बस्तर महाराजा भूपालदेव और उनका राजत्व काल.......!
बस्तर के चालुक्यवंशी नृपतियों के क्रम मे 1842 ई में महाराजा भूपालदेव बस्तर के सोलहवें राजा बने। भूपालदेव बस्तर महाराजा महिपालदेव के बड़ी रानी पदमकुंवर चंदेलिन के पुत्र थे। महिपाल देव की दुसरी रानी हरकुंवर के पुत्र दलगंजन सिंह थे। भूपालदेव आयु में बड़े थे सो वे 36 वर्ष की अवस्था में बस्तर की राजगद्दी पर बैठे। (संदर्भ काकतीय युगीन बस्तर)
भूपालदेव का राजत्वकाल सन 1842 से 1853 ई तक मात्र ग्यारह वर्षों का ही था। इनके शासनकाल में बस्तर के पड़ोसी राज्य जैपुर से कोटपाड़ परगने के लिये अनवरत विवाद चलता रहा। बस्तर भूषण में केदारनाथ ठाकुर दोनों राज्यों में कोटपाड़ परगने को लेकर विवाद के संबंध में लिखते है कि भूपालदेव महाराज के समय जैपुर से लड़ाई होते होते बची। दोनों राज्यों के लड़ाके सिपाही आमने सामने खड़े थे। यदि उस समय मान्यवर पंडित लोकनाथ राजगुरू दोनों के बीच जाकर खड़े न हो जाते और अपने दुरदृष्टि और मधुर शिक्षा से दोनों राजाओं को ना समझाते तो ना जाने उस समय बस्तर की क्या गति हुई होती। अपने जीवन काल में भूपालदेव जैपुर राज्य से कोटपाड़ परगने को वापस प्राप्त करने में सफल नहीं हो पाये थे।
महाराज भूपालदेव भगवान शिव के परमभक्त थे। इन्होने अपनी रानी वृंदकुंवर बघेलिन की प्रेरणा से दलपत सागर के मध्य शिवमंदिर बनवाया था। यह मंदिर उनके नाम पर भूपालेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। यह छोटा सा शिवमंदिर दलपतसागर के मध्य में एक टापू पर स्थित है। यहां सिर्फ नाव द्वारा ही पहुंचा जा सकता है।
महाराज भूपालदेव को लगभग 34 वर्ष की उम्र में पुत्र भैरमदेव के पिता बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। पुत्र प्राप्ति को भगवान शिव का आर्शीवाद मानते हुये उन्होने दलपत सागर के मध्य यह शिवमंदिर बनवाया था। लगभग 170 वर्ष से अधिक पुराना यह मंदिर बस्तर के चालुक्य राजवंश की स्थापत्य कला का सुंदर उदाहरण है।
47 वर्ष की आयु में महाराजा भूपालदेव की मृत्यु हो गई थी। उनके मृत्यु उपरांत उनके अल्पव्यस्क पुत्र भैरमदेव राज्याभिषेक किया गया।
आलेख - ओम सोनी।


0 comments:
एक टिप्पणी भेजें