बस्तर की धरोहर- नारायणपाल का विष्णु मंदिर......!
आज विश्व धरोहर दिवस के उपलक्ष्य में बस्तर की ऐतिहासिक धरोहरों की चर्चा करना आवश्यक हो जाता है। बस्तर प्राकृतिक संसाधनो से संपन्न है। यहां की हरी भरी वादियां, नदी पहाड़ झरने अपनी खुबसूरती के कारण पुरे विश्व में अद्वितीय है। ऐतिहासिक महत्व के धरोहरों के मामले में भी संपन्न है किन्तु अनदेखी के चलते कई पुराने मंदिर ध्वस्त हो गये या ध्वस्त होने की कगार में है।
ऐसा ही एक मंदिर चित्रकोट जलप्रपात के पास नारायणपाल ग्राम में स्थित है। इंद्रावती और नारंगी नदी के संगम पर बसे नारायणपाल ग्राम में भगवान विष्णु को समर्पित एक विशाल मंदिर अवस्थित है। इस मंदिर की खासियत यह है कि बस्तर में भगवान विष्णु को समर्पित एक मात्र सुरक्षित मंदिर है। इस मंदिर का मंडप नष्ट हो गया था जिसके कारण यह मंदिर खंडहर में तब्दील हो गया था।
इस मंदिर के इतिहास को जानने के लिये हमें हजार साल पीछे जाकर अतीत के पन्ने पलटने पड़ते है। 1069 ई में चक्रकोट में महाप्रतापी नाग राजा राजभूषण सोमेश्वर देव का शासन था। सोमेश्वर देव का शासन चक्रकोट (बस्तर) का स्वर्णिम युग था। सोमेश्वर देव ने अपने बाहुबल से चक्रकोट के आसपास के राज्यों पर अधिकार कर लिया था।
उसके सम्मान में कुरूषपाल का शिलालेख कहता है कि वह दक्षिण कौशल के छः लाख ग्रामों का स्वामी था। उसका यश चारों तरफ फैला था।
सोमेश्वर देव की माता गुंडमहादेवी भगवान विष्णु की परमभक्त थी। जब उसकी आयु 100 वर्ष से भी अधिक रही होगी तब उसने अपने दिवंगत पुत्र सोमेश्वर देव की याद में भगवान विष्णु का भव्य मंदिर बनवाया। गुंडमहादेवी के 60 वर्षीय पौत्र कन्हरदेव के शासनकाल 1111 ई में इस मंदिर का निर्माण पुरा हुआ। मंदिर के मंडप में स्थित शिलालेख में यही इतिहास दर्ज है।
नारायणपाल ग्राम तत्कालीन समय में नारायणपुर ग्राम के नाम से जाना जाता था। इंद्रावती और नारंगी नदी के संगम पर बसे इस ग्राम में स्थित यह मंदिर बस्तर की महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर है। चित्रकोट जलप्रपात से कुछ दुर पहले ही इंद्रावती के उपर भानपुरी जाने के लिये पुल बना हुआ है। पुल पार करते ही सड़क से ही इस मंदिर के दर्शन हो जाते है।
मंदिर की स्थापत्यकला खजुराहों के मंदिरों के सदृश्य है। मंदिर गर्भगृह अर्द्धमंडप और मंडप में विभक्त है। उंची जगती पर स्थित इस मंदिर का शिखर काफी उंचा है। मंडप अष्टकोणीय है। गर्भगृह में भगवान विष्णु की खंडित प्रतिमा स्थापित है।
यह मंदिर काफी सालों से खंडहर बना हुआ था। मंदिर का आगे का मंडप ध्वस्त हो चुका था। मंडप को ध्वस्त होने के पीछे एक जनश्रुति जुड़ी है कि बस्तर के किसी राजा ने धन संपदा के लालच में मंदिर का मंडप तोड़वा दिया था।
इस मंदिर का जीर्णोद्धार, कछुआ गति से लगभग सात आठ सालों में पूर्ण हुआ है। देर आये दुरूस्त आये की तर्ज पर ही सही किन्तु आज यह मंदिर कुछ हद तक अपने मूल स्वरूप में लौट चुका है।
बस्तर में ऐसे बहुत से पुराने मंदिर है जो कि अपने जीर्णोद्धार की बाट जोह रहे है। इस मंदिर के जीर्णोद्धार गति को देखने पर यही अनुमानित होता है कि बस्तर के सारे ध्वस्त मंदिरों के जीर्णोद्धार में लगभग 200 साल तो लग ही जायेगे।
सारे फोटो मैने ही लिये है।
आलेख - ओम सोनी दंतेवाड़ा
आलेख - ओम सोनी दंतेवाड़ा





12 comments:
खजुराहो के मंदिरों जैसा ही है. बनाने का समय भी मिलता जुलता है.सुंदर फोटो.
Thank You Sir
names please, OM ?
आपके सभी आलेख बस्तर के इतिहास और संस्कृति के बारे में अद्भुत जानकारियों से भरे होते हैं।
आपका ब्लॉग पढ़ना अच्छा लगता है
ऐसे है लिखते रहे।
धन्यवाद..
एक और बात सारे फ़ोटो आपने ही लिए हैं, बहुत ही खूबसूरत है आपके फोटोग्राप्स।
Ram Pratap Sir Bahut Bahut Aabhar Aapka
Kathie Ma'm this Temple is in Narayanpal near Chitrakot Fall in Bastar..
Ye Jagdalpur me h ki Narayanpur me hai?
Jagdalpur ke pas Narayanpal Gram me
THank you Om, but you posted photos of 4 temples. Top to bottom please, I can't get Hindi / English translation here.
Kathie Ma'm there is one temple and four Picture... Naryanpal Vishnu Temple built in 1111 Ad By Nagwanshi King Kanhardeo in Bastar.
thanks, OM, I thought they were different. Thanks for explaining.
एक टिप्पणी भेजें