21 मई 2020

धान की बालियों का वंदनवार - सेला

धान की बालियों का वंदनवार - सेला...!
घर की चैखट पर वंदनवार लगाने की भारतीय परम्परा सदियों पुरानी है. प्रायः पुरे भारत में सभी प्रमुख उत्सवो यथा नवरात्रि, दीपावली, गुड़ी पड़वा के अवसर पर घरो के प्रवेशद्वार पर वंदनवार लगाने की परम्परा प्रचलित है. इन त्यौहारो के शुभ अवसर पर देवी देवताओ के स्वागत वन्दन हेतु पुष्प, आम पत्ते का वंदनवार लगाते है. स्वागत वन्दन हेतु लगाये जाने के कारण ही ये वन्दनवार लगाते हैं. दीपावली के अवसर पर तो आम पत्तों का वन्दनवार तो आप सभी ने लगाया होगा. बस्तर मे धान कटाई के बाद धान की बालियो से बने हुए वंदनवार लगाने का रिवाज है. धान के इन वन्दनवारो को यहाँ सेला कहा जाता है. धान कटाई के बाद धान की बालियाँ सुखाकर रख ली जाती है. धान की इन बालियो के तनो को आपस मे गुँथकर पांच अंगुल चैड़े एवं चैखट की माप के लम्बे पट्टे का आकार दिया जाता है. इनकी गुँथाई को देखकर लगता है जैसे सोनारो ने गले की चैन बनाना इसी वंदनवार से सीखा हो.
इस पट्टी का निचला हिस्सा कुछ इस तरह गुँथा हुआ होता है जैसे अप्सरा ने अपने लम्बी बेनी (चोटी) गुथ रखी हो. इसके नीचे धान की बालियाँ लटकते रहती है. सेला मे लटकते धान के दाने सूर्य की किरणो से कुछ इस तरह दमक उठते है जैसे चैखट पर कोई स्वर्ण हार सजा रखा हो.वन्दनवार के प्रकारो मे सेला सबसे उत्तम प्रतीत होता है. सोने की चमक लिया हुआ सेला देवी देवताओ के सम्मान मे सर्वोत्तम वन्दनवार है.बस्तर मे सेला प्रायः किसानो के घरो एवं मंदिरो की शोभा बढाता हुआ दिखलाई पड़ता है.धान कटाई के बाद होने वाले लक्ष्मी जगार के अवसर पर इसे लगाना बेहद ही शुभ माना जाता है.प्रस्तुत सेला हिंगलाजिन मंदिर गिरोला का है.कुछ आप भी बताईये और किस किस तरह
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