21 मई 2020

मित्रता के प्रतीक - कुड़ई फूल

मित्रता के प्रतीक - कुड़ई फूल.....!
बस्तर के जंगल इन दिनों कुड़ई फूल यानि कुटज की महक से गमक उठे हैं, ऐसा लगता है मानों कुदरत ने आगंतुकों के स्वागत में अगरबत्ती सुलगा रखी हो।बन्द गाड़ियों में बैठकर इसे महसूस नहीं किया जा सकता।वैसे आयुर्वेद में भी कुटज का खास इस्तेमाल किया जाता है। अतिसार, संग्रहणी जैसे पेट के रोगों में इसकी दवा को कारगर माना जाता है। कुटज घन वटी, कुटजारिष्ट इससे ही तैयार की जाती है।
और हां, बस्तर में पुराने समय में मित्रता कायम करने के लिए कुड़ई फूल का भी आश्रय लिया जाता था। इसे मीत बदना कहा जाता था। जिसे कुड़ई फूल बद लिया यानि मान लिया तो फिर दोनों आजीवन एक दूसरे को वास्तविक नाम से नहीं, बल्कि कुड़ई फूल कहकर संबोधित किया करते थे। ठीक उसी तरह, जैसे यहां कोदोमाली, डांडामाली, भोजली(जवारा) बदने की प्रथा प्रचलित थी।खैर, समय के साथ न तो ये उपमेय बाकी रहे, न ही उपमान। आधुनिकता की चकाचैंध ने ग्राम्य जीवन शैली को कोरोना की तरह संक्रमित जो कर दिया है।शहरीकरण की अंधी दौड़ में न तो कुड़ई फूल, कोदोमाली जैसे वनस्पति बाकी रह गए, बल्कि और भी ऐसे प्रतिमान लुप्त होते जा रहे हैं।