समुदाय का कोई एक व्यक्ति आँगा देव को कंधे पर लेकर खड़े हों जाता है तथा सेवादार के द्वारा आगे का विधान प्रारम्भ किया जाता है। समुदाय के किसी सदस्य के घर में समस्या होने पर देव के सेवादार अथवा मुखिया के द्वारा कारण बोला जाता है, जिस कारण पर देव स्वतः झुक जाता है, तब ऐसा माना जाता है कि इस कारण से समस्या हों रही है एवं उसका निराकरण किया जाता है। इसी प्रकार किसी शुभ कार्य हेतु निवेदन करने पर जब देव झुक जाता है तब मान लिया जाता है कि कार्य संपन्न होगा।

मड़का राज देव का निवास स्थान कामालूर है, जहाँ देव गुड़ी में यह विधान संपन्न होता है। बारसा समुदाय दंतेवाड़ा जिले में मुख्य रुप से मटेनार, गमावाड़ा, मोलसनार, कामालूर, कुपेर, गोंदपाल, चितालंका सुकमा जिले में कुन्ना, बारसेरास तथा बीजापुर जिला में मुरतोंडा ग्राम में निवासरत है।

लेख एवम चित्र साभार श्री अक्षय बघेल, शासकीय दंतेश्वरी स्नातकोत्तर महाविद्यालय दंतेवाड़ा 

3 जनवरी 2024

बीजापुर जिले में कोंडराज देव का जात्रा

अगहन मास की पूर्णमासी को दंतेवाड़ा के चिकलादई माता (शीतला माता )को समर्पित अगहन जातरा के बाद दक्षिण बस्तर क्षेत्र का द्वितीय एवं बीजापुर क्षेत्र का प्रथम सांस्कृतिक आयोजन बीजापुर जिले के संतोषपुर ग्राम में कोंडराज देव व चंद्रवा माता के सम्मान में दिनांक 1 जनवरी 2024 दिन सोमवार को आयोजित किया गया। 

संतोषपुर के कॉन्डराज चंद्रवा जातरा के प्रत्यभिज्ञान के अभाव में बीजापुर जिले के कोदई माता मेला को जिले का प्रथम सांस्कृतिक आयोजन के रुप में माना एवं जाना जाता रहा है किन्तु सोशल मीडिया में इस जातरा को संभवतः पहली बार बीजापुर जिले के प्रथम सांस्कृतिक आयोजन के रुप में चिन्हाँकित किया गया है। 

कोंडराज चन्द्रवा जातरा मुख्यतः फसल कटाई के बाद कोंड राज देव व चंद्रवा माता को नई फसल के रुप में धान एवं सेमी अर्पित करने का पर्व है जिसे देखकर दियारी तिहार अथवा दीवाड़ पाण्डुम होने का भ्रम होता है, किन्तु यह विशुद्ध रुप से मुख्य जातरा है जिसमे दोनों देवो को सियाड़ी पत्ता अथवा साजा पत्ता से बानी हुई पोटली में नया धान रखकर प्रत्येक कुटुंब के द्वारा जातरा स्थल तक लाया जाता है। कोंड राज देव को तर्पण प्रातः पहाड़ किनारे जंगल में दिया जाता है जिसमे महिलाओ की उपस्थिति वर्जित है। 

अपराह्न देवी चंद्रवा गुड़ी में वास्तविक जातरा का आयोजन होता है, जिसमे पेरमा, गायता, सिरहा, गुनिया आदि के द्वारा पूजन उपरांत देव खेलनी, कोड़ा मारने का संस्कार,  आकर्षण का केंद्र है। बलि प्रथा के उपरांत जातरा की समाप्ति धान की पोटली की वापसी एवं विदाई से होती है। पेरमा का दायित्व संतोषपुर के चेंदरु कुड़मूल, गायता का कार्य नागेश पुल्ला एवं थलपति का दायित्व चेंदरु नागुल के द्वारा निर्वहन किया जा रहा है। उक्त सभी सेवादार क्षेत्र के झाड़ी तेलंगा अथवा तेलंगा समुदाय से सम्बन्ध रखते है। 

संतोषपुर में झाड़ी तेलंगा अथवा तेलंगा जनजाति के अलावा माड़िया समुदाय भी निवासरत है किन्तु मिशनरी के प्रभाव से उनका योगदान आयोजन में नगन्य है। संतोषपुर के सम्बन्ध में मुझे जानकारी 2016 में R V Russell की कृति Tribes and caste of central provinces of India Vol III के माध्यम से हुई थी जिसमे Russell ने बीजापुर क्षेत्र में निवासरत झाड़ी तेलंगा अथवा तेलंगा समुदाय के गोत्र, विवाह, देव, भाषा, विभिन्न संस्कार आदि के सम्बन्ध में प्रथम लिखित दस्तावेज प्रस्तुत किया है।

लेख एवम छायाचित्र श्री अक्षय बघेल, शासकीय दंतेश्वरी स्नातकोत्तर  महाविद्यालय दंतेवाड़ा