बस्तर का सबसे खुबसूरत झरना - झारालावा......!
असीम सौंदर्य को अपने अंदर समेटे हुये बस्तर में आज भी ऐसी कई जगहे है जहां इंसान की पहुंच ना के बराबर है। बीहड़ जंगलों में ऐसा अनजानी जगहों का सौंदर्य किसी का भी मन मोह लेता है। थकान और डर दोनों ही प्रकृति के अदभूत सौंदर्य में कहीं खो जाता है।
दंतेवाड़ा जिले के मस्तक पर तिलक की तरह स्थापित बैलाडीला की पर्वत श्रृंखला हजारों सालों से इतिहास और प्राकृतिक संुदरता को संजोये हुये है। बैलाडीला के ढोलकल में स्थापित गणेश प्रतिमा नागयुगीन वैभवशाली इतिहास की साक्षी है वहीं बैलाडीला के पहाड़ों से फूटते झरने इसके प्राकृतिक सौंदर्य को चार चांद लगाते है।
बस्तर झरनों का पर्याय है। देश विदेश के हजारों सैलानी इन्हे देखने आते है। ऐसा ही एक झरना जो सचमूच में बस्तर का सबसे खुबसूरत झरना है फिर भी यह लोगों की नजरों से आज भी ओझल है। बैलाडीला के पहाड़ों में से निकलती एक नदी झारालावा बेहद ही खुबसूरत झरना बनाती है जिसको देखने के बाद आप भी यहीं कहेंगे कि सच में यह बस्तर का सबसे खुबसूरत झरना है।
दंतेवाड़ा से बचेली जाने के मार्ग में भांसी नामक छोटा सा ग्राम है। इस ग्राम से कुछ दूर पहले एक कच्चा रास्ता अंदर बासनपुर की तरफ जाता है। बासनपुर ग्राम से कुछ दुरी पर बैलाडीला की उंची पहाड़ी है। यहां पहाड़ी दो हिस्सों में बंटी हुई है। इस पहाड़ी पर चढकर जाना पड़ता है। चारों तरफ घने जंगलों से युक्त पहाड़ो के बीच में झारालावा नाम का यह बेहद खुबसूरत झरना है।
यहां एक विरान ग्राम है जिसका नाम झारालावा है। इसी ग्राम के नाम से यह झरना झारालावा और यह नदी भी झारालावा नदी के नाम से ही जानी जाती है। यह झरना दो चरणों में है। पहला चरण तो पहाड़ी के तलहटी में ही है। यहां आसानी से बिना थकावट के पहुंचा जा सकता है। यहां नदी एक गहरे कुंड में सुंरग के रास्तों से झरना बनाते हुये गिरती है। आंखों को सुकून देनी वाली सुंदरता यहां काफी खतरनाक और डरावनी हो जाता है। यहां काफी संभलकर चलना होता है। सावधानी हटी दुर्घटना घटी वाली कहावत यहां पर चरितार्थ होने की संभावना सबसे ज्यादा दिखती है।
इस झरने के बाद मुख्य झरने के लिये पहाड़ी की उंचाई पर जाना आवश्यक हो जाता है। 3000 फीट की उंचाई पर चढ़ने के बाद पुन नीचे की तरफ उतरना पड़ता है। यहां पहाड़ो के बीच में एक गोलाकार कुंड बना हुआ है जिसमें बस्तर का सबसे खुबसूरत झरना अपने रंगों की छटा बिखेरता हुआ कल कल बहता है। झरने की आवाज को पहाड़ी के नीचे से सुनाई देती है। यहां झरना तीन चरणों में गिरता है। पहले चरण में लगभग 70 फीट उंचाई लिये हुये एक प्लेटफार्म पर यह झरना गिरता है।
दुसरे चरण में 20 फीट उंचे प्लेटफार्म से गिरकर यह एक कुंड का निर्माण करता है। कुंड का सफेद झरना काले रंग में परिवर्तित गहरे कुंड मंे ठहर जाता है। यहां आने के बाद झरने की फूहारे जब चेहरे पर पड़ती है तो सारी थकावट कुछ पलों मे ही दुर हो जाती है। मन को आहलादित करने वाली झरने की फूहारे फिर से तन मन को ताजा कर देती है।
यहां पर प्रकृति ने अपनी इंद्रधनुषी खुबसूरती को बिखेर कर रखा है। इन खुबसूरत रंगों से सराबोर यह झरना पुरे बस्तर का सबसे खुबसूरत झरना है। इसकी खूबसुरती को बस घंटो निहारते रहो। यहां से जाने की इच्छा भी नहीं होती है। वाकई में यह झरना बस्तर के झरनों का कोहिनूर है। इसकी खुबसूरती का मुकाबला बस्तर का कोई भी झरना नहीं कर सकता है।
यहां जाने के लिये किसी ग्रामीण को अपने साथ ले जाना ही सबसे बड़ी समझदारी है। वैसे यह क्षेत्र नक्सल गतिविधियों से बेहद प्रभावित है। इसलिये यहां जाने से पूर्व अपने विवेक का इस्तेमाल जरूर करें।
ओम सोनी दंतेवाड़ा