बस्तर के जंगलों में आज भी महक रही है पारसी जोड़े की अनोखी प्रेम कहानी....!
बस्तर की पहचान आज ऐसी बनी हुई कि यहां के वातावरण में सिर्फ बारूद की ही गंध आती है किन्तु इसके किसी कोने में आज भी प्रेम की महक है जिसके भीनी खुश्बु के आगे बारूद की गंध फीकी पड़ जाती है। आनंदित कर देने वाली प्रेम की ऐसी ही एक महक आज भी कुटरू नगर की इस समाधि से निकलती है।
यह क्षेत्रों अंग्रेजों की पसंदीदा शिकार गाह थी। यहां के मैदानों में पाये जाने वाले सुडौल जंगली भैंसों के शिकार के लिये शिकारी लालायित रहते थे। ऐसे ही एक पारसी शिकारी पेस्टन जी की गुमनाम समाधि आज भी कुटरू में मौजूद है। इस समाधि के पीछे एक पुरानी प्रेम कहानी को जानकर मन बेहद ही रोमांचित हो जाता है।
बात 1948 के दिनों की है। पेस्टनजी नौरोजी मुंबई के एक व्यापारी थे। जंगली भैंसे के शिकार की चाह ने उन्हें बस्तर खींच लाई। वे जंगली भैंसो की शिकार के लिये बीजापुर के कुटरू आ पहुंचे। यहां शिकार के दौरान एक घायल जंगली भैंसे ने पेस्टनजी को अपने खुरों और सींगों से रौंदकर मार डाला।
बस्तर की धरती अपने अंदर कई रहस्यों को छिपाये हुये है। यहां के हर कोने में ऐसी बहुत सी रोमांचक कहानियां छिपी पड़ी है जो आज भी दुनिया के सामने आने को शेष है। आजादी के दिनों से घटित हुआ ऐसा ही एक किस्सा है जिसमें रोमांच के साथ साथ एक महिला द्वारा अपने दिवंगत पति के प्रति अटूट प्रेम की अनोखी दास्तान है।
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| मित्र राजकुमार |
बस्तर की पहचान आज ऐसी बनी हुई कि यहां के वातावरण में सिर्फ बारूद की ही गंध आती है किन्तु इसके किसी कोने में आज भी प्रेम की महक है जिसके भीनी खुश्बु के आगे बारूद की गंध फीकी पड़ जाती है। आनंदित कर देने वाली प्रेम की ऐसी ही एक महक आज भी कुटरू नगर की इस समाधि से निकलती है।
बस्तर के सुदूर दक्षिण का क्षेत्र आज दक्षिण बस्तर के नाम से जाना जाता है। इसका एक जिला बीजापुर है जो कि घने वनों से आच्छादित एवं विरल आबादी क्षेत्र है। इसी बीजापुर के इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में कुटरू नाम का छोटा सा ग्राम है। कुटरू रियासत काल में बस्तर की सबसे बड़ी जमींदारी रही है। इस क्षेत्र की अन्य खासियत यहां पाये जाने वाले जंगली भैंसे है जिनका रियासतकाल में अंधाधुंध शिकार किया गया।
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| पेस्टन जी 1948 |
यह क्षेत्रों अंग्रेजों की पसंदीदा शिकार गाह थी। यहां के मैदानों में पाये जाने वाले सुडौल जंगली भैंसों के शिकार के लिये शिकारी लालायित रहते थे। ऐसे ही एक पारसी शिकारी पेस्टन जी की गुमनाम समाधि आज भी कुटरू में मौजूद है। इस समाधि के पीछे एक पुरानी प्रेम कहानी को जानकर मन बेहद ही रोमांचित हो जाता है।
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| समाधि |
बात 1948 के दिनों की है। पेस्टनजी नौरोजी मुंबई के एक व्यापारी थे। जंगली भैंसे के शिकार की चाह ने उन्हें बस्तर खींच लाई। वे जंगली भैंसो की शिकार के लिये बीजापुर के कुटरू आ पहुंचे। यहां शिकार के दौरान एक घायल जंगली भैंसे ने पेस्टनजी को अपने खुरों और सींगों से रौंदकर मार डाला।
वैसे यह एक सामान्य ही घटना मात्र लगती है आम तौर पर यह होता भी है कि कभी कभी शिकारी खुद शिकार बन जाता है। किन्तु इनकी मृत्यु के बाद इनकी पत्नि ने कुटरू में ही इनकी कब्र बनवाकर प्रेम की नयी इबारत लिखी। कुटरू के लोग कहते है कि पेस्टन जी की पत्नि जब तक जीवित रही तब तक वह पूण्यतिथी के दिन अपने पति के कब्र पर पुष्प एवं दिये जलाने की राशि डाक द्वारा भेजती रही। बस्तर में जंगलो में सत्तर साल पुरानी प्रेम कहानी की महक आज भी इस समाधि के पास महसूस की जा सकती है।
OM SONI DANTEWADA
OM SONI DANTEWADA



2 comments:
Rochak Kahani !
Thank You Sir
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