2 अप्रैल 2018

कोटपाड़ जो कभी बस्तर में था

कोटपाड़ जो कभी बस्तर में था......!

जगदलपुर से ओडिसा जैपोर जाने के मार्ग में सबसे पहला कस्बा कोटपाड़ आता है। इस कोटपाड़ का बहुत ऐतिहासिक महत्व है। इस पर अधिकार के लिये जैपोर और बस्तर राज्य में कई खुनी संघर्ष हुये है। ओडिसा का कोटपाड़ जो कभी बस्तर में था वह आज ओड़िसा में है। इसके पीछे बस्तर के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना का उल्लेख मिलता है। 
बस्तर के राजा दलपत देव ने अपनी युवावस्था में ही अपनी पटरानी के पुत्र अजमेर सिंह को ड़ोंगर का उतराधिकारी बना दिया था। दलपत देव ने जगदलपुर में अपनी राजधानी बनायी थी और दलपत सागर भी इन्ही की देन है। राजा दलपत देव की मृत्यु के बाद उसके दुसरे पुत्र दरियादेव जो कि स्वयं राजा बनना चाहता , उसने अजमेर सिंह पर चढाई कर दी ,परंतु अजमेर सिंह ने अपने मामा कांकेर के राजा से सैन्य सहायता प्राप्त कर जगदलपुर पर अधिकार कर लिया । 




दरियादेव पराजित होकर जैपौर भाग गया। सन 1774 में अजमेर सिंह ने बस्तर राज्य की सत्ता संभाली। दरियादेव ने बस्तर का राजा बनने के लिये जैपौर के राजा विक्रम देव से मित्रता कर ली। उसने विक्रम देव के माध्यम से भोंसले शासन , ईस्ट इन्डिया कंपनी के अधिकारियो से मिलकर एक गुप्त योजना बनायी। उस योजना में कुछ शर्तो के अधीन तीनो ने संयुक्त रूप से अजमेर सिंह के विरुद्ध हमला कर दिया। सन 1777 में कंपनी सरकार प्रमुख ज़ॉनसन व जैपौर की सेना ने पूर्व की तरफ से एवँ भोंसले के अधीन नागपुर सेना ने उत्तर से राजधानी जगदलपुर को घेर लिया। भीषण युद्ध में अजमेर सिंह परास्त होकर ड़ोंगर की तरफ भाग गया। दरियादेव ने अजमेर सिंह का पीछा किया और डोंगर में अजमेर सिंह को मौत के घाट उतार दिया। 

अजमेर सिंह को मारकर दरियादेव बस्तर का राजा बन बैठा। बस्तर का सिंहासन प्राप्त करने के लिये ईस्ट इंडिया कंपनी, भोंसले और जैपोर के राजा के साथ हुई संधि शर्तों के मुताबिक राजा दरियादेव ने जैपौर के राजा को कोटपाड़ , चुरूचुन्दा , पोड़ागड, उमरकोट , रायगडा ये पांच परगने सौंप दिये। 
संधि के अनुसार जैपौर के शासक यदि बस्तर आते है तो उनको य़थोचित सम्मान दिया जायेगा और बस्तर के राजा को इन परगनों में पारवहन शुल्क लेने का अधिकार रहेगा। यह पारवहन शुल्क व्यापारी माल पर लगा के देता था। ज़िसकी दर सौ बैलो के लदान पर 25 रूपये होती थी।
कोटपाड़ परगने को जैपौर राजा को सौंपने के बाद पांच वर्ष के भीतर ही सन 1782 में बस्तर राजा दरियादेव ने जैपौर नरेश पर आक्रमण कर दिया। कारण यह था कि जैपौर नरेश रामचन्द्र ने अपने पिता विक्रमदेव के द्वारा 1778 में की गई कोटपाड संधि का उल्लंघन किया था। बस्तर और जैपोर दोनो राज्य की सेनाओ में भीषण युद्ध हुआ। अंततः बस्तर की सेना विजयी हूई। दरियादेव ने पांच परगनो में से रायगड़ा , पोडागड़ ओर उमरकोट पर वापस अधिकार कर लिया। दरियादेव कोटपाड़ पर भी अधिकार करना चाहता था किंतु उसकी इसी बीच में मृत्यु हो गयी और कोटपाड़ बस्तर में वापस सम्मिलित नहीं हो पाया।
बाद में भी कोटपाड़ को बस्तर में पुनः सम्मिलित करने की कई कोशिशें की गयी परन्तु सारे प्रयास असफल हो गये। और इस प्रकार कोटपाड़ हमेशा के लिये ओडिसा में चला गया।