25 अप्रैल 2019

माडम सिल्ली डेम के साईफन सिद्धांत पर काम करता जादुई दिया

जादुई दिये के पीछे दाबलंघिका का सिद्धांत.....!

धमतरी के माडम सिल्ली डेम के साईफन सिद्धांत पर काम करता है यह दिया। 

कल हेमंत वैष्णव जी द्वारा जादुई दिये की दी गई संक्षिप्त जानकारी पोस्ट की थी जिसे बहुत से लोगों ने पसंद किया और साझा किया। मिटटी का बना यह दिया दो हिस्सों में है जिसमें नीचे का हिस्सा एक गोलाकार आधार के साथ दिया है जिसमें बत्ती लगायी जाती है। दुसरा हिस्सा चाय की केतली की तरह ही एक गोलाकार छोटी सी मटकी का पात्र है जिसमें तेल भरा जाता है। तेल निकलने के लिये मिटटी की नलकी इसमें बनाई गई है। इस गोलाकार पात्र में तेल भरकर दिये वाले आधार के उपर उल्टा कर सांचे मे फीट कर दिया जाता है। 


इसे इस तरह से उल्टा फीट किया जाता है कि तेल निकलने वाली नलकी ठीक दीये के उपर रहती है और उसमें से अपने आप तेल निकलकर दिये में दिये में भर जाता है और दीये में तेल भरने के बाद इसमें से तेल निकलना अपने आप बंद हो जाता है। यह बात बेहद ही आश्चर्य जनक लगती है कि जब उसमें पुरी तरह से तेल भरा हुआ है तो दीपक में तेल भरने के बाद तेल निकलना अपने आप कैसे बंद हो जाता है। यह एक तरह से जादू ही है। इसलिये इस दिये को बनाने वाले श्री अशोक चक्रधारी जी ने इसे जादुई दिया का नाम दिया है। 

हमारी भारतीय सभ्यता में ऐसी अनेकों प्राचीन विधियां ग्रंथो में उल्लेखित है जिससे आज की पीढ़ी तो लगभग भूल चुकी है। ग्रामीण क्षेत्रों खासकर बस्तर में भले यहां के लोगों ने प्राचीन ग्रंथ नहीं पढ़े है किन्तु इन्हें ये विधियां इन्हे सदियों से ज्ञात है। विरासत से ये विधियां आज भी बस्तर में जीवित है। जिसका उदाहरण अशोक चक्रधारी जी द्वारा बनाया गया यह दिया है। 


इस दिये में तेल भर जाने के बाद अपने आप तेल बंद हो जाने के पीछे विज्ञान का भौतिकी सिद्धांत काम करता है। भौतिकी के इस सिद्धांत में हवा का दबाव दीये में तेल भरने और बंद करने को संचालित करता है।  यह दिया भी माडमसिल्ली डेम धमतरी का पानी छोड़ने का साईफन सिस्टम जैसा ही आधारित है। इस दिये में अंदर की तरफ एक छिद्र  है। इस छिद्र से हवा अंदर जाकर उपर भरे हुए गोलाकर पात्र मे उपर की दबाव बनाने का कार्य करती है। जब दिया पुरी तरह तेल से भर जाता है वह छिद्र भी तेल से भरा रहता है। तेल जैसे उस छिद्र से कम होकर नीचे आता है तो पुनः उसमें हवा अंदर की ओर प्रवेश करती है और उपर लगे गोलाकार पात्र में तेल की ओर दबाव बनाता है और जितनी हवा अंदर जाती है उतना तेल फिर से दिये में गिरने लग जाता है। 

माडम सिल्ली अंग्रेजों के जमाने का बनाया हुआ डेम है जिसमें साईफन सिस्टम कार्य करता है। साईफन सिस्टम के बारे में विकीपीडिया से भी कुछ जानकारी प्राप्त होती है। विकीपीडिया के मुताबिक दाबलंधिका वा साइफन  न्यून कोण पर मुड़ी हुई नली के रूप का एक यंत्र होता है, जिससे तरल पदार्थ एक पात्र से दूसरे में तथा नीचे स्तर में पहुँचाया जाता है।

साइफन की क्रिया पूर्वोक्त नली के दोनों सिरों पर दाब के अंतर के कारण होती है और जब पात्र खाली हो जाता है, या दोनों पात्रों में तरल पदार्थ का स्तर समान हो जाता है, तब बहाव रुक जाता है। इस यंत्र के द्वारा बीच में आनेवाली ऊँची रुकावटों के पार भी तरल पदार्थ, शक्ति का व्यय किए बिना, भेजा जा सकता है। साधारण साइफन की नली को स्थानांतरित किए जानेवाले तरल पदार्थ से भर दिया जाता है और उसके लंबे अंग के सिरे को अंगुली से बंद कर, छोटी बाँह के सिरे को तरल पदार्थ में डुबा और लंबी बाँह के सिरे को दूसरे पात्र में कर, अंगुली हटा लेते हैं। तरल पदार्थ का दूसरे पात्र में बहना अपने आप आरंभ हो जाता है। ऐसे साइफन को प्रयोग से पहले प्रत्येक बार भरना आवश्यक होता है।


साइफन लॉक (ताला)

विविध उपयोगों के लिए इस यंत्र के अनेक रूप प्रचलित हैं। कुछ में नली को भरने के, या उसे भरे (और इस प्रकार आवश्यकता होने पर स्वयं चालू होने योग्य बनाए) रखने के, उपकरण हाते हैं। साइफन के सिद्धांत पर काम करनेवाले नलों से बहुधा जल को पहाड़ियों या टीलों पर, ऊँची नीची भूमि से होते हुए, किसी घाटी के पार पहुँचाने का काम लिया जाता है। ऐसे साइफनों में टीले या ऊँचाई पर स्थित नल में फँसी हुई वायु के निकास के लिए एक वाल्व का होना आवश्यक है। सोडावटर से भरे हुए बर्तनों में स उसे निकालने के लिए जो साइफन लगाए जाते हैं उनकी नली में एक स्प्रिंग वाल्व लगा रहता है, जो एक लीवन दबाने पर खुल जाता है और सोडावाटर की गैस के दबाव से जल बाहर निकल आता है।
                                              https://youtu.be/DRoLBokz0Vo

अशोक चक्रधारी जी कोंडागांव के बेहद ही सम्मानित हस्तशिल्पकलाकार है। कुम्हारपारा में रहने वाले अशोक चक्रधारी जी ने अपनी इन्ही कला के बदौलत देश विदेश में कई पुरस्कार जीते है। यह जादुई दिया भी अशोक चक्रधारी जी ने ही बनाया है। उनका बहुत बहुतआभार ।  जादुई दिया और उसी सिद्धांत पर काम करने वाले एक अन्य उपकरण का फोटो वीडियो और रेखाचित्र शेयर किया और साथ मुझे इस दिये के पीछे के भौतिकी के सिद्धांत को समझने में बहुत मदद की। जानकार मित्र इस दिये से जुड़ी जानकारी और वैज्ञानिक सिद्धंात की जानकारी जरूर शेयर करे।  यदि आप में से किसी को यह दिया चाहिये तो आप कोंडागांव के कुम्हार पारा में अशोक चक्रधारी जी से मुलाकात कर दिया ले सकते है।  

आलेख ओम सोनी दंतेवाड़ा

4 comments:

Manoj pathak ने कहा…

बहुत ही सुंदर जानकारी आप अपने बलाग पर देते रहते हैं। आप को बधाई और शुभकामनाएँ...

Om Soni ने कहा…

shukriya Sir

Mukesh Gohel ने कहा…

Jadui diya aur mitti ka fuara kolkata màin kaise mil payega yeh bata sake to meharbani hogi ya online koi suvidha ho
gohelmukesh75@gmail.com

hari ने कहा…

Oz mujhe contact kare 9815855556