गुमड़पाल का शिव मंदिर.....!
बस्तर में नल वंश , छिन्दक नागवंश ,काकतीय चालुक्य वंश ने लम्बे समय तक शासन किया. अपने शासन अवधि में बस्तर के विभिन्न स्थलों पर इन राजवंशो ने अनेक मंदिरों का निर्माण करवाया था। आज जो भी ऐतिहासिक पुरा संपदा बस्तर में प्राप्त होती है वह सभी छिंदक नागवंश के राजत्व काल की अनुमानित है। अधिकांश मंदिर ध्वस्त हो चुके है। कुछ ही गिनती के मंदिर सही सुरक्षित अवस्था में विद्यमान है। ऐसा ही एक मंदिर गुमड़पाल में है जो दक्षिण भारत की द्रविड स्थापत्य कला का सुंदर उदाहरण है।
विश्वप्रसिद्ध तीरथगढ़ जलप्रपात से आगे कटेकल्याण जाने वाले मार्ग में गुमडपाल ग्राम है.इस ग्राम को चिंगीतराई भी कहा जाता है। इस ग्राम में तालाब के पास एक छोटा सा प्राचीन शिव मन्दिर स्थित है। यह पूर्वाभीमुख मन्दिर लगभग 20 फीट ऊँचा होगा। मन्दिर दो फीट ऊँची जगती पर निर्मित है। मन्दिर गर्भगृह अंतराल एवं मंडप में विभक्त है. मंडप पुरी तरह से नष्ट हो चुका है। मात्र वर्गाकार गर्भगृह ही शेष है. गर्भगृह के प्रवेशद्वार में गणेशजी का अंकन है।
अन्दर गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित था ज़िसकी वर्तमान में जलधारी ही विद्यमान है. वर्तमान में एक छोटा कलश स्थापित है ज़िसकी शिवलिंग के रूप में पूजा की जा रही है। अंतराल भाग में प्रवेशद्वार के दोनो तरफ अलंकृत भित्ती स्तंभ निर्मित है। द्वार शाखा के दाहिनी तरफ नीचे चंवरधारिणी खड़ी है ज़िसके नीचे मयूर का अंकन है। बाये तरफ पगड़ी एवं दाढ़ी वाले उपासक अंजली मुद्रा में बैठे हुए हैं।
मन्दिर का मंडप स्तंभो पर आधारित था ज़िसका निचला भाग ही बचा है। मन्दिर के शिखर भाग के निर्माण में द्रविड़ शैली का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। मन्दिर का उपरी शिखर भाग पिरामिड जैसे बना है। यह तीन तलो में निर्मित है.शिखर ऊपर की ओर संकरा होता गया है.ऊपर आमलक तथा कलश नहीं है।
छिन्दक नागवंश के अंतिम राजा हरिशचन्द्र को पराजित कर महाराज अन्नमदेव ने बस्तर में काकतीय चालुक्य वंश को स्थापित किया। तत्कालीन समय में नाग सामंत आपसी झगड़ो एवं कलह में उलझे रहते थे। उनमे केन्द्रिय नेतृत्व का अभाव था। नाग शासन छोटे छोटे हिस्सो में बंट गया था। अन्नमदेव ने एक एक करके नाग राजाओ पर विजय प्राप्त कर अपना राज्य स्थापित किया।
इस कटेकल्याण तीरथगढ़ क्षेत्र में पहले नाग सरदारो का शासन था। अन्नमदेव ने नाग सरदारो को पराज़ित किया था। यहां संभावना बनती है कि यह मन्दिर भी उसी समय में बनवाया गया होगा। यह क्षेत्र तत्समय में ड़ोडरेपाल , डीलमिली , पखनार , चींगीतराई होते हुए उडिसा जाने का प्रमुख मार्ग था। इन जगहो में भी पुरातात्विक अवशेष प्राप्त होते है। पास के बीसपुर , तीरथगढ़ , चन्द्रगीरी में महल एवं किले की दिवारो के अवशेष आज भी बिखरे पड़े है। परन्तु अन्नमदेव के समय यह मंदिर बना हो ऐसा कोई उल्लेख इतिहास में नहीं मिलता है।
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