उफ़्फ़ ये उदासी.....!
ये कोसम बेच रहा था, इसके पास बैठे बच्चे जामुन बेच रहे थे, मैने गाड़ी से उतरते ही दोनो पर नजर डाली, मोबाइल हाथ मे ही था. मैने जामुन बेचने वालो बच्चो से जामुन देने को कहा कि इतने मे यह कोसम बेचने वाला उदास होकर मुंह उतारकर, नजरे फ़ेरकर बैठ गया , उसी दरम्यान मैने इसकी फ़ोटो ले ली. इसकी इस उदासी ने सीधे मेरे दिल पर चोट की. एकदम से सीने मे चुभ गई इसके ये भाव. बच्चो के द्वारा जामुन पैक करने के समय तक मेरा मन आत्मग्लानि से भर गया , कई विचार मन मे घुमड़ने लगे , इसकी उदासी के सामने जामुन लेना एक अपराध सा लगने लग गया था मुझे,
मैने तुरन्त स्थिति सम्भाली, इसकी उदासी को दुर करने के लिये इसे भी कोसम पैक करने को कहा, तुरन्त सर उठाकर इसने मेरी तरफ़ देखा, गजब की चमक आ गई उदासी भरी उन आँखो में, उसे पैसे दिये और हम चल पड़े
कभी कभी ऐसी परिस्थितियाँ बन जाती है. और उसकी उदासी स्वाभाविक भी थी, क्योकि हर कोई आता और मीठे रसीले जामुन ही खरीदता, उन खट्टे मीठे कोसम पर कोई नजर ही नहीं डालता.
कारण- कोसम की जानकारी ना होना और रुचि भी नहीं होना.बस्तर मे बाहर से आने वालो को यहाँ होने वाले मौसमी फ़लो की जानकारी भी नहीं है.
तो ऐसे मे कभी सड़क किनारे दो या तीन लोग बैठकर मौसमी फ़ल बेचते मिले तो सभी से थोडा थोडा खरीदो, क्योकि 10- 20 रुपये से उस उदासी को दुर करने से मन को जो सुकुन मिलता है वो मीठे जामुनो से नहीं मिलता- ओम...!


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