12 जुलाई 2019

1888 की प्राथमिक शाला बड़े डोंगर

1888 की प्राथमिक शाला बड़े डोंगर......!

बस्तर को आज भी शिक्षा के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ के अन्य क्षेत्रों के मुकाबले कमतर माना जाता है। आज हालात बदल गये है। यहां के बच्चे आईआईटी, नीट, इंजीनियरिंग, यूपीएससी जैसी परीक्षाओं में अपनी सफलताओं का डंका बजा चुके है। धीरे धीरे ही सही शिक्षा के क्षेत्र में बस्तर भी आगे आ रहा है। वर्तमान प्रयासों के किनारे रखकर यदि हम रियासतकालीन बस्तर की शिक्षा व्यवस्था में ध्यान केन्द्रित करते है तो हम पाते है कि आज से 150 साल पहले भी तत्कालीन शासकों ने बस्तर में शिक्षा व्यवस्था के दुरूस्ती के लिये कदम उठाये थे। 

शिक्षा के क्षेत्र में हरसंभव प्रयास करने वाले बस्तर प्रमुखों के क्रम में राजा रूद्रप्रतापदेव का नाम सबसे पहले आता है। राजा रूद्रप्रताप देव ने बस्तर को शिक्षित करने के लिये प्रमुख ग्रामों में विद्यालय खुलवाये। पठन पाठन में रूचि जगाने के लिये पुस्तकालयों का निर्माण कराया। इसके बाद रूद्रप्रतापदेव की पुत्री महारानी प्रफुल्ल कुमारी ने भी बस्तर में शिक्षा की अलख जगाने के लिये विद्यालय खुलवाये और बालिकाओं के शिक्षा पर विशेष ध्यान केन्द्रित किया। 

रियासतकाल में बने बहुत से विद्यालय संरक्षण के अभाव में खंडहर बन चुके है या फिर नष्ट होने की कगार में है। नारायणपुर क्षेत्र के बड़े डोंगर में रियासतकालीन प्राथमिक शाला आज भी सुरक्षित अवस्था मे विद्यमान है। बस्तर महाराजा भैरमदेव के शासनकाल में सन 1888 ई में निर्मित इस विद्यालय की नींव आज भी इतनी बुलंद है कि लगभग 150 साल पहले जलाई गई शिक्षा की लौ आज भी जल रही है।  इन रियासतकालीन धरोहरों का संरक्षण के साथ साथ यहां की शिक्षा व्यवस्था में और भी सुधार करना आवश्यक है। 
इस अमूल्य छायाचित्र के लिये श्री चंद्रा मंडावी सर का बहुत बहुत आभार ।