21 मई 2020

दानशीलता के लिये प्रसिद्ध कांकेर की रानी बड़गहिन माँ (कलचुरि)

दानशीलता के लिये प्रसिद्ध कांकेर की रानी बड़गहिन माँ (कलचुरि).....!

दक्षिण कोसल के कलचुरि डाहल या चेदि के कलचुरियो के वंशज है , जिनकी राजधानी जबलपुर के पास त्रिपुरी थी. इन कलचुरियो ने छत्तीसगढ़ के इतिहास मे एक नये काल की शुरुआत की है.कोकल्ल द्वितीय (900 से 1015 ई) के राज्यकाल मे उसके 18 पुत्रो मे से एक कलिंगराज ने 1000 इस्वी के लगभग दक्षिण कोसल पर आक्रमण यहाँ राज्य स्थापित किया और तुम्माण मे अपनी राजधानी स्थापित की. दक्षिण कोसल मे 1000 इस्वी से सन 1750 इस्वी तक कलचुरियो ने शासन किया.कालांतर मे छत्तीसगढ़ मे कलचुरियो की दो शाखाओ ने अलग अलग क्षेत्र मे अपना राज स्थापित किया. कलचुरि शासको की एक शाखा ने रतनपुर तो दुसरी शाखा ने रायपुर से अपना शासन चलाया. रायपुर शाखा मे 1741 इस्वी मे अंतिम कलचुरि शासक अमर सिंह शासन कर रहे थे. इनके शासनकाल मे भोसला सेनापति भास्कर पन्त ने रतनपुर शाखा पर आक्रमण कर उसे अपने अधीन कर लिया , उसके बाद मराठो ने 1750 इस्वी में रायपुर शाखा के कलचुरि शासक अमर सिंह की गद्दी छिन ली.
1753 इस्वी मे अमर सिंह की मृत्यु उपरान्त शिवराज सिंह को सत्ता से बेदखल कर मराठो ने महासमुन्द के पास ष् बड़गाँवष् नामक माफी गाँव देकर रायपुर जिले के प्रत्येक गाँवो से एक रुपया वसुली का अधिकार दिया.यह व्यवस्था 1822 इस्वी तक चली.शिवराज सिंह के पुत्र रघुनाथ सिंह को बड़गाँव के पास गोविन्दा , मुरहेना, नाँदगाँव तथा भलेसर नामक कर मुक्त ग्राम दिये गये, यह व्यवस्था ब्रिटिशकाल तक चलती रही. रियासतकाल ने कलचुरि शासको के वंशजो के इस बड़गाँव जमीदारी की कन्या शिवनन्दिनी का विवाह कांकेर के राजा कोमलदेव के साथ हुआ जो कि बड़गहिन रानी के नाम से जानी गयी.कांकेर के राजा कोमल देव (1904 ई - 1925 ई) की तीन रानियाँ थी. पहली रानी लांजीगढ की पदमालय देवी थी जिससे आठ सन्ताने हुई किंतु एक भी सन्तान जीवित नहीं बची तब राजा कोमलदेव ने बड़गाँव के कलचुरि जमींदार खेमसिंह की रुपवती कन्या शिवनन्दिनी से दुसरा विवाह किया. दीवान दुर्गा प्रसाद ने शिवनन्दिनी को राजिम के मेले मे देखा था. तब बड़गाँव जमींदारी की आर्थिक स्थिति को देखते हुए कन्या पक्ष को सामने बुलाकर कोमलदेव ने शिवनन्दिनी से विवाह किया. बड़गाँव की होने के कारण शिवनन्दिनी देवी बड़गहिन रानी कहलायी.कोमलदेव ने शिवनन्दिनी देवी के लिए कांकेर मे महल भी बनवाया था. राजा कोमलदेव 1925 मे स्वर्ग सिधार गये तब निरूसन्तान रानी शिवनन्दिनी ने 1982 मे अपने मृत्यु तक दान धर्म एवं धार्मिक कार्यो मे ही अपना जीवन व्यतीत किया.शिवनन्दिनी देवी बहुत धार्मिक एवं दानशील थी. उन्होने कांकेर के बालाजी मन्दिर को देवरी गाँव की जमीन दान मे दी तब यह गाँव बालाजी देवरी के नाम से प्रसिद्ध हुआ. उन्होने राधाकृष्ण मन्दिर को भी काफी जमीन दान थी. उनके यहाँ से कोई भी याचक कभी खाली हाथ नहीं लौटता था. रानी अपनी दानशीलता के लिए पुरे छत्तीसगढ़ में प्रसिद्ध थी. निर्धन माता पिता की कन्याओ के विवाह का खर्च भी रानी बड़गहिन माँ ही उठाती थी. कांकेर मे नदी के किनारे किनारे तक सारंगपाल माटवाडा तक कई किलोमीटर लम्बा बाग भी लगवाया जिसे रानी बाग कहा जाता था. दुध नदी मे जब भी बाढ आती थी तो राजमाता शिवनन्दिनी देवी प्रजा की फरियाद पर पैदल ही महल से आती और इस उफनती मे सोने की छोटी नाव अर्पित कर नदी का क्रोध शान्त कर देती थी, दस मिनट में नदी की बाढ़ उतरनी प्रारम्भ हो जाती थी. यह नजारा देखने वाले कई चश्मदीद गवाह आज भी जीवित है. रानी ने अन्तिम बार 1976 इस्वी मे आयी बाढ़ के समय यह करिश्मा किया था. फरियादी की मदद करते हुए और दान धर्म जैसे पूण्य कर्म करते करते बड़गहिन रानी माँ 1982 मे परलोक सिधार गयी. आज भले ही रानी बड़गहिन हमारे बीच नहीं है किन्तु दीन दुखियो की मदद और उनके धार्मिक दान कार्य की चर्चा कर आज भी उन्हें याद किया जाता है.
सभी माताओ को मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ..!
आप हमे instagram मे @bastar_bhushan फ़ालो कर सकते हैं.
आलेख... ओम प्रकाश सोनी