11 जुलाई 2019

*तुपकी लोकमन की सलामी*

*तुपकी लोकमन की सलामी*
मित्रो गोंचा पर्व की भूमि बस्तर से शुभ रथयात्रा।
पुरी के मुख्य रथोत्सव का आनंद शाही परम्परा का रूप है।लेकिन जगदलपुर में मनाये जाने वाला गोंचा पर्व रथयात्रा भगवान जगन्नाथ की लोकपरम्परा को नया अर्थ देता है।

गोंचा शब्द उडिया भाषा के शब्द गुंडिचा से आया प्रतीत होता है।मित्रो गोंचा का एक नाम नेत्रोत्सव भी है। बस्तर के चतुर्थ काकतीय नरेश पुरषोत्तम देव का अभिषेकोत्सव पर्व भी।ये तो हुई छिटपुट इतिहास ।कई धार्मिक कहानियाँ भी है।जिसके विषय मे अकादमिक चर्चा मेरा लक्ष्य नहीं है।
लेकिन मूल आशय की ओर लौटते हैं।दंतेवाड़ा का यह वनराही गोंचा के हृदय प्रदेश में जो देखा वह इस पर्व की तुपकी चालन की परम्परा है।तुपकी क्या ये तो धर्म, जाति, वर्ण, सम्प्रदाय, वर्ग सबकी दीवारो को तोड़कर उत्सव में रम जाने की अनूठी परम्परा का नाम है।तुपकी बंदुकनुमा समझाने के वास्ते कह रहा हु। पिचकारी की तरह की आकृति वाला उत्सव लोक यन्त्र है।जिसमे जंगल के हरे छोटे कच्चे फलो को भरकर पिचकारी की तरह फलो को भरकर जगन्नाथ के स्वागत में छोड़ा जाता है।मूल रूप से इसमें अंगूर की आकार का मालकागिनी लता का प्रयोग होता है। तुपकी पहले बना तो बन्दूक से तुलना जायज नही।तुपकी हिंसक भी नही। 
यह तुपकी बस्तर और उड़ीसा क्षेत्र के अतिरिक्त कही नही बनाई जाती।


वनांचल की फागुन मड़ई की आवला मार की याद दिला गयी। यह गोंचा।जब दंतेश्वरी के दरबार में आरण्यक शबर पुत्र फलों के मार से उत्सव को रूप देते हैं।गोंचा में मालकांगिनी के फलों को उड़ाकर।फल तो उड़ते ही हैं ।तुपकि की सामूहिक ध्वनि भी उड़ती है।लोकजीवन भी उड़ता है।मानो विश्व चैतन्य हो रहा हो । बस्तर की गोंचा में वाणी ,राग रस ,गंध के साथ। 
भौतिक दुनियावी संसार से अलग प्रकृति की गोद में ईश्वर को मनुष्य रूप में प्रस्तुत करता है यह गोंचा उत्सव ।हम सबको कैमरे के नजरो से हटकर हृदय के नजरों से देखने के लिए बस्तर बुला रहा है।

ऐसा रथ जिसमें प्रकृति का सामूहिक लोकलय हो।अपने आपमें विशिष्ट है। मेरा मन कहता है ऐसा उत्सव देखने आज बस्तर भगवान जगन्नाथ ,भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा जरूर आये होंगे।गजामूंग के पारंपरिक प्रसाद के साथ फनसकोषा(पका कटहल फल )का प्राकृतिक स्वाद लोक और जन का रस है। तुपकी की हर सलामी बारूद से जुदा प्रकृति की सलामी है।
इंद्रावती की प्रवाह से
भुवाल सिंह