शेटै से फ़सल की रक्षा....!
जंगल मे जीवन बेहद कठिन होता है. विभिन्न परेशानियो एवं अभावो से दो चार होते हुए सीमित संसाधनों से जीवन बसर करना कोई बस्तर के अबूझमाडियो से सीखे. बस्तर के घने जंगलो मे अबूझमाडिया सदियो से निवासरत है. वे अब इन जंगलो के अनुरूप अपने आप को ढाल चुके हैं. जंगलो से प्राप्त वनोपज के सहारे ये अपनी सारी जिन्दगी गुजार देते हैं.
खेती सिर्फ़ खेती सिर्फ़ भगवान भरोसे है. यहाँ खेती को सबसे ज्यादा नुकसान जंगली सुकरो से होता है. रात को वे झुण्ड के झुण्ड आते हैं और फ़सल तबाह कर देते हैं.
धान या कोदो कुटकी ही करते हैं. जिससे दो समय का भोजन मिल जाता है. अबूझमाड के जंगलो मे खेती योग्य जमीन भी बेहद ही कम है.
यहाँ फ़सल की सुरक्षा हेतु घर के एक पुरुष सदस्य को खेत मे मचान बनाकर रात गुजारनी होती है. मचान के अभाव मे किसी पेड़ के नीचे आग जलाकर खाट पर रात बितानी पड़ती है. रात मे जंगली सुकर के अलावा भालू और तेन्दुआ से मुलाकात की सम्भावना भी अधिक होती है इसलिए तीर और धनुष साथ मे रखना आवश्यक हो जाता है.
धान या कोदो कुटकी ही करते हैं. जिससे दो समय का भोजन मिल जाता है. अबूझमाड के जंगलो मे खेती योग्य जमीन भी बेहद ही कम है.
यहाँ फ़सल की सुरक्षा हेतु घर के एक पुरुष सदस्य को खेत मे मचान बनाकर रात गुजारनी होती है. मचान के अभाव मे किसी पेड़ के नीचे आग जलाकर खाट पर रात बितानी पड़ती है. रात मे जंगली सुकर के अलावा भालू और तेन्दुआ से मुलाकात की सम्भावना भी अधिक होती है इसलिए तीर और धनुष साथ मे रखना आवश्यक हो जाता है.
फ़सल की रक्षा हेतु जानवरों के आने वाले रास्ते मे लकड़ी के उंचे मचान पर थाली बांध दी जाती हैं. थाली को एक लम्बी रस्सी से खाट या मचान तक बांध दिया जाता है. रात को पहरेदार मचान या खाट पर सोते हुए ही समय समय पर रस्सी खीचते जाता है. जिससे वह थाली बजती रहती है और जानवर खेत मे आने से डरते हैं.
थाली का यह उपकरण स्थानीय तौर पर शेटै कहलाता है.अब जंगल खेतो मे बदल रहे हैं. जंगली जानवर अब खत्म हो रहे हैं. ना जंगली जानवर रहेगे और ना ही वे फ़सल खराब करेगे तब फ़िर शेटै जैसे तरिको का क्या प्रयोजन?



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