मछुआरे की ढूटी......!
बस्तर में काष्ठकला का विस्तार इतना व्यापक है कि हम उसकी कल्पना भी नही कर सकते है। बस्तर में जनजातीय समाजों में रोजमर्रा की अधिकांश वस्तुयें लकड़ी या बांस से ही बनी होती है। घर में खाट से लेकर नदी में सफर के लिये नाव तक सभी लकड़ी की होती है। लकड़ी और बस्तर के आदिम जीवनचर्या का साथ सदियों पुराना है। बस्तर में जब ग्रामीण धर से निकलकर मछली पकड़ने के लिये नदी तालाब की ओर कुच करता है तो उसके हाथ में बांस से बना हुआ एक आकर्षक पात्र जरूर होता है। बांस से बना चैरस एवं गोलाकार पात्र डूटी या ढूटी कहलाता है। मछुआरे का ईनाम होती है उसके द्वारा पकड़ी गई मछलियां और वह अपने ईनाम को बेहद ही आकर्षक पात्र ढूटी मंे सुरक्षित रखता है। ढूटी मछुआरे द्वारा पकड़ी गई मछलियों को रखने का पात्र होता है जिसे हम अतिश्योक्तिपूर्व मछुआरे का संदूक कह सकते है।
मार्ग मंे आते मछुआरे के हाथ में यदि ढूटी दिखाई पड़े तो समझ जाईये कि उसमें मछुआरे की मेहनत जरूर होगी। ढूटी का निचला हिस्सा प्लास्टिक के मटके के समान होता है जिसे बांस की पतली खपचियों को बुनकर बनाया जाता है वहीं उसका मुख बांस की पतली तिलियों से गोलाकार बनाया जाता है बिल्कुल मटके की तरह। पकड़ने के लिये दोनो सिरो पर रस्सियां बंधी होती है। तो यह कहानी थी मछुआरे के संदूक ढूटी की,,,, आप बताईये किस नाम से जानते है ? इस ढूटी को।






