28 फ़रवरी 2019

गायब होती नायाब चुनौटी

गायब होती नायाब चुनौटी....!

चुनौटी एक छोटी सी डिबिया होती है जिसमें पान, तंबाकू के लिये गीला चुना रखा जाता है। आमतौर पर चुनौटी तंबाकू रखने के लिये इस्तेमाल होती है। बुढ़े बुजूर्गों के जेबों में आज भी ऐसी छोटी चुनौटी देखने को मिलती है। पहले लकड़ी या पीतल से बनी कलात्मक चुनौटी का चलन था। आजकल प्लास्टिक के छोटी डिबिया में ही चूना तंबाकू रखा जाने लगा है। चुनौटी अब धीरे धीरे गायब होती जा रही है। 

चुनौटी- छायाचित्र सौजन्य शकील रिजवी भाई। 

बस्तर की घड़वा कला अपनी सुंदर कलाकृतियों के कारण पुरे विश्व में प्रसिद्ध है। घड़वा कला से बनी यह चुनौटी बेहद आकर्षक एवं नायाब लग रही है। चुनौटी की इस तस्वीर को कैमरे में कैद किया शकील रिजवी भाई ने। मीन आकृति एवं मछली की शल्कों को बेहद ही शानदार तरीके से सांचे में ढालकर चुनौटी बनाई गई है। मछली के मुख पर लकड़ी का गुटका भी लगाया गया है। 

यह चुनौटी बस्तर की घड़वा कला की शानदार कलाकृति है। आकार में थोड़ी बड़ी है किन्तु बेहद ही अनमोल एवं संग्रह योग्य है। प्राय चुनौटी शंखाकार ही होती है किन्तु अन्य आकारों की भी चुनौटी बनाई जाती है।   लकड़ी से बनी हुई चुनौटी आज भी कुछ लोगों के पास देखने को मिलती है। लकड़ी की चुनौटी में खुदाई कर विभिन्न तरह की आकृतियां बनाई जाती है जिससे बस्तर की काष्ठकला की उन्नत तकनीक का पता चलता है। आप ने कभी ऐसी कोई चुनौटी देखी हो तो उसकी फोटो जरूर भेजिये। 

छायाचित्र सौजन्य शकील रिजवी भाई। 
ओम सोनी दंतेवाड़ा

25 फ़रवरी 2019

सेंट जार्ज आफ जेरूशलम - बस्तर राजा रूद्रप्रतापदेव

सेंट जार्ज आफ जेरूशलम - बस्तर राजा रूद्रप्रतापदेव........!

बस्तर के राजा भैरमदेव की मृत्यु 28 जुलाई 1891 ई में हुई। उस समय रूद्रप्रतापदेव छः वर्ष के थे। इनका जन्म 1885 में हुआ था। ब्रिटिश शासन ने यद्यपि रूद्रप्रताप देव को उत्तराधिकारी स्वीकार कर लिया था तथापि इनकी अल्पव्यस्कता में नवंबर 1891 से 1908 तक बस्तर का शासन अंग्रेजों के अधिकार में था। रूद्रप्रताप देव की शिक्षा दीक्षा रायपुर के राजकुमार कालेज में हुई थी। (रसेल 1906)


तेईस वर्ष की अवस्था में 1908 ई में रूद्रप्रतापदेव के बस्तर के करद राजा के रूप में अभिषिक्त किया गया थ। (दि ब्रेत 1909) इससे पूर्व 1891 ई से 1908 ई तक बस्तर प्रशासन पर सोलह वर्षों से भी अधिक काल तक अंग्रेजों का ही वर्चस्व रहा था। रूद्रप्रताप का प्रथम विवाह बामड़ा नरेश सुढलदेव के.सी.आई.ई की राजकन्या  चंद्रकुमारी देवी के साथ हुआ था। (केदारनाथ ठाकुर 1908) किन्तु 1911 में महारानी की मृत्यु हो गई । इसके बाद महाराज का पुर्नविवाह पुवांया नरेश राजा फतेहसिंह की कन्या कुसूमलता देवी से 1912 ई को हुआ। (भंजदेव 1963) रूद्रप्रताप देव  का कोई पुत्र नहीं था। उनकी मृत्यु के बाद प्रथम रानी से उत्पन्न महारानी प्रफुल्ल कुमारी देवी (1921-1936) को उत्तराधिकारिणी स्वीकार किया गया। 


राजा रूद्रप्रतापदेव ने अपने शासन अवधि (1908 से 1921 ई ) में कई महत्वपूर्ण कार्य करायें। दलपतसागर को गहरा कराया जाना, जगदलपुर में स्वच्छ जल आपूर्ति जैसे महत्वपूर्ण कार्य इनके काल में हुये। शिक्षा के प्रति अपनी रूचि के लिये बस्तर राज्य में पहला पुस्तकालय भी खुलवाया। इन्होने 1914 में एक रामलीला मंडली भी प्रारंभ करवायी थी। इनके काल में बस्तर का प्रसिद्ध आंदोलन भूमकाल 1910 में हुआ था। राजा रूद्रप्रताप देव दया धर्म सत्यता एवं परोपकारिता के अवतार थे। जगदलपुर को चैराहों का शहर बनाने का कार्य भी इनकी ही देन है। राजा रूद्रप्रतापदेव के समय घैटीपोनी जैसी अजीब प्रथा भी प्रचलित थी जिसका विवरण पूर्व में दिया जा चुका है। 

अंग्रेजों की प्रतिसदभाव के कारण 1914 के विश्व युद्ध में इन्होने अंग्रेजी सेना की बहुत सहायता की थी। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान रूद्रप्रताप देव ने काष्ठ निर्मित एक बोट एबंुलेंस भी अंग्रेजों की सहायता के लिये भेजी थी। इस मोटर चलित एंबुलेंस का नाम दी बस्तर रखा गया था। युद्ध समाप्ति के बाद राजा की सज्जनता एवं भरपूर मदद के लिये ब्रिटिश हुकुमत ने राजा को सेंट जार्ज आफ जेरूशलम अर्थात जेरूशलम का संत की उपाधि प्रधान की थी। (भंजदेव 1963)16 नवंबर 1921 की रात्रि राजा रूद्रप्रतापदेव की मृत्यु हो गई। (हीरालालशुक्ल - बस्तर का मुक्ति संग्राम)

ओम सोनी दंतेवाड़ा 9406236396

21 फ़रवरी 2019

बस्तर में प्रचलित थी घैटीपोनी की अजीब प्रथा

बस्तर में प्रचलित थी घैटीपोनी की अजीब प्रथा......!

बस्तर का इतिहास आज भी बेहद ही रहस्यमयी है। इसके कई रहस्य इतिहास के गर्त में छिपे हुये है। शोधकर्ता जब बस्तर के अनंत सागर रूपी इतिहास के गहराई में गोता लगाता है तो उसे ऐसे कई पुरानी घटनायें ज्ञात होती है जो कि पुरे विश्व में सिर्फ बस्तर में घटित हुई है। ऐसे कई रस्मों एवं प्रथाओं की जानकारी मिलती है जो सिर्फ बस्तर में प्रचलित रही है। ऐसी अजीब प्रथा बस्तर में प्रचलित थी जिसे जानने के बाद यह विश्वास हो जाता है कि वाकई में बस्तर का इतिहास का काफी रोचक और रहस्य मयी है। ऐसी ही एक अनोखी प्रथा थी घैटीपोनी की। 

स्त्रियों की बेचने की इस प्रथा को बस्तर इतिहास में घैटीपोनी की प्रथा के नाम ही जाना जाता था। ब्रिटिशकालीन बस्तर में अंग्रेज एजेंट चैपमेन ने 1898 ई की अपनी टिप्पणियों में रूद्रप्रतापदेव युगीन बस्तर में प्रचलित एक विचित्र प्रथा का उल्लेख किया है - राजा की आमदनी का एक अन्य साधन भी था। वह सुंडी कलार धोबी पनरा इन चार जातियों की विधवा या परित्यक्ता स्त्रियों को बेच सकता था। वह इस बात की खोज के लिये अपने दूत भेजा करता था कि ऐसी विधवा स्त्रियां कहां कहां है। 

छायाचित्र सौजन्य शकील रिजवी भाई

वे स्त्रियां अपने-अपने परगने के मुख्यालय में बुलाई जाती थी तथा उनकी नीलामी होती थी। खरीददार उसी जाति का होता था। यह प्रथा घैटीपोनी के नाम से जानी जाती थी जिसका अर्थ है कि कुटूम्ब की बहाली। यदि विधवा का बहनोई राजा का थोड़ा बहुत नजराना देकर विधवा को स्वीकार कर लेता तो वह स्त्री उसको मिल जाती थी। राजा को यह पूरा अधिकार था कि वह स्त्री को अधिक दाम लगाने वाले को दे। 

जब कोई स्त्री अपने पति के साथ दुव्र्यवहार करती थी, तब कभी कभी उसका रूष्ट पति उसे नीलाम करने के लिये राजा को खुद देता था। (बस्तर का मुक्तिसंग्राम पृ 166 हीरालाल शुक्ल) घैटीपोनी की प्रथा भी बदलते समय के साथ बस्तर से लुप्त हो गई है। ऐसी बहुत सी कई प्रथायें थी जो आज भी लोगों के लिये आश्चर्यजनक एवं अविश्वसनीय है। घैटीपोनी प्रथा तो बस्तर के रहस्यमयी इतिहास की एक बानगी भर है। 

बहुत ही प्यारे चित्रों के लिये शकील रिजवी भाई को बहुत बहुत आभार
ओम सोनी दंतेवाड़ा

14 फ़रवरी 2019

बस्तर के जंगलों में आज भी महक रही है पारसी जोड़े की अनोखी प्रेम कहानी

           बस्तर के जंगलों में आज भी महक रही है पारसी जोड़े की अनोखी प्रेम कहानी....!

बस्तर की धरती अपने अंदर कई रहस्यों को छिपाये हुये है। यहां के हर कोने में ऐसी बहुत सी रोमांचक कहानियां छिपी पड़ी है जो आज भी दुनिया के सामने आने को शेष है। आजादी के दिनों से घटित हुआ ऐसा ही एक किस्सा है जिसमें रोमांच के साथ साथ एक महिला द्वारा अपने दिवंगत पति के प्रति अटूट प्रेम की अनोखी दास्तान है।
मित्र राजकुमार

बस्तर की पहचान आज ऐसी बनी हुई कि यहां के वातावरण में सिर्फ बारूद की ही गंध आती है किन्तु इसके किसी कोने में आज भी प्रेम की महक है जिसके भीनी खुश्बु के आगे बारूद की गंध फीकी पड़ जाती है। आनंदित कर देने वाली प्रेम की ऐसी ही एक महक आज भी कुटरू नगर की इस समाधि से निकलती है।

बस्तर के सुदूर दक्षिण का क्षेत्र आज दक्षिण बस्तर के नाम से जाना जाता है। इसका एक जिला बीजापुर है जो कि घने वनों से आच्छादित एवं विरल आबादी क्षेत्र है। इसी बीजापुर के इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में कुटरू नाम का छोटा सा ग्राम है। कुटरू रियासत काल में बस्तर की सबसे बड़ी जमींदारी रही है। इस क्षेत्र की अन्य खासियत यहां पाये जाने वाले जंगली भैंसे है जिनका रियासतकाल में अंधाधुंध शिकार किया गया। 

पेस्टन जी 1948

यह क्षेत्रों अंग्रेजों की पसंदीदा शिकार गाह थी। यहां के मैदानों में पाये जाने वाले सुडौल जंगली भैंसों के शिकार के लिये शिकारी लालायित रहते थे। ऐसे ही एक पारसी शिकारी पेस्टन जी की गुमनाम समाधि आज भी कुटरू में मौजूद है। इस समाधि के पीछे एक पुरानी प्रेम कहानी को जानकर मन बेहद ही रोमांचित हो जाता है। 

समाधि

बात 1948 के दिनों की है। पेस्टनजी नौरोजी मुंबई के एक व्यापारी थे। जंगली भैंसे के शिकार की चाह ने उन्हें बस्तर खींच लाई। वे जंगली भैंसो की शिकार के लिये बीजापुर के कुटरू आ पहुंचे। यहां शिकार के दौरान एक घायल जंगली भैंसे ने पेस्टनजी को अपने खुरों और सींगों से रौंदकर मार डाला। 

वैसे यह एक सामान्य ही घटना मात्र लगती है आम तौर पर यह होता भी है कि कभी कभी शिकारी खुद शिकार बन जाता है। किन्तु इनकी मृत्यु के बाद इनकी पत्नि ने कुटरू में ही इनकी कब्र बनवाकर प्रेम की नयी इबारत लिखी। कुटरू के लोग कहते है कि पेस्टन जी की पत्नि जब तक जीवित रही तब तक वह पूण्यतिथी के दिन अपने पति के कब्र पर पुष्प एवं दिये जलाने की राशि डाक द्वारा भेजती रही। बस्तर में जंगलो में सत्तर साल पुरानी प्रेम कहानी की महक आज भी इस समाधि के पास महसूस की जा सकती है।

OM SONI DANTEWADA

8 फ़रवरी 2019

मुकड़ी मावली के दरबार में होती है प्रेमियों की ईच्छा पुरी

मुकड़ी मावली के दरबार में होती है प्रेमियों की ईच्छा पुरी


प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा होती है की उसे उसका मनचाहा जीवनसाथी मिले परन्तु हर व्यक्ति की यह इच्छा पूरी नहीं होती है। कुछ खुशनसीब होते है जिन्हे उनके मनपसंद जीवनसाथी मिल जाते है। हर प्रेमी जोड़े की ख्वाहिश होती है कि उनका प्रेम अमर रहे, वो दोनों हमेशा साथ रहे। 

परन्तु विभिन्न कारणों से प्रेमी प्रेमिका साथ नही रह पाते है। उनका प्रेम अधूरा रह जाता है। बहुत से प्रेमी प्रेमिका अपने विवाह के लिए विभिन्न तरह के मनौतियां मांगते है। कई तरह के टोटके करते है। मंदिरो में भगवान से प्रार्थना करते है। दंतेवाड़ा में मुकड़ी मावली के समक्ष मांगी गई विनती जरूर पुरी होती है। 

दंतेवाड़ा जिले के छिंदनार ग्राम में प्रचलित एक मान्यता के अनुसार हर वर्ष कई प्रेमी अपने मनवांछित प्रेमिका से विवाह करने के मुकड़ी मावली माता के मंदिर आते है। अपनी प्रेमिका या चहेती लड़की से शादी करने के लिए यहां प्रचलित मान्यता अनुसार उसके बाल या कपडे को पत्थर के नीचे दबाकर रखा जाता है और देवी से बिना रूकावट शादी कराने का निवेदन करते है।

 देवी के शक्ति से नहीं चाहने वाले लड़की तथा उसके परिजनों का विचार बदल जाता है और वे शादी के लिए तैयार हो जाते है। ऐसे सफल प्रेमी हर साल जून में आयोजित जात्रा में आकर देवी को अपनी भेंट चढ़ाते है। इस मंदिर में महिलाओ का जाना वर्जित है।

गीदम से बारसूर मार्ग में स्थित हीरानार से बायीं ओर १७ की. मी. की दुरी पर छिंदनार ग्राम है। इस  छिंदनार ग्राम से बारसूर जाने वाले मार्ग में लगभग चार किलोमीटर की दुरी पर पहाड़ी के नीचे  सैकड़ो वर्ष पुराना एक छोटा सा मंदिर स्थित है। मंदिर काले पत्थर के शिलाओं से निर्मित है। मंदिर में मुकड़ी मावली माता की प्रतिमा स्थापित है। घने जंगलों के मध्य स्थित यह जगह काफी रोमांचकारी है।  किसी जानकार व्यक्ति के साथ यहाँ जा सकते है।

4 फ़रवरी 2019

बस्तर का सबसे खुबसूरत झरना

बस्तर का सबसे खुबसूरत झरना - झारालावा......!

असीम सौंदर्य को अपने अंदर समेटे हुये बस्तर में आज भी ऐसी कई जगहे है जहां इंसान की पहुंच ना के बराबर है। बीहड़ जंगलों में ऐसा अनजानी जगहों का सौंदर्य किसी का भी मन मोह लेता है। थकान और डर दोनों ही प्रकृति के अदभूत सौंदर्य में कहीं खो जाता है। 

दंतेवाड़ा जिले के मस्तक पर तिलक की तरह स्थापित बैलाडीला की पर्वत श्रृंखला हजारों सालों से इतिहास और प्राकृतिक संुदरता को संजोये हुये है। बैलाडीला के ढोलकल में स्थापित गणेश प्रतिमा नागयुगीन वैभवशाली इतिहास की साक्षी है वहीं बैलाडीला के पहाड़ों से फूटते झरने इसके प्राकृतिक सौंदर्य को चार चांद लगाते है। 

बस्तर झरनों का पर्याय है। देश विदेश के हजारों सैलानी इन्हे देखने आते है। ऐसा ही एक झरना जो सचमूच में बस्तर का सबसे खुबसूरत झरना है फिर भी यह लोगों की नजरों से आज भी ओझल है। बैलाडीला के पहाड़ों में से निकलती एक नदी झारालावा बेहद ही खुबसूरत झरना बनाती है जिसको देखने के बाद आप भी यहीं कहेंगे कि सच में यह बस्तर का सबसे खुबसूरत झरना है। 


दंतेवाड़ा से बचेली जाने के मार्ग में भांसी नामक छोटा सा ग्राम है। इस ग्राम से कुछ दूर पहले एक कच्चा रास्ता अंदर बासनपुर की तरफ जाता है। बासनपुर ग्राम से कुछ दुरी पर बैलाडीला की उंची पहाड़ी है। यहां पहाड़ी दो हिस्सों में बंटी हुई है। इस पहाड़ी पर चढकर जाना पड़ता है। चारों तरफ घने जंगलों से युक्त पहाड़ो के बीच में झारालावा नाम का यह बेहद खुबसूरत झरना है।

यहां एक विरान ग्राम है जिसका नाम झारालावा है। इसी ग्राम के नाम से यह झरना झारालावा और यह नदी भी झारालावा नदी के नाम से ही जानी जाती है। यह झरना दो चरणों में है। पहला चरण तो पहाड़ी के तलहटी में ही है। यहां आसानी से बिना थकावट के पहुंचा जा सकता है। यहां नदी एक गहरे कुंड में सुंरग के रास्तों से झरना बनाते हुये गिरती है। आंखों को सुकून देनी वाली सुंदरता यहां काफी खतरनाक और डरावनी हो जाता है। यहां काफी संभलकर चलना होता है। सावधानी हटी दुर्घटना घटी वाली कहावत यहां पर चरितार्थ होने की संभावना सबसे ज्यादा दिखती है। 

इस झरने के बाद मुख्य झरने के लिये पहाड़ी की उंचाई पर जाना आवश्यक हो जाता है। 3000 फीट की उंचाई पर चढ़ने के बाद पुन नीचे की तरफ उतरना पड़ता है। यहां  पहाड़ो के बीच में एक गोलाकार कुंड बना हुआ है जिसमें बस्तर का सबसे खुबसूरत झरना अपने रंगों की छटा बिखेरता हुआ कल कल बहता है। झरने की आवाज को पहाड़ी के नीचे से सुनाई देती है। यहां झरना तीन चरणों में गिरता है। पहले चरण में लगभग 70 फीट उंचाई लिये हुये एक प्लेटफार्म पर यह झरना गिरता है।  


 दुसरे चरण में 20 फीट उंचे प्लेटफार्म से गिरकर यह एक कुंड का निर्माण करता है। कुंड का सफेद झरना काले रंग में परिवर्तित गहरे कुंड मंे ठहर जाता है। यहां आने के बाद झरने की फूहारे जब चेहरे पर पड़ती है तो सारी थकावट कुछ पलों मे ही दुर हो जाती है। मन को आहलादित करने वाली झरने की फूहारे फिर से तन मन को ताजा कर देती है। 

यहां पर प्रकृति ने अपनी इंद्रधनुषी खुबसूरती को बिखेर कर रखा है। इन खुबसूरत रंगों से सराबोर यह झरना पुरे बस्तर का सबसे खुबसूरत झरना है। इसकी खूबसुरती को बस घंटो निहारते रहो। यहां से जाने की इच्छा भी नहीं होती है। वाकई में यह झरना बस्तर के झरनों का कोहिनूर है। इसकी खुबसूरती का मुकाबला बस्तर का कोई भी झरना नहीं कर सकता है। 

यहां जाने के लिये किसी ग्रामीण को अपने साथ ले जाना ही सबसे बड़ी समझदारी है। वैसे यह क्षेत्र नक्सल गतिविधियों से बेहद प्रभावित है। इसलिये यहां जाने से पूर्व अपने विवेक का इस्तेमाल जरूर करें। 
ओम सोनी दंतेवाड़ा