19 अगस्त 2019

साहित्यऋषी लाला जगदलपुरी


साहित्यऋषी लाला जगदलपुरी 
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साहित्यऋषी लाला जगदलपुरी को आज उनकी पुण्यतिथि पर सादर नमन । उनका जन्म 17 दिसम्बर 1920 को जगदलपुर (बस्तर ) में हुआ था । अपने जन्म स्थान और गृहनगर जगदलपुर में ही निधन 93 वर्ष की आयु में 14 अगस्त 2013 को उनका निधन हो गया। साहित्य जगत में जगदलपुर शहर की पहचान लाला जगदलपुरी के नाम से होती थी ।
अपनी साहित्य साधना में उन्होंने हिन्दी और छत्तीसगढ़ी में असंख्य रचनाओं का सृजन किया । वह बस्तर अंचल की आदिवासी लोकसंस्कृति के अध्येता और विद्वान थे । यहाँ की लोकभाषा हल्बी और भतरी में भी उन्होंने कई रचनाएँ लिखी। उनके साहित्यिक जीवन पर हिन्दी वेबसाइट "कविता कोश " में विस्तार से जानकारी दी गयी है ,जिसका एक अंश यहाँ साभार प्रस्तुत है --लाला जी का लेखन कर्म 1936 में लगभग सोलह वर्ष की आयु से प्रारम्भ हो गया था। लाला जी मूल रूप से कवि थे। उनके प्रमुख काव्य संग्रह हैं – मिमियाती ज़िन्दगी दहाड़ते परिवेश (1983);पड़ाव (1992 आँचलिक कवितायें (2005); ज़िन्दगी के लिये जूझती ग़ज़लें तथा गीत धन्वा (2011)और वर्ष 1986 में प्रकाशित सहयोगी काव्य संग्रह हमसफ़र । 

उनके लोक कथा संग्रह हैं – हल्बी लोक कथाएँ (1972); बस्तर की लोक कथाएँ (1989); वन कुमार और अन्य लोक कथाएँ (1990); बस्तर की मौखिक कथाएँ (1991)। उन्होंने अनुवाद पर भी कार्य किया है तथा प्रमुख प्रकाशित अनुवाद हैं – हल्बी पंचतंत्र (1971); प्रेमचन्द चो बारा कहानी (1984); बुआ चो चीठीमन (1988); रामकथा (1991) आदि। लाला जी ने बस्तर के इतिहास तथा संस्कृति को भी पुस्तकबद्ध किया है जिनमें प्रमुख हैं – बस्तर: इतिहास एवं संस्कृति (1994); बस्तर: लोक कला साहित्य प्रसंग (2003) तथा बस्तर की लोकोक्तियाँ (2008)। लाला जी की रचनाओं पर दो खण्डों में समग्र (2014) यश पब्लिकेशन से प्रकाशित किया गया है। 

यह उल्लेखनीय है कि लाला जगदलपुरी का बहुत सा कार्य अभी भी अप्रकाशित है तथा दुर्भाग्यवश या तो नष्ट हो गए त फिर कई महत्वपूर्ण कार्य चोरी कर लिये गये। वर्ष 1971 की बात है जब लोक-कथाओं की एक हस्तलिखित पाण्डुलिपि को अपने अध्ययन कक्ष में ही एक स्टूल पर रख कर लाला जी किसी कार्य से बाहर गये थे कि एक गाय ने यह सारा अद्भुत लेखन चर लिया था। जो खो गया अफसोस उससे अधिक यह है कि उनका जो उपलब्ध है वह भी हमारी लापरवाही से कहीं खो न जाये।
लाला जगदलपुरी के कार्यों व प्रकाशनों की सूची यहीं समाप्त नहीं होती अपितु उनकी रचनायें कई सामूहिक संकलनों में भी उपस्थित हैं जिसमें समवांय, पूरी रंगत के साथ, लहरें, इन्द्रावती, हिन्दी का बालगीत साहित्य, सुराज, छत्तीसगढ़ी काव्य संकलन, गुलदस्ता, स्वरसंगम, मध्यप्रदेश की लोककथायें आदि प्रमुख हैं। 

लाला जी की रचनायें देश की अनेक प्रमुख पत्रिकाओं/समाचार पत्रों में भी स्थान बनाती रही हैं जिनमें नवनीत, कादम्बरी, श्री वेंकटेश्वर समाचार, देशबन्धु, दण्डकारण्य,युगधर्म, स्वदेश, नई-दुनिया, राजस्थान पत्रिका, अमृत संदेश, बाल सखा, बालभारती, पान्चजन्य, रंग,ठिठोली, आदि सम्मिलित हैं। लाला जगदलपुरी ने क्षेत्रीय जनजातियों की बोलियों एवं उसके व्याकरण पर भी महत्वपूर्ण कार्य किया है। लाला जगदलपुरी को कई सम्मान भी मिले जिनमें मध्यप्रदेश लेखक संघ प्रदत्त "अक्षर आदित्य सम्मान" तथा छत्तीसगढ़ शासन प्रदत्त "पं. सुन्दरलाल शर्मा साहित्य सम्मान’ प्रमुख है। 

उन्हें अन्य अनेक संस्थाओं ने भी सम्मानित किया है जिनमें बख्शी सृजन पीठ, भिलाई; बाल कल्याण संस्थान, कानपुर; पड़ाव प्रकाशन, भोपाल आदि सम्मिलित है। यहाँ 1987 की जगदलपुर सीरासार में घटित उस अविस्मरणीय घटना को उल्लेखित करना महत्वपूर्ण होगा जब 'काला जल ' जैसे कालजयी उपन्यास के सुप्रसिद्ध लेखक गुलशेर अहमद खाँ ' शानी ' को को सम्मानित किया जा रहा था। शानी जी स्वयं हार ले कर लाला जी के पास आ पहुँचे और उनके गले में डाल दिया; यह एक शिष्य का गुरु को दिया गया वह सम्मान था जिसका कोई मूल्य नहीं; जिसकी कोई उपमा भी नहीं हो सकती। यहाँ उल्लेखनीय है कि लाला जगदलपुरी के नाम पर शोधसंस्थान भी बन चुकी है ।। #डाॕ रुपेन्द्र कवि_जगदलपुर।🙏