कांकेर के चंद्रवंशी राज्य की स्थापना का रोचक इतिहास.......!
आज उत्तर बस्तर के नाम से विख्यात कांकेर बस्तर से एक अलग रियासत रही है. इसका अपना अलग स्वतंत्र इतिहास है. कांकेर मे भी दसवी ग्यारहवी सदी मे चक्रकोट के छिन्दक नाग राजाओ का आधिपत्य रहा है. बारहवी सदी के प्रारंभ मे यहाँ सोमवंशियो ने अपनी सत्ता स्थापित की. कालान्तर मे सोमवंशी राजाओ को कल्चुरियो की अधीनता स्वीकार करनी पडी. सोमवंश के बाद काकेर मे कुछ समय तक कण्ड्रा सरदारो का शासन रहा. कण्ड्रा सरदारो के पतन के बाद कांकेर मे चंद्रवंशी राजाओ का शासन स्थापित हुआ. कांकेर मे चंद्रवंशी शासको का शासन 1397 इस्वी से 1947 इस्वी तक रहा. कांकेर में चंद्रवश की स्थापना के पीछे की कथा भी बेहद ही रोचक है. सिहावा के देउरपारा मे कर्णेश्वर मन्दिर समूह है. ये मन्दिर सोमवंशी राजा कर्ण ने बनवाये थे. मन्दिर के पीछे तालाब के किनारे एक कुण्ड है जिससे एक किवदन्ती जुडी हुई है कि इस कुण्ड मे कांकेर के चंद्रवंशी राज्य की स्थापना करने वाले कन्हारदेव ने स्नान किया था जिससे उनका कुष्ठ रोग ठीक हो गया था.इस किवदन्ती का विवरण प्राचीन छत्तीसगढ़ पुस्तक मे आदरणीय प्यारेलाल गुप्ता जी ने किया है. उन्होंने लिखा है कि कांकेर राज्य के प्रथम अधश्वर वीर कन्हारदेव जगन्नाथपुरी के राजा थे. पर कुष्ठ रोग से ग्रसित हो जाने के कारण उन्हे अपना राज परित्याग करना पड़ा.स्वास्थ्य लाभ की तलाश मे प्रवास करते हुए वे सिहावा पहुंचे जहाँ श्रिंगी ऋषि का आश्रम प्राचीन समय मे था. एक निकटवर्ती पोखर मे प्रतिदिन स्नान करते रहने से उनका कुष्ठ रोग जाता रहा और वे सिहावा की जनता के अनुरोध पर यहाँ राज्य करने लगे.कन्हार देव के पश्चात किशोर देव (1404 दृ 1425 ई) ने अपनी राजधानी को उन्होंने सिहावा से हटा कर नगरी स्थानांतरित किया था. तानुदेव (1425 से 1461 ई.) ने बस्तर के काकतीयों तथा रायपुर के कलचुरियों से सुरक्षा के लिये राजधानी को कांकेर लाया. तब से चंद्रवंशी राजाओ ने कांकेर मे ही अपनी राजधानी स्थापित कर राज्य किया.
लेख - ओम प्रकाश सोनी
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