20 मई 2020

लहुरा गजपति सदा सलामत

लहुरा गजपति सदा सलामत...!

बस्तर अपने आप मे जितना रहस्यमयी है उतना ही यहाँ का इतिहास भी रहस्यमयी है. बस्तर इतिहास के  बहुत से पहलू आज भी इतिहासकारो एवं आमजनो के लिये शोध एवं आश्चर्य का विषय है. पूर्ववती नल एवं नाग राजाओ के भाँति बस्तर के चालुक्य काकतीय राजवंश के इतिहास मे ऐसी बहुत सी पहेलिया है जिसे आज तक बूझा नहीं जा सका है.1324 ईस्वी के बाद से बस्तर मे स्थापित काकतीय राजवंश की इतिहास की जानकारियो के लिये बहुत सी वंशावली एवं अन्य लिखित दस्तावेज उपलब्ध है. दंतेवाडा स्थित शिलालेख अनुसार महाराज दृगपाल देव (1680- 1709इस्वी) नवरंगपुर जीतने की खुशी मे अपनी महारानी और युवराज रक्षपाल देव सहित मंदिर मे देवी दर्शन हेतु पधारे थे. दृगपाल देव की मृत्यु उपरांत तेरह वर्ष की आयु मे 1709 इस्वी मे रक्षपाल देव बस्तर की गद्दी पर आसीन हुए. रक्षपाल देव को राजपाल देव भी कहा गया है. (संदर्भ हीरालाल शुक्ल बस्तर का मुक्तिसंग्राम) प्रतापराज देव (1602 - 1625 इस्वी ) ने नाग सरदारो से डोंगर के तरफ के 18 गढो को जीतकर अपने राज्य मे मिलाया था. तब से डोंगर भी चालुक्य काकतीय  राज्य का दुसरा मुख्यालय बन गया था. दृगपाल देव के समय युवराज राजपाल देव डोंगर मे शासन सम्भाल रहे थे.अंग्रेज अधिकारी ब्रेत ने द छत्तीसगढ़ फ्युडिटरी स्टेट गजेटियर मे लिखा है कि बस्तर राजा रक्षपाल देव के समय  डोंगर की शाखा और बस्तर की शाखा एक हो गयी. डोंगर शाखा के राजा के अधिकार मे बस्तर शाखा भी आ गयी. तब राजधानी डोंगर से उठकर मूल शाखा बस्तर चली गयी. और राजा को लहुरा गजपति की उपाधि मिली.( संदर्भ काकतीय युगीन बस्तर के के झा) तब से बस्तर राजाओ की मंगलकामना मे लहुरा गजपति सदा सलामत का प्रयोग किया जाने लगा. 

आलेख ओम प्रकाश सोनी