अड़गेड़ा...!
जी हाँ अड़गेड़ा.अड़ यानी कि आड़ा और गेड़ा यानी कि मोटा डंडा.जोहार एथनिक रिसोर्ट कोण्डागाँव में इसे देखकर बचपन याद आ गया।यहां इसे मुरिया जनजाति के घर के आँगन पर प्रदर्शित किया गया है.
पर कुछ समय तक घरों-घर अड़गेड़ा दखाई देता था.इसमें दो खंभे गड़े होते हैं.दोनों खंभों में बराबर ऊँचाई पर लगभग 5 से.मी. व्यास के गोल छेद बने होते हैं.इसकी संख्या 5 या 6 होती है.
दोनों खंभों के मध्य गेड़ा यानी कि मोटा डंडा फँसाकर गेट बंद किया जाता है.गेट खोलते समय गेड़ा को किनारे सरका दिया जाता है.बस्तर के छेर-छेरा पर्व में इससे संबंधित एक गीत भी गया जाता है।
पहली पंक्ति मैं भूल रहा हूं।आपको पता हो तो जरुर पूरा करिएगा.......... अड़गेड़ा हो अड़गेड़ा पावली अड़गेड़ा डेंगा दादा जाते रलो पावली अड़गेड़ा
अड़गेड़ा हो अड़गेड़ा पावली अड़गेड़ा।।

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