3 फ़रवरी 2020

देवगुड़ियो मे स्थापित देवी झुला

देवगुड़ियो मे स्थापित देवी झुला......!

झूला प्रतिष्ठा एवं वैभव का प्रतीक माना जाता है। पुराने समय से ही झूला, देवी-देवताओं के साथ जुड़ा रहा है। सभी समाजों में यह देव स्थान एवं धार्मिक अनुष्ठानों का महत्वपूर्ण अंग रहा है। भगवान श्री कृष्ण को झुले में बैठाकर झुला झुलाना हिन्दु धर्म का महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है।
बस्तर में भी सदियों से झुला देवगुड़ियों एवं धार्मिक अनुष्ठानों का महत्वपूर्ण अंग है। बस्तर में अधिकांश देवगुड़ियों के सामने काष्ठ का बना झुला देखने को मिलता है। काष्ठ के बने इन झुलों को देवी झुला कहा जाता है। देवी झुले की महत्वूपर्ण विशेषता यह है कि झुले पर सिर्फ देवियां ही झुलती है। किसी देव को झुले पर बैठने का अधिकार नही होता है।

ये झुले दो प्रकार के होते है - कांटा झुला और दुसरा माता झुला। कांटा झुला सामान्य झुले की तरह ही होता है। लकड़ी से बने इस झुले की सीट पर लोहे की नुकीली कीले लगी होती है। माता झुला एक प्रकार से तराजू की तरह होता है। इसमें एक मजबूत काष्ठ स्तंभ में दो तरफ झुले होते है। जिसमें एक झुले की सीट पर लोहे की नुकीली कीले लगी होती है। वहीं दुसरा झुले की सीट सादी होती है।
झुले में लगी लोहे की नुकीली कीलों पर देवी आया हुआ गुनिया बैठकर झुला झुलता है। कभी कभी दो देवियां के एक साथ एक के उपर एक बैठकर झुला झुलती है। देवी के आर्शीवाद से गुनिया को लोहे की नुकीले कीले बिल्कुल भी नहीं चुभती है। ये झुले मूलतः एक परीक्षण उपकरण होते है। जिसे देव गुड़ी के प्रांगण में इसलिए स्थापित किया जाता था कि यह जांचा जा सकें कि गुनिया पर आई हुई देवी सत्य है अथवा नहीं।
देवीगुड़ी के प्रांगण में स्थापित देवी झुले बस्तर की आदिवासी संस्कृति के महत्वपूर्ण अंग है। इनके प्रति अगाध श्रद्धा को सादर नमन।