कांकेर के सोमवंशी शासकों का इतिहास एवं वंशावली.....!
दसवी ग्यारहवी सदी तक वर्तमान बस्तर संभाग अर्थात कांकेर और प्राचीन चक्रकोट राज्य पर छिंदक नाग राजाओ ने अपना एकछत्र शासन चलाया। नागवंशी शासक राजभूषण सोमेश्वर देव (1069 ई से 1109 ई) ने वर्तमान बस्तर के आसपास के सभी क्षेत्रों को अपने अधीन कर चक्रकोट राज्य का विस्तार किया था। सोमेश्वरदेव की मृत्यु के बाद चक्रकोट पर नागों की सत्ता कमजोर पड़ गयी। कल्चुरी शासकों ने चक्रकोट के बहुत बड़े हिस्से पर अपना अधिकार कर लिया। कल्चुरी शासकों की निर्बलता के कारण उनके अधीन चक्रकोट के कुछ हिस्सों ने अपनी स्वतंत्रता घोषित कर नये राज्यों के रूप में जन्म लिया।
उन राज्यों में से एक कांकेर राज्य भी था। कांकेर को प्राचीन अभिलेख में काकरय भी कहा है। बारहवीं सदी के मध्य में कांकेर में सोमवंशी शासकों ने अपना प्रभुत्व स्थापित किया। सोमवंशी शासकों के काल से लेकर वर्तमान तक कांकेर राज्य ने इतिहास में अपना राज्य होने का अस्तित्व बनाये रखा। कालांतर में सोमवंशी शासकों को कल्चुरियों की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी। आज भी कांकेर में सोमवंशी शासकों द्वारा निर्मित देवालय एवं तालाब देखने को मिलते है।
सोमवंशी शासकों ने लगभग दो सौ साल तक कांकेर क्षेत्र में अपना शासन चलाया। इस अवधि में कई राजाओं ने कांकेर के अलग अलग क्षेत्रों में अपनी राजधानियां बनाकर शासन किया। उस काल में राजाओं द्वारा जारी किये शिलालेखों और ताम्रपत्रों से शासन अवधि एवं शासकों वंशावली ज्ञात होती है। सोमवंशी शासकों में बाघराज के गुरूर लेख, कर्णराज का सिहावा अभिलेख, पंपराज के दो ताम्रपत्र एवं भानुदेव के कांकेर शिलालेख से इस वंश के राजाओं की वंशावली ज्ञात होती है।
इन अभिलेखों के आधार पर सिंहराज से लेकर भानुदेव तक लगभग 200 साल तक सोमंवशी शासकों ने कांकेर में राज किया। मेचका सिहावा क्षेत्र में कल्चुरी शासकों की निर्बलता का लाभ उठाकर सिंहराज ने सिहावा में सोमवंश की सत्ता स्थापित की। सिंहराज की जानकारी कांकेर मे भानूदेव के शिलालेख से मिलती है। इतिहासकारों ने सिंहराज की शासन अवधि 1130 ई से 1150 ई के मध्य अनुमानित की है।
सिंहराज के बाद शासक हुए बाघराज। बाघराज को व्याघ्रराज भी कहा गया है। इस राजा की जानकारी सिहावा अभिलेख, गुरूर अभिलेख एवं भानूदेव के कांकेर शिलालेख से मिलती है।
बाघराज के बाद उसका पुत्र वोपदेव शासक बना। वोपदेव को कल्चुरी शासक जगददेव की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी। वोपदेव के दो पुत्र थे पहला कृष्ण जिसने कर्णराज के नाम से शासन किया एवं दुसरा सोमराज।
कर्णराज ने अपने भाई सोमराज को पराजित कर सिहावा में अपना शासन स्थापित किया। उसने सोमराज को चारामा और गुरूर का क्षेत्र दे दिया। इस प्रकार सोमवंश दो शाखाओं में विभक्त हो गया। कर्णराज ने 1184 से 1206 ई तक शासन किया।
कांकेर के टंहकापार ताम्रपत्र के अनुसार 1213 ई पंपराज कांकेर क्षेत्र में शासन कर रहे थे। ताम्रपत्र के अनुसार पंपराज सोमराज का पुत्र था। सोमराज वोपदेव का पुत्र एवं कर्णराज का भाई था। यह सोमवंश की दुसरी शाखा का शासक था। पंपराज के पुत्र वोपदेव की अकाल मृत्यु के बाद सोमवंश की यह दुसरी शाखा पहली शाखा में विलीन हो गई।
कर्णराज का पुत्र जैतराज ने कुछ दिनों तक शासन किया। जैतराज के बाद सोमचन्द्र और उसके बाद भानूदेव कांकेर का राजा बना। भानूदेव ने कांकेर में 1306 से 1327 ई तक शासन किया। उसके पश्चात भानूदेव का पुत्र चंद्रसेनदेव कांकेर का राजा हुआ। जिसने 1327 से 1344 ई तक कांकेर पर राज किया। इसके बाद कांकेर में सोमवंश का शासन समाप्त हो गया।
सोमवंशी शासकों की वंशावली एवं क्रमिकता कुछ इस प्रकार हैरू-
1. सिंहराज
2. बाघराज या व्याघ्रराज
3. वोपदेव
4. कर्णराज (भाई सोमराज को महामांडलिक नियुक्त किया। )
5. पंपराज (सोमराज का पुत्र) इसका पुत्र वोपदेव जो अकाल मृत्यु को प्राप्त हुआ।
6. जैतराज (कर्णराज का पुत्र)
7. सोमचंद्र देव
8. भानूदेव (कांकेर में 1306 ई से 1327 ई तक शासन किया।)
9. चंद्रसेन देव (1327 से 1344 ई तक शासन किया। )
आलेख - ओमप्रकाश सोनी दंतेवाड़ा
संदर्भ:- 1. कांकेर का राजनैतिक एवं प्रशासनिक इतिहास - दिनेश राठौर
2. एपीग्राफिका इंडिका 09
3.हीरालाल सूची।
4. रियासत कांकेर का इतिहास - डा रामकुमार बेहार सर।
5. छत्तीसगढ़ का इतिहास - प्यारेलाल गुप्त।

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