लक्ष्मीपूजन के दूसरे दिन देश के अधिकांश हिस्सों में गोवर्धन पूजा मनायी जाती है।छत्तीसगढ़ में गोवर्धन पूजा में लोक की विशिष्टता है।गौरी गौरा विवाह (सुरहुत्ती)में अगर आदिवासी समुदाय की प्रधानता होती है तो गोबरधन पूजा में यादव जिसे छत्तीसगढ़ में राउत कहा जाता है की प्रधानता मुख्य है।
यह पर्व राउत बंधुओं को समर्पित है जो छत्तीसगढ़ के गांवों के पशुपालक और पशुरक्षक दोनों है।मनुष्य और पशु के सहअस्तित्व की अद्भत बानगी है गोबरधन पूजा।राउत बन्धु जो सुबह पूरे गांव को जगाने के कारण पहटिया(पहट के समय जगाने वाले)कहलाते हैं।पहटिया पूरे गांव के पशु को समूह में ले जाकर वर्षभर चराते हैं।पशु के आरोग्य का ख्याल रखते हैं।गांव की व्यवस्था में महत्वपूर्ण हिस्सा होने के कारण इन्हें पवनी पसारी कहा जाता है क्योंकि गांव के पशुधन का ये रखवाला है।राउत बन्धु अपने पूरे कुनबे के साथ आज के दिन को विशेष रूप से उत्सवधर्मी बनाता है।
वे रंगबिरंगे कौड़ी लगे नए परिधान पहनकर,हाथ में तेंदू की लाठी लेकर और पशु धन के लिए विभिन्न रंगों से बने मयूरपंख से शोभायमान सोहई लेकर पशुमालिक के घर जाता है!
गोबरधन पर्व के सारांश पर प्रकाश डालते हुए छत्तीसगढ़ लोक जीवन के अध्येता पीयूष कुमार लिखते हैं-
"हमारे यहाँ छत्तीसगढ़ के गाँवों में आज जितनी ख़ुशी पशुपालकों की होती है, उससे अधिक ताव और उल्लास राउतों में होता है। आज किसान पशुओं को खिचड़ी खिलाते हैं और खुद भी खाते हैं। खिचड़ी में नए चावल का भात, सोहारी रोटी (नए चावल का), उड़द का बड़ा, कोचई (अरबी) और मखना (कद्दू) की सब्जी और उड़द की दाल अनिवार्य हैं।
राउत भाई सुन्दर छींट का कुरता पहन पहले तो अपने घर में इष्ट की पूजा करते हैं फिर चटख सिंगार कर मड़ई लेकर शान से निकलते हैं। अब तो वह आठ दिनों का राजा है। साल भर उसने पशुओं को चराया है, अब वह आनंद मनायेगा। वे अपने हाथ से बनाई बांख की बनी सोहई बांधते हैं और पशु मालिकों को आशीष देते हैं -
जैसे मईया-लिहा दिया, तईसे देबो असीसे!
घर-दुवार भण्डार भरे अउ जिवय लाख बरीसे !!
शाम को पशुओं से गोबर खुंदा कर उसका टीका एक दुसरे को लगाकर लोग गले मिलते हैं। बुजुर्ग कह उठते हैं - "जियत रबो त इही दिन मिलबो जी..!" यह आप्तवाक्य तब अर्थपूर्ण लगता है जब साल भर बाद गाँव जाने पर पता लगता है कि फलाना कका रेंग दिस...
त्यौहार प्रकृति के संग सहस्तित्व का प्रतीक हैं। प्रकृति के प्रति उल्लासमय कृतज्ञता है!"
भुवाल सिंह
गोबरधन पूजा २०१९



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