9 मई 2018

बस्तर द लॉस्ट हेरिटेज

बस्तर द लॉस्ट हेरिटेज (Bastar- The Lost Heritage )
बात 1956 की है भारत के मशहुर फोटोग्राफर अहमद अली साहब बस्तर आये थे तब उस समय उन्होने बस्तर की खुबसूरती को अपने कैमरे में कैद कर तत्कालीन आदिवासी जीवन कला संस्कृति को तस्वीरों में सदा के लिये अमर कर दिया।


कलकत्ता निवासी अहमद अली साहब का बस्तर आना किस प्रकार से हुआ इसकी एक जानकारी इस प्रकार है - 1956 में स्वीडिश फिल्म निर्देशक अर्न सक्सडॉफ बस्तर के टायगर बाय चेंदरू को लेकर एक फिल्म बना रहे थे फिल्म का नाम था द फलूट एंड द एरो। उन्हे फिल्म के एक दृश्य के लिये बाघ के शावक की आवश्यकता थी। बाघ के शावक की लाने की उनकी सारी कोशिशें बेकार जा रही थी। तभी किसी ने उन्हे कलकत्ता में रहने वाले पेशेवर पशु निर्यातक जार्ज मुनरो का नाम सुझाया। 







मुनरो एक समृद्ध परिवार से थे। उन्होने घर में बाघ के शावक को पालतू जानवर की तरह पाल रखा था। सक्सडॉफ ने मुनरो को बाघ बेचने के लिये राजी कर लिया। मुनरो ने एक स्टील के पिंजरे में बाघ शावक को नारायणपुर भेजने की व्यवस्था कर दी। मुनरो ने अपने अजीज दोस्त अहमद अली को भी अपने साथ नारायणपुर जाने के लिये मना लिया। अहमद अली साहब मुनरो के साथ नारायणपुर आ गये। तब अहमद अली साहब ने बस्तर में आदिवासी जनजीवन, संस्कृति, हाट बाजार आदि की सैकड़ों तस्वीरें ली। उन तस्वीरों के माध्यम से 1956 के बस्तर को हमेशा हमेशा को अमर कर दिया।





नफीसा अली जी अहमद अली की पुत्री , विख्यात सिने अदाकारा, सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में आज जाना पहचाना नाम है। नफीसा अली जी ने अपने पिता के द्वारा लिये गये बस्तर के उन चित्रों को बस्तर द लॉस्ट हेरिटेज के नाम से संकलित कर काफी टेबल पुस्तक का रूप दिया। दिल्ली में उन चित्रों की प्रदर्शनी भी लगाई गई थी। यह पुस्तक अमेजान पर उपलब्ध है।


ये बस्तर द लॉस्ट हेरिटेज में संकलित कुछ चित्र नेट से प्राप्त हुये जो 1956 के समय के बस्तर को हमसें रूबरू कराते है। लेख ओम सोनी दंतेवाड़ा