छत्तीसगढ़ लोक में आलोकपर्व...मातर तिहार..!
गोवर्द्धन पूजा के बाद के दिन छत्तीसगढ़ में मातर लोकपर्व मनाया जाता है।यह लोक पर्व यहां के मूल गोपालक समुदाय राऊत जाति के अगुवाई में होता है।
रंगबिरंगे परिधान में सजे राऊत भाई के इस पर्व में पूरा गांव शामिल होता है।मातर लोक उत्सव के कार्यक्रम स्थल पर पूरा गांव एकत्रित होता है।इस कार्यक्रम स्थल पर लोक देव के रूप में 'खुड़हर 'स्थापित किया जाता है।'खुड़हर' लकड़ी से बनाया जाता है।हल्की नक्काशी के साथ।
यह 'खुडहर' लोक देव का प्रतीक है।इस लोकदेव में ही मातर का भाव समाहित है।मातर का अर्थ होता है लोकमाता के प्रति समर्पण।
इस प्रतीक में राउत समुदाय की अटल आस्था है।मातर कार्यक्रम का शुभारंभ गोवर्धन पूजा के दिन खुड़हर स्थापना के साथ शुरू होता है।
अब मातर के मूल आकर्षण की ओर आते हैं।छत्तीसगढ़ के राऊत बन्धु के मूल अस्त्र तेंदू का लाठी होता है।रंगबिरंगे परिधान में सजावट का अंग मयूर पंख की शोभा के साथ कौड़ी(समुद्री सीप की आकृति का) होता है।मानो कृष्ण कन्हैया पूरे गोप ग्वालों के साथ गाँव में उतर आये हो।
सभी ग्रामवासी राऊत बन्धुओं की शौर्य और लोक सौन्दर्य की अगुवाई में सामने मड़ई को बलिष्ठ व्यक्ति लेकर चलता है।रुककर दौड़ता भी है।जो काफी चित्ताकर्षक होता है।यह मड़ई(यह बांस का बना होता है जिसमें काशी(कुश घास) की रस्सी को हाथ में भांजकर ,पुरे बांस की ऊंचाई तक क्रमशः सजाते हैं।पश्चात मड़ई के रस्सी में नदी किनारे नम भूमि में मिलने कन्दिल कांदा का उपयोग किया जाता है।इस कांदा को परत दर परत निकालकर मड़ई को सजाया जाता है।
मेरे गाँव में मड़ई ढीमर और केवन्ट जाति के बन्धुओं द्वारा बनाया जाता है।इनका प्रबल विश्वास है कि मड़ई में आदिशक्ति का वास होता है और यह तमाम अनिष्ट शक्ति से ग्राम की रक्षा करता है।यह जन कल्याण का प्रतीक है।
मड़ई और खुड़हर कथा के बाद अब पुनः आते हैं।मातर पर सभी ग्राम वासी तालाब के किनारे एकत्रित होते हैं।एकत्रित होने का मूल कारण है मातर के मुख्य आकर्षण -अखाड़ा के आयोजन से युवा पीढ़ी को जोड़ना और लोक मनोरंजन को बल प्रदान करना।
अखाड़े में हमारे गाँव के नव जवान और बुजुर्ग अखाडेबाज अपना शौर्य
लाठी का चालन,
तलवारबाजी,
आग से सम्बंधित प्रदर्शन के अनेक रूप द्वारा दिखाते हैं।
अखाड़े के साथ साथ ग्रामवासियों को राऊत बंधू गिलास में दूध भरकर अपने हाथों से पिलाने के लिए आमंत्रित करते हैं।आज के दिन मातर स्थल पर राउत बन्धु मेजबान बन जाता है और गाँव मेहमान।अद्भुत है यह परंपरा।
समय के साथ मातर के स्वरूप में परिवर्तन आया है।अब लोग दूध से अधिक शराब की ओर आकर्षित है।
मातर लोकपर्व हम सबके अंदर सामूहिकता और उत्सवधर्मिता बची रहे इस लोककामना का सजीव प्रतीक है।राऊत भाइयों के दोहे में कहुँ तो-
"पान खायेन सुपारी मालिक,
सुपारी के दुई कोर।
तुम तो बइठो रंगमहल में,
राम राम लेव मोर।
आवत दिएन गारी गोढा,
जावत दिएन असीस।
दुधे खाव पूते बिहाव,
जुग जुग जियो लाख बरिस!!"
छत्तीसगढ़ के राउत बन्धु गढ़वा बाजा के शक्ति धुन में छत्तीसगढ़ी के साथ कबीर,तुलसी ,रहीम सबके दोहे पारते हैं।जिससे समूचा वातावरण वास्तविक भारत के रूप का हमें दर्शन करा जाता है।
कभी छत्तीसगढ़ आएं तो सुरहुत्ती के उजाले गौरा गौरी बारात में जरूर शामिल हो।गोवर्धन पूजा के असल गोबरधन को माथे पर टीके और दूसरे को भी लगाएं।मातर तिहार से शौर्य अखाड़े का आनंद ले और राउत बंधुओं के दोहे के महाभाव को महसूस करें।
शुभ दीपावली।
भुवाल सिंह
ग्राम-भटगांव -खोरपा
पुराना धमतरी रोड से...

0 comments:
एक टिप्पणी भेजें