छिन्द कीड़ा का स्वादिष्ट व्यंजन ......!
बस्तर ने जहाँ कई विविधताओ को अपने अन्दर समेटे रखा है वही यहाँ की लोककला,संस्कृति ,रहन-सहन और खान-पान भी अपने में बेमिसाल है| बस्तर की पहाड़ी इलाको में मिलने वाले बौने छिंद के पौधे भी कई तरह से ग्रामीणों के आय के स्रोत है!
बाजारों में जहाँ छोटे छिंद की काफी मांग है वही इसके जड़ो में पाये जाने वाले लार्वा को भी खाने के तौर पर उपयोग में लाया जाता है |
इस छिंद के कीड़े का वैज्ञानिक नाम rhynchophorus ferrugineus है वही बस्तर में इसे इंद पुण्क कहा जाता है | इस कीड़े का जीवन चक्र ग्रीष्म ऋतू में देखने को मिलता है | किस पौधे में यह कीड़ा है इसके बारे में पता लगाने के लिये ग्रामीण पौधो के बीच कोमल पत्तियों को देखकर पता कर लेते है कि कहाँ लार्वा की उपस्थिति है.
दरअसल जिस पौधे में कीड़ा होता है उसके बीच के कोमल पत्ते मुरझा जाते है और फिर उस पौधे को जमीन से खोद कर छिंद कीड़े को बाहर लाया जाता है | छिंद कीड़े के लार्वा की लम्बाई तक़रीबन 6 से 7 सेंटीमीटर होती है | इसे अपने जीवन चक्र को पूर्ण करने के लिये लगभग 7 से 10 सप्ताह का समय लगता है |
पहले अन्डो से लार्वा बनता है फिर यही लार्वा थोड़ी बड़ी होकर जड़ो से बाहर आकर अपने लिये उसी छिंद के पौधो की रेशो से प्यूपल केस बनाती है फिर प्यूपा का निर्माण होता है तदोपरांत एक वयस्क कीड़े का निर्माण होता है | कीड़े की प्रारंभिक और अंतिम दोनों अवस्था काम में आती है | प्रारंभिक अवस्था लार्वा जहाँ तेल में तल कर खाने में उपयोग किया जाता है वही अंतिम अवस्था बच्चो के मनोरंजन के साधन के तौर पर भी उपयोग में लाया जाता है |
परिपक्व कीड़े के सामने बने सुड की तरह दिखने वाले नाल भाग में छिंद के काँटे को लगाया जाता है फिर उसे फिरकी घुमा कर रोक लिया जाता है कीड़े की उड़ने की आवाज छोटे बच्चो को ख़ुशी की अनुभूति देती है |
जिस तरह बस्तर में छोटे छिंद के लार्वा को स्वादिष्ट और पौष्टिक माना जाता है वही दुनिया के कई हिस्सों में भी कोकोनट लार्वा और डेड पाम के लार्वा को खाने में उपयोग में लाया जाता है |
पोस्ट साभार चन्द्रा मण्डावी जी
टोरा तेल मे भूनकर नमक मिर्च सहित क्रन्ची बनाकर कड़ कड़ की आवाज करते हुए खा सकते हैं

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