हरिहरहिरण्यगर्भपितामह की सर्वश्रेष्ठ प्रतिमा
ओम सोनी
आज बस्तर में जितनी भी बिखरी हुयी प्रतिमायें मिलती है वे सभी प्रतिमायें नाग शासन काल की देन है। छिंदक नाग राजाओं ने अपने राजत्वकाल में देवी देवताओं की हजारो, उत्तम कोटि की प्रतिमाये बनवायी थी। बस्तर का नागयुग मूर्तिकला के लिये स्वर्णकाल था। इन प्रतिमाओं को देवालयों के गर्भगृह एवं बाहरी आलिंदों में स्थापित करवाया गया था। विभिन्न आक्रमणकारियों एवं तस्करों ने इन प्रतिमाओं को तोड़ा, लूटा और चोरी किया। आज जो भी प्रतिमायें बची है वे या तो खंडित हो गयी या फिर किसी देवगुड़ी में सुरक्षित है। खंडित ही सही, ये प्रतिमायें आज भी नागयुगीन उत्तम मुर्तिकला को प्रदर्शित करती है।
बस्तर के एक ग्राम में मुझे यह खंडित दुर्लभ प्रतिमा मिली जो वास्तव में नागयुगीन श्रेष्ठ मूर्तिकला का प्रतिनिधित्व करती है। इस प्रतिमा का स्थान संग्रहालय में होना चाहिये, जो दुर्भाग्य से यूं ही नष्ट होने के लिये छोड़ दी गयी है।
यह प्रतिमा हरिहरहिरण्यगर्भपितामह की है । इस प्रतिमा में भगवान विष्णु, शिव , ब्रहमा और सूर्य चारों देवताओं का सम्मिलित रूप दर्शाया गया है। प्रतिमा में मुख के पीछे सूर्य का प्रभावलय , सिर पर किरीट मुकुट का धारण एवं कानो में कुंडल पहने हुये है। गले में हार, कौस्तुभमणि और गे्रवेक्य पहने हुये है। कौस्तुभमणि का अंकन विष्णु प्रतिमाओं और ग्रेवेक्य का अंकन शिव प्रतिमाओं में होता है। कमर बंद , धोती एवं लंबे बुट पहने हुये है। पैरों के नीचे सात घोड़े बने हुये है। इन घोड़ों की लगाम सारथी अरूण के हाथों में है जो कि तीन मुख वाला था जिसका एक मुख क्षरित हो गया। पैरों के पास ही दायें तरफ दंड और बायें तरफ पिंगल का अंकन किया गया है। प्रतिमा अष्टभूजी थी जिसमें बायें तरफ के दो हाथ खंडित हो गये है। दायें और बांये तरफ दोनो प्रमुख हाथों में खिले हुये कमल फूल पकड़े हुये है। दाये तरफ के हाथों में उपर से नीचे क्रमश शु्रक, त्रिशुल और शंख पकड़े हुये है। वहां इस प्रतिमा के खंडित अंश बिखरे पड़े है जिसके आधार पर बायें हाथ में उपर से नीचे क्रमशः वेद, खटवांग और चक्र पकड़े हुये है।
दो प्रमुख हाथों को छोड़कर बाकी हाथों में उपर के दोनो हाथ जिसमें शु्रक एवं वेद है वे भगवान ब्रहमा, मध्य के दो हाथ जिसमें त्रिशुल और खटवांग है वे भगवान शिव और नीचे के दोनो हाथ जिसमें शंख और चक्र है वे भगवान विष्णु के रूप को प्रदर्शित करते है। प्रतिमा के दोनो मुख्य हाथ जिसमें खिला हुआ कमल हैे, पैरों में बुट , सारथी, दंड पिंगल और अश्व रथ भगवान सूर्य के रूप को दर्शाते है।
अपराजितपृच्छा और रूपमंडन ग्रंथो के अनुसार हरिहर हिरण्यगर्भ पितामह की प्रतिमा, चार मुख एवं अष्ट भुआजों से युक्त होनी चाहिये। परन्तु इस प्रतिमा में एक मुख, अष्टभुजाओं एवं अन्य विशेषताओं को मिलाकर ब्रहमा शिव विष्णु और सूर्य चारों का सम्मिलित रूप प्रदर्शित किया। वास्तव में यह हरिहरहिरण्यगर्भपितामह की सर्वश्रेष्ठ और बेहद ही दुर्लभ प्रतिमा है।
































