बस्तर के नाग .........!
बस्तर में नागो ने बहुत लंबे समय तक शासन किया। बस्तर में नागो की छिंदक शाखा का शासन था। डा हीरालाल शुक्ल के अनुसार नाग मध्यप्रदेश के बाद कर्नाटक में बस गये। यहां उनकी सेन्द्रक, सेनावार, तथा सिन्द तीन शाखाये थी। सिन्द शाखा की उपशाखाओ का शासन विभिन्न छः जगहो पर था जिसमें बागलकोट, एरमबिगगे, बेलगवटिट, बेल्लारी, चक्रकोट एवं भ्रमरकोट। जिसमे से चक्रकोट एवं भ्रमरकोट दोनो शाखाये बस्तर से संबंधित है। सिन्द नाग के अपभंरश से ही छिंदक शब्द बना और बस्तर में सेन्द्रक शाखा के ये नागशासक छिंदकनाग कहलाये।
बस्तर में छिंदक नागों के शासन के अंतर्गत दो घरानों का शासन था जिसमें से एक घराने का शासन चक्रकोट एवं दुसरे घराने का शासन भ्रमरकोट में था। चक्रकोट के शासको के मुकुट पर सवत्सव्याघ्र प्रतीक अंकित था। इनका ध्वज फणिध्वज था। भ्रमरकोट के शासक धनुशव्याघ्रलांछन युक्त मुकुट चिन्ह एवं कमल के फूल एवं कदली पत्र के ध्वज चिन्ह का प्रयोग करते थे। भ्रमरकोट के शासक के रूप मे मधुरांतक देव का उल्लेख मिलता है। बाद में चक्रकोट के शासक धारावर्श के पुत्र सोमेश्वर देव ने मधुरांतक देव का वध कर दिया और भ्रमरकोट को चक्रकोट में मिला कर एक छत्र शासन किया।
बस्तर के सभी नागवंशी शासक भोगवतीपुरेश्वर की उपाधि धारण करते थे। वे स्वयं को भोगवतीपुर का स्वामी कहते थे। इन शासकों में नृपतिभूशण, धारावर्श, सोमेश्वर देव, कन्हरदेव प्रमुख थे। सोमेश्वर देव का शासन काल बस्तर में स्वर्ण काल था।
बस्तर में आज भी नागो की बहुत सी प्रतिमायें, एवं मंदिर मिलते है जो कि तत्कालीन छिंदक नागों के शासन में निर्मित माने गये है। बारसूर जाने वाले मार्ग में नागफनी ग्राम में नाग देवता को समर्पित एक मंदिर है। यहां दो तीन मंदिरों के अवशेष बिखरे पड़े है। एक मंदिर के अवशेष पर ग्रामीणों ने एक मंदिर बनाया है जिसमें नाग देवता की बड़ी बड़ी प्रतिमाये स्थापित हेै।
इसके अलावा बारसूर के सिंगराज तालाब में नागदेवता की खंडित प्रतिमा आज भी वहीं स्थित है। दंतेवाड़ा, समलूर, भैरमगढ़ एवं बारसूर में नाग प्रतिमाये मिलती है। बस्तर के छिंदक नागों ने नाग को बहुत सम्मान दिया। उनके मंदिर और कई प्रतिमायें बनवायी।
आज नागपंचमी के अवसर पर सभी जगह नागदेवता की पुजा होती है। नागमंदिरों में पूजा प्रार्थना हेतु लंबी लंबी कतारे लगी है। नाग पंचमी का त्यौहार आज ग्रामीण अंचलो में आज भी धुमधाम से मनाया जाता है। स्कुलो में एवं सार्वजनिक स्थानों पर कुश्ती प्रतियोगिता का आयोजन होता है। गांवों में नागपंचमी के दिन लोग अपने अपने घर के दरवाजों एवं दिवारों पर गाय के गोबर से सर्पो की आकृति बनाते है।
नाग लक्ष्मी के अनुचर होते हेै। इसलिये कहा जाता है कि जहां नागदेवता का वास होता हैं, वहां लक्ष्मी का वास होता है। नाग प्रकृति की अनुपम उपलब्धि है। पर्यावरण रक्षा तथा वनसंपदा में नागों की महत्वपूर्ण भूमिका है। ये नाग हमारी कृषी संपदा की विषैले जीव जंतुओं से रक्षा करते है। नागों का सम्मान कीजिये, इन्हे मारिये मत। इनका सम्मान एवं संरक्षण करना ही नागपंचमी का प्रमुख उददेश्य है।

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