मछलियों के चार शिकारी....!
राह चलते फोटोग्राफ़ी 03
कुछ दुर आगे बढ़ने के बाद इन चार बच्चों से मुलाकात हो गयी. ये बच्चे कोई साधारण बच्चे नहीं ये तो शिकारी बच्चे हैं. मछलियो के चार शिकारी जब आपस मे मिल जाये तो गाँव के तालाबो की मछलियों मे हड़कम्प मचना तय है.
इन चारो बच्चों ने गरी खेल से झिल्ली भर मछली पकड़ी थी. आज तो दावत हो गई इनकी.
नदी तालाबो के किनारे रहने वाले ग्रामीणो के मनोरंजन का सबसे अच्छा साधन गरी खेलना होता है। गरी कोई छुपम छुपाई या पकड़म पकड़ाई का खेल नहीं है, गरी तो शतरंज की तरह चाल में फंसाने का खेल होता है।
वास्तव में गरी खेलने का मतलब मछली पकड़ना होता है। गरी खेल में बांस की पतली सी लगभग 10 फीट की डंडी होती है। इस डंडी के एक सिरे पर नायलान का पतला धागा बांधा जाता है। जो लगभग 10 फीट से भी ज्यादा लंबा होता है।
इसे धागे में मछली को पकड़ने के लिये लोहे का कांटा होता है। कांटे में केंचुये को चारे के रूप में फंसा कर लगाया जाता है। किस्मत अच्छी हुई तो बहुत सी मछलियां पकड़ में आ जाती है। गरी खेलने में अलग ही आनंद है।
बस्तर में नदी के किनारे जितने भी गांव है वहां के सारे ग्रामीण खाली समय में गरी जरूर खेलते है। हालांकि मछली पकड़ने के अन्य तरीके भी है पर जितना आनंद गरी खेल से मछली पकड़ने में मिलता है वो अन्य तरीको से नहीं मिलता।
गरी खेल में आदमी का धैर्य सबसे महत्वपूर्ण हो जाता है। इस खेल में आपको धैर्य रखना ही होगा, आप अपने लगाये हुये दांव पर धैर्य रखिये, मछली उसमें जरूर फंसेगी, धैर्य नहीं है तो बार बार आप चारा फेंकते रहिये और आवाज करते रहिये , मछली चारा खाना तो दुर , आसपास भी नही भटकेगी।
आपने भी बचपन मे ऐसे ही गरी खेल से मछलियाँ पकडी हो तो अपना अनुभव जरुर साझा किजिये!
राह चलते फ़ोटोग्राफ़ी की कड़ी मे यह तीसरी पोस्ट है. बाईक से कुल 70 किलोमीटर की यात्रा करते समय मैने जो देखा उसे उसी अवस्था मे कैमरे मे कैद किया.
राह चलते फ़ोटोग्राफ़ी मे पहले से कुछ भी तय नहीं होता कि क्या फोटो लेना है जो भी अच्छा लगे बस क्लिक कर लो.. हाँ कैमरा हरदम हाथों मे होना चाहिए , पता नहीं अगले मोड़ पर कौन सा अच्छा पल मिल जाये!



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