बस्तर मूर्ति शिल्प की अनमोल धरोहर- बारसूर का चन्द्रादित्य मंदिर......!
आज विश्व धरोहर दिवस के उपलक्ष्य में बारसूर के चन्द्रादित्य मन्दिर की चर्चा करना आवश्यक हो जाता है। बारसूर बस्तर की ऐतिहासिक नगरी है. प्राचीन काल मे बारसूर को नाग राजाओ की राजधानी का गौरव प्राप्त था. इन्द्रावती के तट पर आबाद बारसूर अपने अंदर नागयुगीन अनेक ऐतिहासिक ईमारतो को संरक्षित किये हुए है.
यहाँ का मामा भांजा मन्दिर, बत्तीस खम्बो पर आधारित युगल शिव मन्दिर, विशालकाय गणेश प्रतिमाये आज बस्तर की पहचान बन चुकी है. इसके अतिरिक्त बारसूर का चन्द्रादित्य मंदिर बस्तर की नाग कालीन प्रतिमा शिल्पो की विशिष्टता लिये हुए हैं.
पुरे बस्तर मे सिर्फ़ चन्द्रादित्य मन्दिर ही एकमात्र ऐसा मंदिर है जिस पर जड़ी हुई प्राचीन मूर्तियाँ आज भी सुरक्षित है. बारसूर मे संग्रहालय परिसर मे किनारे तालाव के तट पर चन्द्रादित्य मंदिर अवस्थित है. भगवान शिव को समर्पित यह मन्दिर गर्भगृह, अन्तराल और मण्डप मे विभक्त है. किसी आक्रमण के कारण इस मंदिर का शिखर पुरी तरह से नष्ट हो चुका है.
गर्भगृह मे शिव लिंग प्रतिष्ठापित है. गर्भगृह के प्रवेशद्वार के ललाटबिम्ब मे हरिहर की प्रतिमा अंकित है. मण्डप के अन्दर नन्दी की अलंकृत पाषाण प्रतिमा स्थापित है. मण्डप की दीवारे बेहद ही शादी है. मण्डप पुरी तरह से ध्वस्त हो चुका था, कालान्तर मे इसका जीर्णोदधार कर इसे मूल स्वरुप मे लाया गया.
गर्भगृह की तीनो बाहरी दीवारो पर प्राचीन प्रतिमाये जड़ी हुई है. इनमे शिवपरिवार, विष्णु एवं उनके अवतार, अष्टदिकपाल, शाक्त प्रतिमाये, व्याली अंकन, मैथुन प्रतिमाये, एवं तत्कालीन समाज के कुछ दृश्यो का अंकन भी प्रतिमाओ में हुआ है. मैथुन प्रतिमाओ के अंकन के कारण इसे बस्तर का खजुराहो भी कहा जाता है.
चक्रकोट के नाग राजा जगदेकभूषण के महामण्डलेश्वर चन्द्रादित्य महाराज ने 1061 इस्वी मे इस शिव मंदिर का निर्माण करवाया था. चन्द्रादित्य के नाम पर यह मंदिर चन्द्रादित्य मंदिर के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर के खर्च एवं रख रखाव हेतु चन्द्रादित्य ने महाराज धारावर्ष से गोवर्धननाडू ग्राम खरीद कर अर्पित किया था.
इस मंदिर के अतिरिक्त चन्द्रादित्य ने चंद्र सरोवर भी खुदवाया था जो आज इस मंदिर से लगा हुआ बारसूर का विशाल बूढा तालाब है. मंदिर , तालाब के अतिरिक्त उसने चन्द्रादित्य बाग भी लगवाया था. इस मंदिर की एक ही जानकारी के दो शिलालेख मिले है.एक तो इस मंदिर से और दुसरा 70 किलोमीटर दुर जाँगला से प्राप्त हुआ है.
नाग कालीन प्रतिमा शिल्प के अध्ययन हेतु यह मंदिर किसी भी शोधार्थी के लिये बेहद ही उपयुक्त है. इसके अतिरिक्त बारसूर मे सोलह खम्भा मन्दिर, पेद्म्मा गुड़ी, हिरमराज मन्दिर भी अपने जीर्णोद्धार की बाट जोह रहे है. बारसूर जिला दंतेवाडा के गीदम नगर से 20 किलोमीटर की दुरी पर है. रायपुर से सडक मार्ग से लगभग 400 किलोमीटर की दुरी पर है. वही विश्व प्रसिद्ध चित्रकोट से सिर्फ़ 45 किलोमीटर की दुरी पर है.







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