14 मई 2019

साल वनों का द्वीप है बस्तर

साल वनों का द्वीप है बस्तर.....!

साल का वृक्ष छत्तीसगढ़ का राजकीय वृक्ष है। बस्तर में साल के पेड़ो की अधिकता के कारण बस्तर को साल वनों का द्वीप कहा जाता है। साल का पेड़ बस्तर की आदिवासी संस्कृति का अहम हिस्सा है। आदिवासी संस्कृति के बहुत से रीति रिवाज साल वृक्ष के बिना पुरे नहीं होते है। साल को यहां सरई भी कहा जाता है।

शादी विवाह के मंडप हो या छठी का कार्यक्रम इसके लिये मंडप साल पेड़ के टालियों और पत्तों से ही बनाया जाता है। इसकी छांव में ही ये कार्यक्रम संपन्न किये जाते है। सुबह की शुरूआत भी साल के दातौन से ही शुरू होती है। शादी ब्याह शोक आदि कार्यक्रमों मे दोना पत्तल के लिये साल के पत्तों का ही प्रयोग किया जाता है। अतिथियों को भोजन कराना हो या खुद पानी पीना हो उसके लिये साल के पत्ते से ही दोना पत्तल का उपयोग किया जाता है।
आदिवासी संस्कृति में साल के पत्तों का प्रयोग बेहद शुभ माना जाता है। साल के पेड़ तले उगने वाला बोड़ा बस्तर का सबसे लजीज सब्जी है। इसके व्यवसाय से लोगों को अच्छी खासी आमदनी होती है। साल के पत्ते से ग्रामीण चोंगी बीड़ी भी बनाते है। साल का वृक्ष प्रायः झुंडो में ही नजर आते है। एक साथ चार सौ पांच सौ साल के पेड़ लगे रहते है।

ये इतने उंचे होते है कि आधार से शीर्ष तक देखने में गले में मोच आने की संभावना रहती है। इन्ही साल वृक्षों के नाम पर ही गुलशेर खाँ शानी जी ने शाल वनों का द्वीप नामक पुस्तक भी लिखी है।
इसकी लकड़ी इमारती कामों में प्रयोग की जाती है। इसकी लकड़ी बहुत ही कठोर, भारी, मजबूत तथा भूरे रंग की होती है। साल के बारे में आप और क्या क्या जानते है जरूर शेयर करे।