21 मई 2020

डबरी : खेत में जल की खेती

डबरी खेत में जल की खेती....! ’श्रीकृष्ण जुगनू
पानी को बचाकर रखना अनेक कार्यों की सिद्धि है। मुझे सुश्रुत का वह सूत्र याद आता है जिसमें वह जल स्रोत को वाप्य कहते हैं। सामान्य रूप में इसका मतलब बावड़ी होता है जिसे वापी (बावड़ी) भी कहा जाता है, लेकिन वाप्य शब्द वपन (बुवाई) से बना लगता है। इसमें पानी की खेती का वह पुरातन भाव छिपा है जब व्यक्ति ने बीजों की तरह पानी की भी खेती करनी चाही होगी और जल की ऐसी खेती ने न केवल भूमि की नमी को बनाए रखा बल्कि कृत्रिम सिंचाई पहला अध्याय शुरू किया जिसमें मछली जैसी जलीय शाक भी पली...। ( भारतीय संस्कृति और जल)

फेसबुक मित्र दामोदर सारंग ने छत्तीसगढ़ अंचल के सुकमा जिले में प्रचलित डबरी जैसे पारंपरिक जल स्रोत के चित्र साझा किए तो मैंने कबीला काल की इस प्रणाली के बारे में जानना चाहा। यह जल को जमा रखने की कोशिश है। यह डबरी वही है जिसे हम ष्डाबरष् कहते हैं। तुलसीदास ने भी डाबर ही कहा है। डबरी यानी अपने खेत में खेत की सिंचाई के लिए बनाया जाने वाला जलस्रोत। शायद यह कुओं से पुरानी विधि हो। घर और गांव वाले इसके निर्माण में मदद करते हैं। यह हमारा डाबर अथवा ष्डाबरकियाष् है। मेरे आसपास डाबर नाम से गांव भी बसे हैं। जल संरक्षण और समीप में बस्ती निवेश का सुंदर उदाहरण। डबरी को खेत में किसी एक किनारे पर बनाते हैं। जहां प्लव अथवा ढलान रहता हो, ऐसी जगह देखकर खुदाई की जाती है ताकि समूचे खेत का पानी उसमें एकत्रित हो सके। डबरी वर्षा जल को एकत्रित करती है। सिंचाई, घरेलू निस्तारण में उपयोगी तो है ही और यदि पानी की उपलब्धता वर्ष भर है तो डबरी मछली पालन के काम आती है यानी मछरी की डबरी।यह भूमि वाले किसान के खेत में ही बनाई जाती है। यह आकार में तालाब से छोटी लेकिन कुंड से बड़ी श्रेणी की रचना है। कभी कभी इसको ष्डबराष् भी कहते हैं। वर्षा से पहले पहले डबरा का काम पूरा कर लिया जाता है ताकि बूंद- बूंद पानी बचे और वर्षा का जल हर बीज को अंकुरण के लिए राजी कर सकता है, ऐसे में अति उपयोगी है ही। कुछ और बातें आपको बतानी है... अक्षय तृतीया पर जल दान की महत्ता है... यह मानकर जल पर चर्चा का मन हुआ। जय जय।