बस्तर की प्रथम महिला शासिका - महारानी प्रफुल्ल कुमारी
बस्तर के इतिहास में यदि किसी महिलाशासिका का उल्लेख मिलता है तो वे महारानी प्रफुल्लकुमारी। इसे पूर्व नागों एवं नलों के समय कोई स्त्री राजसिंहासन पर आरूढ़ हुई ऐसी कोई जानकारी प्राप्त नहीं होती है। यद्यपि बस्तर के नाग इतिहास में राजकुमारी मासक देवी का वर्णन मिलता है परन्तुउनका जारी किया हुआ शिलालेख से उनके शासक होने की कोई जानकारी प्राप्त नहीं होतीहै। अतः औपचारिक रूप से महारानी प्रफुल्ल कुमारी को ही बस्तर की प्रथम महिला शासिका होने का गौरव प्राप्त है। बस्तर में सन से 1324 ई से 1947 ई तक वारंगल से आये काकतीय चालुक्य राजवंश का शासन था। इस राजवंश मे 1947 ई तक कुल 20 राजा हुये जिसमें 19 पीढ़ी में महारानी प्रफुल्ल कुमारी बस्तर की प्रथम महिला शासिका के रूप में राजसिंहासन पर आसीन हुई।
महारानी प्रफुल्ल कुमारी राजा रूद्रप्रतापदेव की पुत्री थी। राजा
रूद्रप्रताप देव की शासन अवधि 1891 ई से 1921 ई तक थी। राजकुमारी प्रफुल्ला का जन्म 1910 ई में हुआ। इनकी माता का नाम कुसुमलता था। प्रफुल्ला के जन्म के दो
वर्ष बाद ही उनकी मां कुसुमलता का देहांत हो गया। प्रफुल्ला का एक छोटा भाई भी था
किन्तु वह भी नवजात आयु में ही चल बसा था।
प्रफुल्ला का लालन पालन उनकी विमाता चंद्रकुमारी देवी ने किया।
निःसंतान चंद्रकुमारी देवी ने प्रफुल्ला को कभी भी सौतेलेपन का अहसास नहीं होने
दिया। राजकुमारी के लालन पालन में उन्होने कभी कोई कमी नहीं आने दी। इनकी शिक्षा
दीक्षा के अंगेज शिक्षिकाओं की नियुक्ति की गई थी। आंग्ल संस्कृति के प्रभाव के
बावजूद भी राजकुमारी में आदर्श भारतीय नारी के समस्त उच्च संस्कार थे। रानी की
बालिका शिक्षा के प्रति गहरी रूचि थी। बहुत विरोध के बावजूद भी रानी ने बालिका
शिक्षा के लिये विद्यालय खुलवाया था। बस्तर में सभी आदिवासी राजकुमारी के प्रति
बेहद प्रेमभाव रखते थे। राजकुमारी को बस्तर में बड़े प्रेमपूर्वक बाबीधनी कहकर
बुलाया जाता था।
सन 1921
में राजा रूद्र्रप्रताप देव की
असामयिक मृत्यु हो गयी। उस समय राजकुमारी प्रफुल्ला की आयु महज 11 वर्ष थी। राजा की मृत्यु के बाद पुत्र के अभाव में बस्तर के राज
सिंहासन पर कौन बैठेगा ऐसा प्रश्न राज्य के समक्ष उपस्थित हो गया था।
तत्कालीन दीवान विलायतुल्ला बड़े धर्म संकट में फंस गये थे। राजा की
मृत्यु के बाद बस्तर के सारे आदिवासी राजमहल के सामने एकत्रित हो गये थे। वे सब
बस्तर की लाडली बाबीधनी को बस्तर का राजसिंहासन सौंपना चाहते थे। आदिवासी अड़ गये
कि राजा का अंतिम संस्कार तभी होगा जब राजकुमारी प्रफुल्ला सिंहासन पर बैठेगी।
दीवान समयाभाव के कारण अंग्रेजी
सरकार से संपर्क स्थापित नहीं कर पा रहे थे। कोई निर्णय न होता देखकर दीवान राजमहल
को अपने हाल पर छोड़कर अपने निवास पर चले गये। उसके बाद आदिवासियों ने महज 11 वर्ष की प्रफुल्ला को राजसिंहासन
बैठाकर उन्हे बस्तर की रानी घोषित कर दिया।
बाद में अंग्रेजी सरकार ने भी
प्रफुल्ला को बस्तर की रानी के रूप में मान्यता दे दी। वर्ष 1922 में अंग्रेजों ने विशेष दरबार
बुलाकर प्रफुल्लकुमारी को बस्तर की रानी घोषित कर दिया। 1933 ई में अंग्रेजी सरकार ने रानी की
उपाधि बढ़ाकर महारानी कर दिया। रानी प्रफुल्लकुमारी अब बस्तर की महारानी
प्रफुल्लकुमारी थी।
ब्रिटिश भारत में ऐसा पहली बार हुआ
कि किसी राजपूत कन्या को राजसिंहासन पर बैठाकर राजसत्ता सौंपी गई हो। साथ ही वे बस्तर की पहली शासक थी
जिसने वायसराय से मुलाकात की थी। उन्होने वायसराय के सामने बस्तर की कई समस्याओं
को रखा था। जगदलपुर का महारानी अस्पताल का नामकरण भी महारानी प्रफुल्ल कुमारी के
नाम पर ही है।
महारानी का विवाह 1927 में मयुरभंज के राजपरिवार के
प्रफुल्लचंद भंजदेव के साथ हुआ। इनके दो पुत्र एवं दो पुत्रियां हुई। जिसमें
प्रवीरंचद्र भंजदेव बाद में बस्तर के महाराजा बने थे।
महारानी ने युरोप के कुछ नगरों का
भ्रमण भी किया था। उन्होने लंदन में तीन साल से अधिक समय बिताया था। 1936 ई में महारानी की तबियत खराब होने
के कारण वे अपने ईलाज के लिये पुनः लंदन चली गयी थी। जहां अपेंडिस रोग के कारण , ईलाज के दौरान उनकी मृत्यु हो गयी।
बाद में अंग्रेजी सरकार के कुछ
गोपनीय पत्र उजागर हुये जिसमें से महारानी की सुनियोजित तरीके से हत्या करने का
संकेत मिलता है। अंग्रेजो की निगाह बैलाडिला के लौह खदानों पर था जिन्हे वे
हैदराबाद के निजाम को देना चाहते थे। उनके इस कार्य में महारानी प्रफुल्ल कुमारी
सबसे बड़ी रूकावट थी।
महारानी प्रफुल्ल कुमारी त्याग एवं
वात्सल्य की प्रतिमूर्ति थी। वे अत्यंत उदार स्वभाव की थी। वे राज्य की प्रजा का बेहद ख्याल
रखती थी। राज्य में सामाजिक सुधारों एवं स्त्री शिक्षा की सबसे बड़ी पक्षधर थी।
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1 comments:
बहुत ही सुंदर और विस्तृत जानकारी🤗
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