ओ से होती है ओखली........!
बचपन से आज तक हम ओ से ओखली ही पढ़ते आये है। ओ से और भी कई चीजे होती है परन्तु , इस पर कभी ध्यान ही नहीं गया। ओखली और हमारा रिश्ता विद्यालय के शुरूआती दिनों से ही शुरू हो जाता है। उस समय तो ओखली को जानने का एक ही चित्र होता था एक महिला खड़ी होकर मूसल से गोलाकार ओखली में मसाले कुटते हुए दिखाई पड़ती , मन मस्तिष्क में बस आज तक यही चित्र अंकित है।
धीेरे धीरे ओखली को और भी करीब से जाना, जब मां स्टील की बनी छोटी सी ओखली में मसाले, लहसून, सुखी मिर्च कुटती थी , तो उसकी ठन ठन की वो आवाज आज भी कानो में सुनाई पड़ती है। कुटे मसालों की वह खुश्बु आज भी महसूस होती है। ओखली में कुटे हुऐ मसालों से बनी जायकेदार सब्जी का तो क्या कहना बस उंगलियां चाटते रहो ऐसा आनंद तो मिक्सरग्राइंडर से ना मिलता है।
ओखली को परिभाषित करता यह मुहावरा तो लगभग सभी को याद है। जब ओखली में सिर दिया है तो मूसल से क्या डरना अर्थात जब कठिन काम करने का निर्णय ले लिया है तो मुसीबतों से क्या डरना। छोटी सी यह ओखली सफल जीवन जीने का सार्थक संदेश देती है।
ओखली और मूसल का रिश्ता पति और पत्नि की तरह ही है। दो सच्चे प्रेमियों का प्रेम तो मूसल और ओखली में ही दिखता है। पति पत्नि का प्रेम देखना है तो मूसल और ओखली को प्रेम को समझिये , लड़ते है झगड़ते है फिर भी दोनो साथ रहते है। एक के बिना दोनो ही अधुरे है।
ओखली भी तरह तरह की होती है। स्टील की, पत्थर की और लकड़ी की......और भी कई धातुओं की बनी होती है। छोटी से लेकर बड़ी तक ओखली और मूसल देखने को मिल जाते है।
एक ग्रामीण के घर में मैने लकड़ी की यह पुरानी ओखली देखी। उस घर की वृद्ध महिला ने बताया कि इस ओखली में मेरी सास मिर्च मसाले कुटा करती थी और आज मेरे पोते की बहु मसाला कूटती है। ओखली का पीढ़ियों से भी पुराना रिश्ता आज भी ग्रामीण इलाकों में देखने को मिल जाता है। जितना समझा और जाना, उतना बखान किया इस ओखली का..........अब आप की बारी कुछ तो कहिए ओखली के बारे में।
ओम सोनी दंतेवाड़ा
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