18 मई 2020

देव आगमन की सूचक थाल (घण्टा)का वादन

देव आगमन की सूचक थाल (घण्टा)का वादन....! 

बस्तर मे मड़ई जात्रा या कोई भी उत्सव हो तो देव स्तुति के लिये ढोल, नगाड़े, शहनाई आदि का वादन अनिवार्य होता है. जात्रा अथवा मड़ई के अवसर पर देवी देवताओ के अगवानी मे तुरही एवं कांसे की गहरी थाल बजाने की परम्परा भी बस्तर मे देखने को मिलती है. कांसे का थाल एक तरह से घंटा ही है क्योंकि इसे बजाने से आवाज भी कुछ हद तक घंटे के समान ही आती है. 
मड़ई मे जब भी देव खेलनी की रस्म होती है तो साथ मे सम्बन्धित ग्राम के देव के पुजारी एवं सहायक तुरही एवं
थाल बजाते हुए ही रस्म पुरी करते हैं.थाल का वादन बेहद ही अनिवार्य एवं शुभ माना जाता है. इसकी ध्वनि मन मे उत्साह एवं भक्ति का संचार करती है. कोई भी मड़ई या जात्रा घंटे थाल के वादन के बिना पूर्ण नहीं होती है. इसकी आवाज इतनी स्पष्ट और मधुर होती है कि बहुत दुर से ही देव आगमन की सूचना प्राप्त हो जाती है. इसका वादन ही देव आगमन का सूचक माना जाता है. जब भी किसी भी ग्राम के देवी देवता मड़ई मे भाग लेने हेतु प्रस्थान करते हैं तो उनके पुजारी कांसे की थाल को बजाते हुए उनकी अगवानी करते हुए आगे बढते है.सही मायने (घंटे)थाल की आवाज ही मड़ई की पहचान होती है. ढोल, तुरही और (घंटे )थाल की कर्ण प्रिय आवाज ही मड़ई मे नाचते युवक युवतियो मे जोश एवं उत्साह भर देते हैं जिसे मड़ई का आनंद दुगुना हो जाता है.