छत्तीसगढ़ में दीवाली : ग्वालिन
दीप धारण किये हुए इस तरह की यह मूर्ति हमारे यहां ग्वालिन कहलाती है। कुछ समय पहले तक यह हर तुलसी चौरा में विराजती थी। यह तीन, पांच, सात और नौ दियों के संग निर्मित होती है। इन विषम संख्याओं का कारण मुझे यह समझ आता है कि सिर के ऊपर के एक दीये के कारण यह स्थिति बनती है। शास्त्री इसे ग्रह या दिनों आदि से जोड़कर इसका अर्थ विस्तार करते हैं। ग्वालिन की मूर्तियां कुछ साल पहले तक बाजार में दिख रही थी पर पिछले सालों से मुझे नही दिखती। इनकी जगह धन की देवी लक्ष्मी को पद्मासन में प्रदर्शित किया गया है। एक मूर्तिकार दुकानदार से मैंने पूछा तो बोली, अब नहीं बनाते। क्यों ? इसका वह जवाब नही दे सकी। इसे मार्क्सवादी ढंग से देखें तो यह श्रम पर पूंजी की विजय है।
ग्वालिन का लक्ष्मीपूजन के दिन अनिवार्यता के पीछे यह प्रतीत होता है कि पुराने समय मे लक्ष्मी की पूजा लक्ष्मीपुत्रों अर्थात सम्पन्न वर्ग में प्रचलित रहा होगा। इसलिए श्रमिक वर्ग ने, सामाजिक - आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग ने अपनी श्रम परंपरा से विकसित कर ग्वालिन को लक्ष्मी मान लिया होगा। वैसे भी लक्ष्मी की मूर्ति सोने चांदी तथा अन्य धातुओं से बन सकती है पर ग्वालिन की मूर्ति हमेशा ही मिट्टी की बनती है। इसका चक्र एक दीवाली से दूसरी दीवाली तक रहता है। यह दूसरी दीवाली आते तक विसर्जित कर दी जाती है। माटी, माटी में एकाकार हो जाती है। भारत के मैदानी क्षेत्रों में ग्वालिन पूजा की परंपरा रही है। लोक की दीवाली को अगर दो सौ साल पीछे देखें तो वहां वर्तमान के ताम झाम होने के कम ही लक्षण दिखते हैं। छत्तीसगढ़ में आज दीवाली का दिन 'सुरहुती' के रूप में प्रचलित है। कल और परसों गोवर्धन पूजा और फिर 'मातर' मनाया जाएगा। इन तीनो दिनों में गौपालक समाज की सबसे बड़ी भूमिका इस प्रकाशोत्सव में हम देख पाते हैं।
उत्तर आधुनिक ग्लोबल और तकनीकी युग मे श्रम और श्रमिक का महत्व निरंतर घटता जा रहा है, ऐसे में पारंपरिक ग्वालिन की मूर्ति पूजन का कम होना भी स्वभाविक है। उपभोक्तावाद और पूंजी ने श्रमिक परंपराओं और प्रतीकों का स्थान नए रूप में ग्रहण कर लिया है। यह परिवर्तन आंखों से दिख रहा है। छत्तीसगढ़ी लोक में दीवाली के जो प्रतीक हम दिखते हैं, वह कृषि आधारित श्रमिक वर्ग के उत्सव के अधिक करीब हैं। इस लिहाज से ग्वालिन पूजा का यहां महत्व स्थापित होता है। इस विषय पर आप सुधीजनों से अनुरोध है कि कुछ और भी बताएं।
देवारी पर कामना है कि मन मे मया अउ कोठार में धान भरा रहे... 🙏.
लेख - पीयुष कुमार सर से साभार..!







