18 मई 2020

अथश्री जगदलपुर नामकरण कथा

अथश्री जगदलपुर नामकरण कथा....! 
1770 ईस्वी मे मराठा आक्रमण से त्रस्त होकर महाराज दलपत देव ने राजधानी बस्तर से जगतुगुडा मे स्थानान्तरित करने का निश्चय किया. जगतुगुडा इन्द्रावती के तट पर जगतु माहरा के कबीले का नाम था. इस क्षेत्र मे जंगली जानवरो का आतंक व्याप्त था. एक अन्य अनुश्रुति के अनुसार जगतु माहरा ने जंगली जानवरो से सुरक्षा हेतु महाराज दलपत देव से मदद माँगी. 
बस्तर संस्कृति और इतिहास में लाला जगदलपुरी जी कहते है कि जगदलपुर मे पहले जगतु माहरा का कबीला रहता था जिसके कारण यह जगतुगुड़ा कहलाता था। जगतू माहरा ने हिंसक जानवरों से रक्षा के लिये बस्तर महाराज दलपतदेव से मदद मांगी। दलपतदेव को जगतुगुड़ा की जलवायु भा गयी  , उसके बाद दलपत देव ने जगतुगुड़ा में बस्तर की राजधानी स्थानांतरित की। जगतु माहरा और दलपतदेव के नाम पर यह राजधानी कालान्तर मे जगदलपुर कहलाई।  बस्तर के दशहरा पर्व मे काछिन देवी की पूजा की महत्वपूर्ण रस्म निभाई जाती है. दलपतदेव ने जगतु माहरा की ईष्ट देवी काछिनदेवी की पूजा अर्चना कर दशहरा प्रारंभ करने की अनुमति मांगने की परंपरा प्रारंभ की तब से अब तक प्रतिवर्ष बस्तर महाराजा के द्वारा दशहरा से पहले आश्विन अमावस्या को काछिन देवी की अनुमति से ही दशहरा प्रारंभ करने की प्रथा चली आ रही है।