पत्तों का बना आरामदायक चेमूर.....!
बस्तर की जनजातीय समाज की महिलायें बहुत ही ज्यादा मेहनत का कार्य करती है। चाहे जंगलों से टोकरी मे वनोपज एकत्रित करना हो या आग जलाने के लिये लकड़ियों का वजनदार लटठा लाना हो।
इन सभी कामों में महिलाओं के सिर पर अधिक जोर पड़ता है। क्योंकि सारे वजनदार सामान वे सिर में ही ढोकर लाती है। सिर पर कम वजन लगे इसलिये वे पत्तों की गोलाकर गुंडरी तैयार कर लेती है जिसे यहां स्थानीय हल्बी बोली में चेमूर कहा जाता है।
ये चेमूर सिर पर ढोये वजन के लिये बैलेंस बनाने का काम भी करते है और विशेष तरीके से लकड़ी ढोने के कारण, चेमूर सिर पर ज्यादा वजन नहीं पड़ने देता है। जंगलों से लकड़ी या वनोपज लाने के समय सिर पर पत्तों का चेमूर रख लाया जाता है।
पानी भरते समय कपड़े का गुंडरी तैयार किया जाता है। कुली मजदूरी के समय में सीमेंट की बोरियों का इस्तेमाल चेमूर के रूप में किया जाता है।
यहां तो चेमूर कहते है आप इसे किस रूप में जानते है। आज भी यहां पत्तों के चेमूर अधिक प्रचलित है आपके क्षेत्रों में किन किन चीजों का उपयोग होता है चेमुर बनाने के लिये ?
ओम

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